मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल २०२३ मुम्बईः दोसर दिनक सत्रवार चर्चा

१९ अप्रैल २०२३ । मैथिली जिन्दाबाद!!

विगत सप्ताह मुम्बई मे सम्पन्न पाँचम मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल २०२३ सफलतापूर्वक सम्पन्न भेल। पहिल दिनक सत्रवार चर्चा काल्हि १८ अप्रैल २०२३ केँ प्रकाशित भेल। आजुक रिपोर्ट मे दोसर दिन आयोजित विभिन्न विमर्शक सत्रवार चर्चा प्रकाशित कयल जा रहल अछि। विदित हो जे ई सम्पूर्ण रिपोर्ट विमर्शी एवं श्रोता लोकनि सँ चर्चा करैत संकलित कयल गेल अछि, तेँ एहि मे किछु बात छुटबाक-बढ़बाक सम्भावना सेहो अछि। मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल मे एखन धरि विधिवत् टिप्पणी लेखन नहि कयल जेबाक आ कोनो तरहक सारांश या प्रेस नोट्स आदि जारी नहि कयल जेबाक कारण एहि तरहक कठिनाई सोझाँ अबैत रहल अछि, तथापि मैथिली जिन्दाबाद केर सम्पादक प्रवीण नारायण चौधरीक मान्यता छन्हि जे एकरा सेकेन्डरी डाटा के आधार पर पर्यन्त जारी कयल जेबाक चाही जाहि सँ वृहत् स्तर पर पाठक सब केँ लाभ भेटतन्हि।

१. मैथिली सँ आन भाषा मे अनुवादक प्रयोजन – समय १० बजे सँ ११ बजे

भास्करानन्द झा ‘भास्कर’ केर संचालन मे आरम्भ भेल ‘मैथिली सँ आन भाषा मे अनुवादक प्रयोजन’ सत्र मे विमर्शी प्रवीण भारद्वाज तथा शैलेन्द्र मिश्र मात्र सहभागी रहथि। डा. लीना झा, बैद्यनाथ मिश्र एवं गौरव झा ससमय नहि पहुँचि पेबाक कारण हुनका लोकनिक सहभागिता छुटि गेल। जेना कि एहि सत्रक नामहि सँ स्पष्ट अछि जे मैथिली सँ आन भाषा मे अनुवादक प्रयोजन अर्थात् आवश्यकता कियैक ताहि पर विमर्श केन्द्रित रहल। बुझल बात छैक जे अनुवाद विधा सँ कोनो भाषाक सृजनकर्म आन भाषा बीच पहुँचैत छैक आ ताहि अनुसारे ओहि भाषाक साहित्यक महत्ता सँ आनो भाषाभाषी परिचित होइत छैक। मैथिली भाषा सँ आन भाषा मे कतेक अनुवाद भ’ सकल, कियैक नहि भ’ सकल, एहि मे कि सब समस्या अबैत छैक आ आगामी समय मे मैथिली सृजनकर्मी व भाषा अभियानी लोकनि केँ केना सजग होयबाक जरूरत अछि, ताहि पर विशद् चर्चा कयल गेल। आइ मैथिली सँ आन भाषा मे अनुवादक संख्या उल्लेख्य नहि अछि, ई चिन्ता विमर्शी सब जतेलनि। जाहि तरहें आन भाषा सँ मैथिली मे अनुवाद भ’ रहल अछि तेकर तुलना मे मैथिली सँ आन भाषा मे अनुवाद नहि कयल जा रहल अछि, ई मैथिली साहित्य केँ विस्तार देबा मे मूल बाधक मानल जा सकैत अछि।

कोनो भाषाक साहित्य जतबे बेसी अनुवाद कयल जायत, ताहि भाषाक सामर्थ्य ओ कुब्बत ओतबे बेसी वैश्विक मानल जेबाक प्रचलित सिद्धान्त छैक। मैथिली सँ आन भाषा मे अनुवाद करय लेल एकटा विकसित आ प्रचलित भाषाक आधार यथा हिन्दी अथवा अंग्रेजी जेकर प्रचलन निस्तुकी तौर पर मैथिली सँ वृहत् स्तर के छैक ताहि मे पहिने अनुवाद करबाक जरूरत पर बल देल गेलैक। फेर ओहि अनुवादित माध्यम भाषा सँ अन्यान्य भाषा सब मे अनुवाद होयबाक अवस्था विकसित होयत से कहल गेलैक। मैथिलीक क्षेत्र केर विस्तार एहि तरहें मात्र सम्भव होयत ई ठोकुआ दाबी छलन्हि विमर्शी ओ संचालक सहित सभा मे उपस्थित अधिकांश सुधि श्रोतागणक।

एहि प्रचलित भाषाक आधार बिना सीधे कोनो आन असम्पर्कित भाषा सँ मैथिल दुभाषियाक कमी केर कारण मैथिली सँ सीधा आन भाषा मे मैथिली साहित्य नहि पहुँचि पबैत अछि। जेना मैथिली सँ तमिल मे अनुवादक जरूरत छैक, लेकिन ई अनुवाद कियो मैथिली आ तमिल के जानकार मात्र कय सकैत छथि, आब देखबाक ई अछि जे एहेन लोक के-के छथि आ ओ कतेक काज कय रहल छथि। तहिना मैथिली भाषा-साहित्य केर अनुवाद वैदेशिक भाषा यथा जर्मनी, फ्रेन्च, चायनीज, स्पैनिश आदि मे सेहो अनुवाद करैत मैथिलीक साहित्यिक फलक केँ विश्व स्तर धरि पहुँचेबाक लेल अनुवादक केर आवश्यकता छैक, लेकिन मैथिली व अन्य भाषाक जानकारक अभाव मे बिना कोनो दोसर माध्यम भाषा यथा हिन्दी वा अंग्रेजी मे पहिने अनुवाद कएने तेसर मे अनुवादक काज बहुत कठिन आ कम भ’ रहल अछि।

