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‘राजाजी’क रूपमे सलहेसकेँ सामाजिक मान्यताक आधार

आलेख

– डा. रमानन्द झा रमण

‘राजाजी’क रूपमे सलहेसकेँ सामाजिक मान्यताक आधार

लोकमहागाथा सलहेसक नायक सलहेसकेँ किछु वर्गक लोक द्वारा ‘राजा जी’ कहि हुनक पूजा-अर्चा होअए लागल अछि। एहि प्रसंग तर्क देल जाइछ जे जेना जेष्ठ पुत्र होएबाक कारणेँ दाशरथी रामक राज्याभिषेक भेलनि आ’ तदुपरान्त अयोध्यावासी हुनका ‘राजा राम’ कहि सम्बोधित करए लागल, ओहिना महिसौथाक राजा सोमदेव (वाक्मुनि) जखन वीरगति प्राप्त कएलनि तँ हुनक जेठपुत्र हर्षवर्द्धनक राज्याभिषेक महिसौथाक राजाक रूपमे भेल आ’ महिसौथाक प्रजा हुनका ‘राजा’ कहय लागल। हर्षबर्द्धनक नामान्तरण सलहेसक रूपमे होएबाक प्रसंग तर्क छनि जे हुनक राज्य पर्बत-प्रदेशमे छलनि जाहि कारणेँ ओ ‘शैलैश’ कहल जाए लगलाह। ओही ‘शैलेश’क तद्भव रूप थिक ‘सलहेस’। एहिठाम विचारणीय अछि जे एहि सामाजिक मान्यताक आधार की?

अपना सभक ओहिठाम अठारह टा पुराण अछि। ओहिमे एकसँ बढ़ि एक प्रतापी एवं लोकमंगलकारी राजाक उल्लेख अछि; हुनक विशाल राज-पाटक उल्लेख अछि; हुनक दानशीलता एवं त्यागक उल्लेख अछि। ओ सभ पढ़ि हमरालोकनि उत्प्रेरित एवं आह्लादित होइत छी। किन्तु जँ ओहिमे वर्णित कोनो स्थल संयोगवश औखन विद्यमान अछि तँ वर्णित राजा एवं हुनक राज-पाटकेँ ऐतिहासिक मानि लेब कतेक युक्तिपूर्ण होएत? से एहि हेतु जे की ओ सलहेस ऐतिहासिक पुरुष छथि, कि लोकगाथा नायक आ लोकमानसमे विराजमान पुरुष छथि? एहि बातक फरिछौठ गौतम बुद्धक आधारपर सम्भव लगैत अछि।

जेना बुद्ध ऐतिहासिक पुरुष छथि। तँ की ओएह ऐतिहासिक गौतम बुद्ध भारतीय जनमानसमे अवतारी पुरुष छथि?