अनुवादक शिल्प सँ सुविज्ञ बनिकय अनुवाद कार्य कयल जा सकत, विमर्शी शैलेन्द्र मिश्र एहि विन्दु पर जोर देलनि। तहिना प्रवीण भारद्वाज आ श्री मिश्र दुनू गोटे एहि विज्ञता लेल समुचित वर्कशौप (प्रशिक्षण शिविर) के सिफारिश कयलनि। हिनका सभक ईहो कहब रहनि जे मैथिली सृजनकर्मी जे भारत ओ विश्वक विभिन्न कोण मे रहि रहल छथि हुनका सब लेल ई जिम्मेदारी ग्रहण करब प्रथम कर्तव्य बनैछ। सब क्षेत्र मे रहनिहार मैथिलीभाषीक योगदान मात्र सँ अनुवाद कार्य तीव्रता सँ बढ़त। व्यक्तिगत सम्पर्क सँ सेहो मैथिली साहित्यक पहुँच आन भाषा मे पहुँचि रहल अछि जाहि मे प्रदीप बिहारी, अजित आजाद, एवं अन्य किछु साहित्यकार लोकनिक कविता-कथा आदिक अनुवादक उदाहरण देल गेल। किछु उदाहरण प्रदीप बिहारीक विभिन्न रचना सभक अनुवाद मलयालम भाषा मे भेलाक, हरिमोहन झाक कन्यादानक अनुवाद ‘द ब्राइड’ केर अनुवाद ललित कुमार दिल्ली विश्वविद्यालयक प्रोफेसर द्वारा कयल जेबाक सेहो राखल गेल छल।

तहिना मैथिली सँ मूलतः हिन्दी आ अंग्रेजी मे अनुवादक कार्य सँ एकर क्षेत्र बढि रहबाक बात सेहो चर्चा मे आयल। हालहि कयल गेल किछु महत्वपूर्ण कार्य यथा मैथिलीक वरिष्ठ साहित्यकार आ बहुभाषाक विद्वान् ललितेश द्वारा पाइड पोइजी मैथिली काव्यक अनुवाद अंग्रेजी मे ५५ गोट कविताक संग्रह प्रकाशित हेबाक उदाहरण देल गेल। तहिना नेपालीय मिथिला के जानल-मानल विद्वान् अयोध्यानाथ चौधरीक वेराइड वर्सेज जाहि मे समकालीन मैथिली काव्य लेखन सँ चुनल गेल ५०-५५ गोट कवि-कवियित्री लोकनिक कविताक अनुवाद अंग्रेजी मे कयल गेल अछि। नेपालीय मिथिला दोसर बहुचर्चित विद्वान् डा. रामावतार यादव द्वारा मल्लकालीन राजकालक नेवारी लिपि मे लिखल अनेकों मैथिली नाटक व विभिन्न संग्रह सभक अंग्रेजी अनुवादक चर्चा सेहो विमर्श मे आयल छल। नेपालीय मिथिलाक डा. रामदयाल राकेश सहित भारतीय मिथिलाक विभिन्न मैथिलीभाषी विद्वान् सभक योगदान पर सुन्दर प्रकाश देल गेल छल।

एकर अतिरिक्त अनुवाद कार्य मे पारिश्रमिक भुगतानी मे कंजूसी सेहो एकटा बाधक हेबाक बात विमर्शी प्रवीण भारद्वाज रखलनि। भाषाक विस्तार आ अनुवादकार्य पर बेस ध्यानकेन्द्रित करैत नीक आ प्रसिद्ध सृजन केँ दूर धरि प्रसारक आवश्यकता पर सेहो ओ जोर देलनि। स्वतःस्फूर्त भाव सँ अपन भाषा प्रति सिनेह आ समर्पण राखि आइ-काल्हि थोड़-बहुत कार्य होयबाक विन्दुर पर सेहो विमर्शी सब अपन विचार रखलनि। यथार्थतः विमर्शी शैलेन्द्र मिश्र आ संचालक भास्करानन्द झा द्वारा सेहो सामाजिक संजाल मे एहि तरहक अनेकों अनुवाद कार्य कयल जा रहल अछि। अनेकों लोक एहि क्षेत्र मे काज करथि ई कामना कयल गेल। विभिन्न कवि लोकनिक रचनाक अनुवाद अप्रकाशित हेबाक विन्दु पर सेहो ध्यानाकर्षण करायल गेल। स्वयं भास्करानन्द झा आ शैलेन्द्र मिश्र द्वारा कयल गेल गोटेक महत्वपूर्ण अनुवाद जे अप्रकाशित अछि तेकर प्रकाशन आ प्रचार-प्रसार के आवश्यकता पर सेहो जोर देल गेल। प्रवीण भरद्वाज द्वारा बहुत रास अनुवाद कार्य निरन्तरता मे होयबाक विन्दु पर सेहो चर्चा भेल। अयोध्यानाथ चौधरीक वेराइड वर्सेज पोथी स्कूली पाठ्यक्रम मे शामिल कयल जाय, जाहि सँ स्वयं मैथिलीभाषीक धियापुता जे मैथिली पढ़य सँ वंचित छथि ओ अंग्रेजीक माध्यम सँ अपन भाषा प्रति आकर्षित हेताह से कथन सम्पादक प्रवीण नारायण चौधरी मोन पाड़ैत छथि आर एहि सत्रक महत्ता समस्त सभासद केँ प्रभावित करबाक बात ओ कहैत छथि।

२. सीताः मिथिलाक अस्मिताक परिचिति जानकी – समय ११ः१० सँ १ः३० बजे बजे धरि

मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल २०२३ मुम्बई मे राखल गेल ई सत्र सर्वाधिक अवधि केर छल। संयोजक विनोद कुमार झा एहि सत्रक सम्बन्ध मे अपन संयोजकीय मन्तव्य दैत उद्घाटन सत्रहि मे पुरजोर घोषणा कएने रहथि जे मिथिलाक अस्मिताक परिचिति जानकी पर विहंगम विमर्शक आवश्यकता देखैत एहि बेरुक फेस्टिवल मे सब सँ बेसी अवधि के चर्चा राखल गेल अछि। २ घन्टा आ २० मिनट केर एहि सत्र मे अपेक्षित वक्ता सेहो बहुत रास राखल गेल रहथि। आभा बोधिसत्व, कृष्ण मोहन झा, जिबनाथ चौधरी, डा. लीना झा, विभा झा, विभा रानी, विभूति आनन्द, राजेश झा आ कमलानन्द झा ‘विभूति’। अपेक्षित मध्य सँ एकटा आभा बोधिसत्व मात्र नहि अयलीह, बाकी सब कियो उपस्थित भेलथि। लेकिन दुर्भाग्यवश ई सत्र मे चर्चा सिर्फ ‘सीता, सीताचरित्र, सीता आ राम बीच तादात्म्य आ सेहो सब बात मैथिली साहित्येतर रामायणक आधार पर’ कयल गेल। एतबा कहाँ! संचालक एवं वरिष्ठ वक्ता लोकनि मानू मंचीय प्रस्तुति मे बामपन्थ वर्सेस दक्षिणपन्थ केर पन्थपक्षी चर्चा कय देलनि आ चर्चा मे सँ केन्द्रीय विषय गौण भ’ गेल छल।

मिथिलाक अस्मिताक परिचिति जानकी कतहु हेरा गेल छलीह। मैथिली मे लिखल गेल रामायण चाहे लालदास के रचना अथवा चन्दा झाक, तदोपरान्त मैथिलीपुत्र प्रदीपक सीता चरित्रक महाकाव्य अथवा आन-आन, ताहि सब पर एकहु गोटे किछु नहि बाजिकय भैर संसारक रामायण मे सीता आ राम प्रति लक्षित विविध बात केँ चर्चा मे आनिकय ‘मिथिला अस्मिता’ केँ गायब कय देलथि। तथापि, सीता चरित्र पर केन्द्रित रहल ई विमर्श आ एहि मे विभिन्न विमर्शी द्वारा विभिन्न तरहक चर्चा सब कयल गेल। एहि मादे सम्पादक प्रवीण नारायण चौधरी द्वारा जे एकटा सार-संछिप्त विवरण राखल गेल अछि से निम्नरूपें राखि रहल छीः

‘सीताः मिथिलाक अस्मिताक परिचिति जानकी – मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल २०२३ केर विमर्श पर समीक्षा’

“हालहि सम्पन्न पाँचम मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल मुम्बई मे एकटा विमर्शक सत्र छल “सीताः मिथिलाक अस्मिताक परिचिति जानकी”, विमर्शक संचालक छलाह अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के प्राध्यापक कमलानन्द झा विभूति, विमर्शी सब छलाह वरिष्ठ मैथिली साहित्यकार विभूति आनन्द, कृष्णमोहन झा, डा. लीना झा, विभा झा, जिबनाथ चौधरी एवं राजेश कुमार झा।
चर्चा मे रामायण आ जानकी हावी भ’ गेलीह। विमर्शक मूल केन्द्र ‘मिथिलाक अस्मिताक परिचिति जानकी’ पर केन्द्रित रहलाह जिबनाथ चौधरी, विभा झा एवं मिथिला राज्य निर्माण सेनाक महासचिव आ मिथिलावादक प्रखर समर्थक राजेश कुमार झा। जिबनाथ चौधरी सीता केँ अपन बहिन-दीदी आ अपन परिवारक मर्यादित अभिभावकक भाव मे बुझबाक अन्तर्भान आ हुनक त्यागपूर्ण जीवन सँ प्रेरणा लेबाक बात कहलनि, तहिना विभाजी जानकी केँ नायिका आ नारी-पुरुष बीच समन्वय संग जीवन संचालनक पक्ष पर जोर दैत मिथिलाक परिचिति सँ बान्हल बात रखलीह। राजेश कुमार झा त अखण्ड भारत मे श्रीराम के प्रमुख भूमिका वला विन्दु पर जोर दैत मिथिलावादक प्रथम बुनियाद आ अन्तिम सत्य धरि केवल ‘सीता’ केँ राखि संकल्प तक लेलनि जे आबयवला समय मे हुनकहि कमान्ड केँ सर्वोपरि बुझि हम सब काज करब।
संचालक सहित अन्य विमर्शी लोकनि पूर्णरूपेन चर्चा केँ ‘सीताचरित्र’ पर केन्द्रित कय ओहि मे सँ मिथिलाक अस्मिता आ परिचितिक मूल जानकी केँ लगभग गायब कय देने रहथिन। हमरा इहो बुझायल जे विमर्शक दिशा सीताक चरित्र मात्र पर केन्द्रित रहबाक कारण आ संचालक प्रो. विभूति द्वारा राखल गेल विभिन्न सन्दर्भ व प्रश्न सभक पेरिफेरि मे विज्ञ वक्ता लोकनि घुमा-फिराकय सीताक अस्तित्व पर, हुनक रावणक अपहृता बनबाक आख्यान केँ कमजोर-निरीह स्त्रीक स्त्रीत्व पर आ वर्तमान समाज मे नारी-पुरुष बीचक भेद-विभेद आ नारी हिन्साक विरूद्ध नारी सशक्तिकरण पर घुमा देलखिन्ह।
एहि तरहें ई सत्र वास्तव मे जाहि डिस्कोर्स लेल राखल गेल छल से पूर्ण तरहें डाइल्यूट भ’ गेल छल। हम कहय चाहब जे ई हमर समग्र समझ बनल आ तहिये हम अपन औब्जेक्शन फेसबुक पोस्ट मार्फत रखने रही। आइ पुनः ई सन्दर्भ राखल – कारण बनल अछि मैथिलीक प्रसिद्ध गीतकार आनन्द मोहन झा केर ई सुन्दर आ सारगर्भित रचना, कनी गौर करियौकः
सीता
जनकसुता जगजननी जानकी।
अपन व्यथा की कहती जानकी॥
अगिन कहाँ अपकार कयल किछु।
कवित अनल सँ जरली जानकी॥
देखा रहलि जिनका ओ दुर्बल।
हुनक दशा पर हँसती जानकी॥
उठा रहल आंगुर संतति सब।
झुका नयन तेँ चलली जानकी॥
असल विभूति सिया मिथिलाकेँ।
करथि क्षमा सब गलती जानकी॥
कविक भाव सँ पूर्ण सहमति रखैत आइ हम जनक-जानकी सन्तति जँ स्वयं सीताक अस्तित्व पर सवाल उठायब, तरह-तरह के विवादित बात करब, त सच मे जानकीक भावना हमरा सब लेल वैह होयत जेकर कल्पना कवि द्वारा कयल गेल अछि।
मिथिलाक परिचिति जनक-जानकी मात्र सँ सदा-सनातन जियैत आबि रहल अछि। हँ, सत्य इहो छैक जे मिथिलाक अस्मिता मे ऋषि-मुनि आ निमि सँ मिथिक जन्म आ विदेहराज अनेकों राजा जिनका ‘जनक’ उपाधि सँ विभूषित करैत राज्य संचालनक जिम्मेदारी देल गेल – ओ सब कारक बनलाह जे अधिष्ठात्री जगदम्बा जानकी रूप मे एहि धराधाम मे अयलीह। ई सिद्धि जनक शिरध्वज केर रहनि जे हलेष्ठि यज्ञ करैत ‘सीता’क अवतरण मे सहायक बनलाह, तेँ ओ सीताक पिता कहेलाह। धन्य जनक जे जानकी अयलीह। परञ्च अयोध्यानरेश दशरथक पुत्र श्रीराम केर भार्या ओ केना बनलीह, कोन पौरुष सँ श्रीराम मात्र सीताक पति बनबाक अधिकार प्राप्त कयलन्हि, केना हुनका राज्याभिषेक होइत-होइत वनाभिषेक केर १४ वर्ष निर्वासनक आदेश पिता दशरथ सँ माता कैकेइ केँ देल वचन केँ पूरा करय के क्रम मे भेटलनि, कोना सीता अपन सासु-ससुर आ राज्यक भोग केँ त्यागिकय पतिक संग वनगमन केँ सर्वोपरि मानलीह, केना ओ राजकुमारी तपस्विनीक भेष मे जटाजुट बान्हि दुर्गम वन केँ गेलीह आ फेर श्रीराम द्वारा केना-केना राक्षस आ अत्याचारी-व्यभिचारी सभक अन्त कराबय मे सहायिका भेलीह – ई सबटा बात घुमा-फिराकय हुनकर त्याग आ समर्पण बल केँ स्थापित करैत अछि आ यैह ‘सीता’ केर बल सँ ‘मिथिला’ केर परिचित ‘सदा-सनातन’ बनैत अछि।
आइ हमरा लोकनि आन ठाम जाइत छी, हमर भाषा मैथिली कियो सुनैत छथि त जिज्ञासा करैत पुछैत छथि – आपलोग कहाँ के हैं…. कि कहैत छियैक हम सब? हम सब यैह कहैत छियैक जे हमलोग मैथिलीभाषी हैं, मैथिली बोलते हैं, मैथिली अर्थात् जनकदुलारी जो श्रीराम की भार्या थीं उनके मायकेवाले हैं हमलोग। जानकीक दोसर नाम मैथिली बाल्मीकि रामायण मे उद्धृत भेल अछि। हमरा सभक भाषाक नाम विद्यापतिक समय मे ‘मैथिली’ नहि छल, ओ कतहु भाषा-बोली केँ ‘मैथिली’ कहिकय जिकिर नहि कएने छथि। बल्कि अधुनातन मैथिल समाज द्वारा ई शब्द केँ अपनायल गेल अछि। भाषाक नामकरण पछातिकाल मैथिली भेल अछि आ से मात्र ‘सीता’ (मैथिली) केर कारण।
विद्यमान भौगोलिक आ स्थापित राष्ट्रीय पहिचान मे हम सब स्वयं केँ नेपाल सँ या फेर बिहार सँ होयबाक बात कहैत छियैक। जखन कि हमर अस्मिता जनक-जानकी आ मिथिला सँ रहल अछि आ अन्ततोगत्वा हमरा सब केँ अपन परिचय मे ओतय धरि जाइये टा पड़ैत अछि। हमर अस्मिता ‘जनक-जानकी’ केँ छिनबाक लेल कतेको कुचेष्टा आइ धरि कयल जा रहल अछि, नेपाल मे मधेश नामकरण कय केँ बड़का-बड़का पदलोभी आ सत्तालोभी सीता केँ ‘मधेशी’ पहिचान पहिराबय सँ नहि चूकि रहल छथि त भारतीय राजसत्ता के शिखर धरि पहुँचल किछु लोक जानकी केँ नेपाली कहि ‘विदेशी’ तक कहि रहल छथि। आब स्वयं सोचू – हमरा सभक ओ विमर्शक सत्र के परिधि कि छल आ आखिरकार कतय पहुँचि गेल रही। हम किनको वक्तव्य केँ खारिज नहि कय रहल छी, मुदा एतेक रास विद्वान वक्ता लोकनि केँ प्रस्तुत विषय के सामान्य अर्थ तक नहि लगलनि आ सब कियो भटैक गेलाह, एहि पर आपत्ति दर्ज करेनाय आवश्यक त अछिये।
निष्कर्षतः मिथिलाक आत्मविद्याक आश्रयदाता राजा के रूप शास्त्रीय परिभाषा अन्तर्गत ‘सः मैथिलः’ कहैत ‘मैथिल’ पहिचान निर्धारित कयल गेल अछि। हिनकहि शासित भूमि केँ मिथिला कहल गेल अछि। ताहि ठाम ब्रह्माण्डनायिका ‘सीता’ मात्र सँ हमरा सभक पहिचानक अस्मिता विश्वप्रसिद्ध अछि, ई मानिकय आगू सँ सब ठाम प्रस्तुत होयब। जेना राजेश कुमार झा बाजल छलाह ओहि विमर्श मे जे भारतीय राजनीतिक परिदृश्य मे जेना ब्रह्माण्डनायक श्रीराम केर नाम पर आइ राजनीतिक दशा-दिशा अखण्ड भारतक परिकल्पना कय रहल अछि, ठीक तहिना हम मिथिलावासी अपन संवैधानिक राज्य ‘मिथिला राज्य’ प्राप्ति हेतु सदैव ब्रह्माण्डनायिका सीता केँ आगू राखि कोनो कार्य करब, से संकल्पित छी। यैह संकल्प प्रत्येक मैथिल नागरिक मे हेबाक चाही, चाहे ओ भारत के हो या नेपाल के। दुनू सम्प्रभुसम्पन्न राष्ट्र मे हम मैथिल संवैधानिक ‘मिथिला राज्य’ केर प्रान्तीय पहिचान सँ सम्मानित अनुभव करैत रहब। ॐ तत्सत्!!
हरिः हरः!!”
एहि सत्र मे दर्शक दीर्घा मे बहुतो काल धरि विमर्शक हिस्सा रहैत बीच मे किछु समय लेल बाहर निकलि तत्काल किछु प्रतिक्रिया जे फेसबुक सँ पोस्ट कयल गेल छल ओहो सान्दर्भिक अछिः
“एखन एक सत्र भेल ‘सीता: मिथिलाक अस्मिताक परिचिति जानकी’। मॉडरेटर रहथि श्री कमलानन्द झा विभूति आ विमर्शी के रूप में रहथि श्री विभूति आनन्द, श्री कृष्ण मोहन झा, डॉ लीना झा, श्री राजेश कुमार झा, श्री जीवनाथ चौधरी आ सुश्री विभा झा। विमर्श के परिधि सँ इतर रामायण आ सीता के विभिन्न चरित्र पर जुड़ल अनेकों विवादित तथ्य आ ताहि आधारित समाज में स्त्री प्रति पुरुषवादी मानसिकता पर स्वयं मॉडरेटर विद्वता के प्रदर्शन कयलनि, आ तेँ वरिष्ठ लेखक विभूति आनन्द सीता के माता-पिता विहीन अनेरुआ जन्म जेहेन तीक्ष्ण विद्वता झाडलनि, डॉ लीना झा सीता जेहेन अक्षम आ रावणक प्रतिकार तक नहि कयनिहाइर कमजोर नारी जेहेन विद्वता प्रस्तुत कय वर्तमान समय के जुडो कराटे सिखनिहैर सीता के आवश्यकता के वकालत पेश कयलीह। विद्वान कृष्ण मोहन झा त आर 10 डेग आगू के विचार सब राखि सीता केँ बभनटोली मात्र के तथ्य राखि सर्वहारा वर्ग सँ दूर कहि हुनकहि अस्मिता पर सवाल ठाढ़ कय देलखिन्ह। धन्यवाद राजेशजी, कम सँ कम सीता केँ मिथिला मात्र नहि अखंड भारत के अस्मिता सँ जुड़ल कहि मिथिलाक परिचिति में सीता मात्र के आधार उपस्थित हेबाक आ एहि पर आगू बढ़बाक संकल्प रखलन्हि। विभाजी सकारात्मक सन्देश दैत सीता चरित्र जन जन द्वारा अनुकरण करबाक वकालत कयलीह। श्रीराम आ सीता केँ संयुक्त रूप सँ समाज के विकास लेल आवश्यक हेबाक सहज सुन्दर बात रखलीह। तहिना सीता हमर मिथिला के प्रथम परिचिति के आधार रहबाक आ समाज केँ समग्र विकास में सीता सहित सम्पूर्ण रामायण केर आदर्श अनुकरण कयल जेबाक पक्ष श्री जीवनाथ चौधरी रखलन्हि।
स्वाभाविक रूप सँ दर्शक केर मोन में उपरोक्त मिश्रित विद्वत तथ्य सँ उग्रता देखल गेल, खूब रास सवाल पुछल गेल, जवाब विमर्श के संचालक आ वरिष्ठ साहित्यकार लोकनि नहि दय पेलाह। एकटा गरमागरम चर्चा भेल, अंत मे निष्कर्ष यैह बुझायल जे मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल में संचालक आ विमर्शी केँ विषय आ ओकर लक्ष्य-उद्देश्य पर लिखित रूप में पूर्वहि बुझाकय बहस में अनावश्यक विद्वता झाड़य सँ परहेज करय कहल जाय। अस्तु, कियो दुःखी नहि होयब लेकिन हमर विचार हम लिखलहुँ ततबे बुझब।
हरि: हर:!!”

३. मिथिला चित्रकलाक विभिन्न आयाम – समय २ः३० सँ ३ः३० बजे धरि

मैथिली लिटरेचर फेस्टिवलक दोसर दिनक तेसर सत्र मे मिथिला चित्रकलाक विभिन्न आयाम पर क्राफ्टवाला राकेश झाक संचालन मे मिथिला चित्रकला पर प्रसिद्ध पोथी लिखनिहार विद्वान् डा. अयोध्यानाथ झा मिथिला चित्रकलाक सुप्रसिद्ध आर्टिस्ट मुक्ति झा सहभागी रहथि। आजुक कमर्सियल, प्रोफेशनल आ बाजारवादक युग मे मिथिला चित्रकलाक यात्रा कतय धरि पहुँचि सकल अछि ताहि पर तीनू विमर्शी बड नीक सँ चर्चा कयलनि। एहि चर्चा मे दर्शक दीर्घा केँ एकटा आश्वासन भेटलनि जे वैश्विक पटल पर मिथिला चित्रकला नव सम्भावना जगौलक अछि। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार मे एकर मांग आ मूल्य बढबाक कारण सकारात्मक अवस्था देखल जाइत अछि। भारतक महानगरीय क्षेत्र मे सेहो एकर बाजार विस्तार भेल अछि। स्वयं मिथिलावासी लोक भले एकर महत्ता आ गरिमा केँ एखन धरि ओहि वृहत् स्तर पर नहि बुझि सकल हो, परञ्च बाहर मे मिथिला चित्रकलाक प्रशंसक दिन ब दिन बढ़ैत जेबाक बात सचमुच सकारात्मक संकेत करैत अछि।

विमर्श मे मिथिला चित्रकलाक मौलिक स्वरूप मे सेहो परिवर्तन अयबाक आ प्राकृतिक रंग आदिक प्रयोग युगानुसार बदलैत गेला सँ संकरताक प्रवेशक खतरा पर सेहो विमर्श कयल गेल। बाकी, एहि सन्दर्भ मे संचालक राकेश झा द्वारा मैथिली जिन्दाबाद केँ उपलब्ध करायल गेल सामग्री निम्नानुसार अछि। सम्पादक प्रवीण नारायण चौधरी एहि सत्र मे प्रस्तोता लोकनि सँ मिथिला चित्रकलाक उपयोगिता वास्तुदोष केँ दूर करबाक क्षेत्र मे सेहो सम्भव अछि की ई प्रश्न कएने रहथि जेकर कोनो खास जवाब विमर्शीद्वय द्वारा नहि देल गेल छल, लेकिन संचालक राकेश झा कहने रहथि जे मिथिला चित्रकलाक बहुत रास उपयोगिता अदौकाल सँ रहल अछि आ ताहि मे वास्तुदोष दूर करबाक लेल सेहो एकर किछु न किछु उपयोगिता अवस्से सम्भव अछि। विदित हो जे एहि सन्दर्भ मे मिथिला अभियन्ता बी. के. कर्णा जे हैदराबाद मे रहैत छथि ओ कतेको वर्ष पूर्व सँ अपन शोध-दावी करैत आबि रहल छथि जे कोनो घर मे रहल वास्तुदोष आ गृहक्लेश आदिक शान्ति लेल सेहो एकर बड पैघ उपयोगिता अछि। हुनका मुताबिक मिथिला चित्रकला मे प्रयुक्त रंग आ शैलीक सकारात्मक प्रभाव सँ मानव मनोविज्ञान पर सीधा असर पड़ैछ आ ई शुभकारी सिद्ध भेल करैछ।

राकेश झा द्वारा पठायल गेल समीक्षा निम्नानुसार अछिः (प्रतिक्षीत, बाद मे सम्पादन करैत ई भाग लोड कयल जायत।)

४. मिथिला लोकसंस्कृतिक सामाजिक आ साहित्यिक विमर्श – समय ३ः३० बजे सँ ४ः३० बजे धरि

एहि सत्रक संचालन कश्यप कमल कयलनि। लोकसंस्कृतिक सामाजिक आ साहित्यिक विमर्श मे सुप्रसिद्ध विद्वान् डा. महेन्द्र नारायण राम, डा. फुलो पासवान आ श्याम सुन्दर शशि संग अभियन्ता क्राफ्टवाला राकेश झा आ मुन्नी मधू केर सहभागिता रहनि। विमर्शक उत्थान सही दिशा मे होइतो लोकदेव के रूप मे सलहेश केर चर्चा पर बेसी समय खर्च हेबाक स्थिति बनि गेल। तथापि, एहि सत्र मे लोकसंस्कृति केर प्रचलित पद्धति सँ समाज मे कोना सौहार्द्रता, भाइचारा आ आपेकता बनैत अछि ताहि पक्ष केँ सब विमर्शी लोकनि ढंग सँ निरूपण कयलनि। वर्तमान समय के जातिवाद आधारित राजनीति सँ आबि रहल विखंडन केँ मिथिलाक मौलिक लोकसंस्कृतिक सामाजिक-साहित्यिक पक्ष मात्र अनुकूल समाधान दय सकैत अछि, से जिस्ट निकलिकय सामने आयल। एकर अतिरिक्त विमर्शी राकेश झा द्वारा कयल गेल समीक्षा विशद् आ वृहत् अछि से पाठकक सन्दर्भ लेल निम्नानुसार राखल जा रहल अछिः

मुम्बई लिटरेचर फेस्टिवल 2023 दोसर दिनक चारिम सत्र मिथिला लोकसंस्कृतिक समाजिक आ साहित्यिक विमर्श

– राकेश झा

ज्ञातव्य हो जे विगत ७ अप्रैल सँ ९ अप्रैल धरि मुम्बई केर मड आइलैन्ड अवस्थित रूपवीर बंगला मे आयोजित मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल २०२३ केर सब सत्र अपना आप मे विशिष्ट छल मुदा दोसर दिनक चारिम सत्र मिथिला लोकसांस्कृतिक समाजिक एवं साहित्यिक विमर्श हमरा नजरि सँ देखल जाय त ई सत्र अन्य सब सँ अत्यन्त फराक छल l कियैक त अय सत्र के मंचासीन वक्ता मे डा. महेंद्र नारायण राम, श्यामसुंदर शशि, डा. फूलो पासवान सन मिथिला संस्कृतिक विशिष्ट अध्येता आ वक्ताक संग मुन्नी मधू सहभागी रहथि। संगहि हमरा एहन मिथिलाक लोकसंस्कृति केँ बुझय के प्रयास करयवला नवतुरिया जिज्ञासु केँ सेहो स्थान विमर्शीक तौर पर देल गेल छल l

आयोजनक रूपरेखा अनुसार अय सत्र के संचालनक जिम्मेवारी लोकसंस्कृति मर्मज्ञ तारानंद वियोगीक हाथ मे आयोजक द्वारा देल गेल निश्चित कयल गेल छल मुदा कोनो कारण सँ ओ नहि आबि सकलाह त वक्ताक सूची मे सँ कश्यप कमल उर्फ़ पवन झा आगू बढ़ि ई जिम्मेदारी उठेलाह l

अय सत्र विषय एतेक विस्तृत छल जाहि पर विशद् आ गंभीर चर्चाक बेगरता केँ देखैत संचालक सत्रक समय सीमा संध्या ३:३० स ४:३० निर्धारित कएने छलाह, आ से समय पर आरम्भो भेल l एतेक गंभीर विषय केर सत्रक अंतिम समय मे संचालनक जिम्मेदारी उठबय के साहस करबाक लेल कश्यप कमल केर जतेक प्रशंसा करब से कम होयत l संचालनक क्रम में सर्वप्रथम ओ हमरा सँ सत्र सम्बन्धित विषय पर संबोधित भेलाह, मुदा गोटेक ५ वक्ता वला एहि सत्रक एक-एक मिनट हम अपन जिनगी के कतेको बरख मिथिलाक लोकसंस्कृतिक अध्ययन आ शोध लेल समर्पित करनिहार वरिष्ठ वक्ता लोकनिक ज्ञान सँ अपना केँ तृप्त करs चाहैत रही तैं हम अपन विचार हुनका सब सँ पहिने व्यक्त करब उचित नहि बुझि श्रोता बनल बेसी उचित व उपयोगी बुझैत संचालक कश्यप कमल सँ आगाँ बढ़बाक आग्रह कयलहुँ । तद्पश्चात कश्यप कमल अय सत्रक मूल भाव पर महेंद्र नारायण राम केँ प्रकाश देबाक लेल आग्रह कयलनि l

अपन संबोधन में महेंद्र नारायण राम लोक सँ समाजक उत्पति आ तकर बाद साहित्य केर सृजन कार्य केर बात कयलनि l हुनकर कहनाम छल कि लोक वेद जे अपना सब कहय छियै ओय के कि मतलब कोनो भी समाज में लोक संस्कृति के उद्भव पहिले होय छय तकर बाद लोक सांगठनिक रूप मे समाज निर्माण वा साहित्य दिश आगाँ बढ़ैत अछि l तैं मिथिला लोकसंस्कृतिक समाजिक आ साहित्यिक महत्व पर चर्चा सँ पुर्व हमरा अहाँ के बुझs पड़त जे हमर अहाँक मूल कि अछि l सत्रक परिचर्चा केँ आगू बढ़वैत कश्यप कमल मुन्नी मधु जी सँ एहि विषय पर अपन विचार प्रकट करबाक आग्रह कयलनि l मुन्नी मधु शायद विषय केँ नय बुझि पेलीह कियैक तँ ओ अपन वक्तव्य मे विषय मे मिथिलाक विवाहक विध-व्यवहार दिश लय कय चलि गेलीह, मुदा फेर बात केँ सम्हारैत बहुत सुन्दर सँ कोना मिथिलाक कर्मकांडी विध-व्यवहार सँ मिथिलाक समाज केँ मजबूती भेटैत छैक ताहि पर अपन विचार देलीह l

संचालक महोदय कमल कश्यप सत्र केँ कनिक नव दिशा देबाक उद्देश्य सँ आगामी प्रश्न राजा सल्हेश मादे ई पुछैत देलाह जे सल्हेश केँ मैथिल समाज कोन रूप मे देखैत अछि, समग्र मिथिला समाज केँ संग लय कय चलयवला एकटा जननायक या कोनो एकटा जाति विशेष के नायक ? ई प्रश्न टा के देरी छलैक कि मंचासीन वक्ता लोकनि मे फूलो पासवान एक भगाह भ’ सल्हेश केँ दुसाधक जननायक आ लोकदेवता मानि अपनन मत पर अड़ि गेलाह, जेकरा काटैत मुन्नी मधू बहुत सुंदर सँ अपन नेनपन अवस्था मे सल्हेशक गहबर मे पूजाक ओरियौन आ पूजाविधि मे सब जातिक सहभागिता पर जोर दैत सल्हेश केँ कोनो जाति विशेषक नायक वा देवता मानय के विरोध कयलीह l फूलो पासवान अय बीच फेर विषय सँ बहकैत तत्कालीन समाज मे सवर्ण द्वारा दलित समाज केर शोषण दिश चलि गेलाह जेकरा देखैत संचालक कमल कश्यप अपन संचालकक अधिकार केर प्रयोग करैत श्याम सुंदर शशि केँ अपन विचार राखय के आग्रह कयलनि l श्याम सुंदर शशि हमरा विषय के गंभीर ज्ञानी लोक बुझेलाह कियैक तँ ओ अपन विचार केँ तर्क द्वारा प्रमाणिकता के आवरण दैत सल्हेश केँ जननायक सँ लोकदेवताक श्रेणी मे परिवर्तित होयबाक प्रक्रिया पर अपन विचार रखलाह आ जाति विशेष केर बंधन सँ सल्हेश केँ मुक्त रखला l आगाँ बारी आब महेंद्र नारायण राम केर छलन्हि जे सल्हेश केँ विशुद्ध रूप सँ जननायक आ लोकदेवता मानैत मिथिला मे जाति प्रथा केँ कर्म आधारित व्यवस्था बतौलनि आ कहलनि जे आजुक दुसाध जाति दुस्साहश वला कार्य मतलब विरोचित कार्य मे आगू रहयवला समाजक एकटा वर्ग छल जेकर जिम्मेवारी समाजक रक्षा करय के छलैक। आगाँ जाकय एकरा निम्न जातिक रूप देल गेलैक l एहि क्रम मे चुहरमल केर चर्च करैत ओकरा दुसाध चोरक देवता पर अपन विचार रखैत महेंद्र नारायण राम चुहरमल के ओहि समय के कुशल अभियंता कहला जे सुरंग बनबय के विशेषज्ञ छल l ई सब चर्चा एतेक ने विस्तार सँ होमय लागल जे पूरा के पूरा सत्र अपन मूल विषय सँ इतर सल्हेश केंद्रित भ गेल, जाहि कारण सँ जे सोचि अय सत्र के विषय डिजाइन कयल गेल छल ताहि सँ इतर चलि गेल। मुदा जाहि तरहे श्रोता लोकनिक रूचि पूरा सत्र मे हुनकर सभक सक्रिय सहभागिता देखबा मे आयल ताहि आधार पर कहल जा सकैत अछि जे ई सत्र श्रोता केँ आ वक्ता केँ त खूब नीक जेकाँ कनेक्ट करबे केलक, मुदा सल्हेश केंद्रित विषयांतर भेला सँ जे सोचि हम वक्तव्य देबाक पार केँ टारलहुँ, तेहेन मूल-मौलिक-गम्भीर तथ्य सब हमरा तेहेन कोनो नव गप नहि भेटल जे हमर मानसिक भूख केँ शांत कय पबितय ।

५. तारानन्द वियोगीः कवि आ कविता – समय ४ः५० बजे सँ ५ः५० बजे धरि

कमलानन्द झा ‘विभूति’, विनय भूषण, आभा झा, विकास वत्सनाभ, अजित आजाद संचालक

एहि सत्रक समीक्षा श्री किसलय कृष्ण केँ लिखबाक छन्हि जे एखन धरि प्रतिक्षित अछि। श्री किसलय कृष्णजीक पूज्य पिताक स्वास्थ्य बिगड़ि जेबाक कारणे ओ समय पर नहि दय पेला अछि। एहि सत्र मे सम्पादक प्रवीण नारायण चौधरी अनुपस्थित रहथि।

६. कवि सम्मेलन – समय ६ बजे सँ ८ बजे धरि

फेस्टिवल मे कवि सम्मेलनक आयोजन सब वर्ष भव्य भेल करैत अछि। एहि वर्ष सेहो लगभग ३५ गोट कवि द्वारा कविता वाचन कयल गेल। एहि सत्रक संचालन सुप्रसिद्ध कवि-लेखक आ बहुप्रतिभासम्पन्न व्यक्तित्व अजित आजाद कयलनि। अध्यक्षता मैथिली लेखक संघक उपाध्यक्ष एवं स्वयं प्रख्यात विद्वान् डा. इन्द्रकान्त झा कयलनि। कविक रूप मे कृष्ण मोहन झा द्वारा बभनगामा वाली भौजी कविताक वाचन करैत अपन धार के संकेत देलनि, स्त्रीक पीड़ा पर आधारित काव्य सभा मे लोकक संवेदना केँ जागृत करय मे सफल भेल। मैथिली काव्यक विभिन्न रस आ सन्देश सँ भरल कविता वाचन आनो-आनो कवि लोकनि कयलनि। शुभ कुमार वर्णवाल, विनय भूषण, नेहा झा ‘मणि’, मेनका मल्लिक, गुञ्जन श्री, दिलीप कुमार झा, कमलेश प्रेमेन्द्र, लक्ष्मण झा ‘सागर’, श्यामसुन्दर शशि, अरविन्द ठाकुर, विभा झा, अरुणाभ सौरभ, विकास वत्सनाभ, हिमाद्रि मिश्रा, वन्दना चौधरी, राम कुमार सिंह, आभा झा, रमेश रंजन, प्रभंजन कुमार राहुल, विभा कुमारी, ईला झा, विभूति आनन्द, दीपिका झा, परमेश्वर झा प्रहरी, कृष्ण कुमार झा ‘अन्वेषक’, आचार्य धर्मेन्द्रनाथ मिश्र, मुन्ना चमन, प्रतिभा झा, नेहा पुष्प, पंकज झा, सन्ध्या झा, सृष्टि नारायण झा, प्रियंका झा, कमलाकान्त झा, मुन्नी मधू, राजेश राय, शारदा झा – एतेक रास कवि लोकनिक नामक घोषणा भेल छल। मुदा किछु कवि अनुपस्थित रहबाक कारण कविता वाचन नहि कय सकल छलथि। एहि सत्र मे संचालनक एकटा अजीब सूत्र संचालक अजित आजाद अपनौने रहथि, ओ कवि सभक कविता वाचन सँ पूर्वहि ‘टौप १०’ कविक घोषणा अपन रुचि आ जुड़ाव के आधार पर कय केँ अपन छवि केँ दागदार बनौलनि। कवि सम्मेलन मे उपस्थित सुधि श्रोताक निर्णय संचालक अपनहि हाथ मे लयकय नवोदित कवि आ रचनाकार सभक मोन केँ कतहु न कतहु ठेस पहुँचेलनि। एहि पाछू संचालक आजाद केर मनसाय कि छल से सवाल बहुतो लोकक मोन मे अनुत्तरित रहल। मैथिली जिन्दाबादक सम्पादक प्रवीण नारायण चौधरी जखन हुनका सँ एहि मादे जिज्ञासा कयलनि त एकर जवाब गोलमटोल दैत अपन प्रस्तुति केर औचित्य सिद्ध करबाक प्रयत्न करैत बुझेलथि।

क्रमशः…. तेसर दिनक सत्रवार चर्चा ऐगला आलेख मे