ऐतिहासिक पुरुष गौतम बुद्धक चारिटा स्वरूप हमरालोकनिक समक्ष अछि-

1. ऐतिहासिक,
2. काव्यात्मक,
3. दार्शनिक, एवं
4. लोक सम्मत।

आब एहि पर विचार कएल जाए। ऐतिहासिक बुद्ध एक सामन्तक पुत्र छलाह। साम्राज्यवादी युगमे जन्मल छलाह। सम्पन्नता एवं दैन्य ओहि युगक विशेषता छलैक। बुद्धक चारूकात कपिलवस्तुमे मृत्यु, शोक, रुग्णता, जड़ता आदि व्याप्त छल। सामान्य लोक त्राहि-त्राहि करैत छल। ओ लोकक आर्तनाद सुनलनि। अपन कर्त्तव्य निर्धारित कएलनि।
अश्वघोषक ‘बुद्धचरित’मे काव्यात्मक बुद्ध छथि। पण्डित आ’ कलाप्रेमीकेँ काव्यात्मक बुद्धमे रस भेटैत रहल। दार्शनिक बुद्धक परिचय लोककेँ नागार्जुनक बौद्ध-दर्शनसँ भेलैक जे ऐतिहासिक बुद्धमे नहि छल। चारिम अछि लोक-मानसमे अंकित बुद्धक स्वरूप। लोक-मानसमे अंकित बुद्धकेँ कालान्तरमे वृहत्तर सामाजिक-धार्मिक क्षेत्रमे मान्यता भेटि गेलनि। भारतीय जनमानस बुद्धकेँ अवतार मानि लेलक। गौतम बुद्ध भगवान बुद्ध भए गेलाह। लोक पूजय लागल। एही बुद्धक प्रभाव दिग-दिगन्त धरि व्याप्त अछि। इएह बुद्ध जीवित छथि। जयदेव गीतगोविन्दमे लिखलनि – ‘केशव धृत बुद्ध शरीर जय जगदीश हरे।’ जगज्ज्योतिर्मल्ल सेहो लिखलनि – ‘भाद्र दुआदसि पख उजियार, तेहि अवसर भेल बुध अवतार’।

राजा सलहेसक ऐतिहासिकता वा ऐतिहासिक कालखण्ड सन्दिग्ध अछि। राजा सलहेसक दार्शनिक एवं काव्यात्मक स्वरूप उपलब्ध नहि अछि। लोकमानसमे अंकित स्वरूप मात्र भेटैत अछि। ब्रजकिशोर वर्मा ‘मणिपद्म’क उपन्यास ‘राजा सलहेस’ एवं मतिनाथ मिश्रक महाकाव्य ‘जय राजा सलहेस’ अथवा राजा सलहेसक कथापर आधारित नाटकमे काव्यात्मक राजा सलहेसक जे स्वरूप भेटैत अछि, ओ ग्रिअर्सन संकलित ‘गीत राजा सलहेस’क पाठसँ कतेको वर्षक पछातिक थिक। ‘बुद्धचरित’मे ऐतिहासिक बुद्धक यथार्थ जीवनक कतेक यथार्थ घटना वर्णित अछि आ’ कतेक कवि-कल्पना थिक, फुटाएब कठिन अछि। तथापि, बुद्धक एक काव्यात्मक स्वरूप स्थिर भए गेलैक। वाल्मिकीय राम ‘रामचरित मानस’मे हाड़-मासक नायक नहि रहलाह, अलौकिक पुरुष, देवता भए गेलाह। तुलसीदासक जे ऐतिहासिक कालखण्ड छलनि, हिन्दू समाज विपदग्रस्त छल, चतुर्दिक् व्याप्त आतंकसँ हिया हारि गेल छल। भरोस एकमात्र ‘राजा राम’ छलथिन। राजा सलहेसक गीतक स्वरूप स्थिर नहि अछि। जतेक मुह ततेक बात। ओहिपरसँ अपन धारणा एवं समय-सालक प्रचुर प्रभाव झकझक करैत अछि।

राजा सलहेसक गीतमे अनेक स्थलक नामोल्लेख अछि। ओ स्थल औखन विद्यमान अछि। किन्तु ई प्रमाणित नहि होइछ जे ओ स्थल सभ सलहेसकालीन थिक वा राजा सलहेस ओहि स्थलसँ सम्बद्ध छलाह। अपने जनितहुँ छी इतिहास, पुराण एवं लोकगाथा एक नहि थिक। सबहक अपन-अपन महत्त्व छैक, अपन-अपन विशेषता छैक। लोकगाथाक विशेषता थिक तारता। गाथा गायक अपन कल्पनाशीलतासँ स्थानीय रंग भरैत रहैत छथि। एहिसँ लोकरंजकताक स्रोत सुखाइत नहि छैक। तेँ जतेक गाथा उपलब्ध अछि, सभमे स्थानक भिन्नता अछि, क्षेत्रीय विशेषता अछि।

काठमाण्डूमे त्रिभुवन विश्वविद्यालय अछि, की एकर अर्थ जे ओ राजा त्रिभुवन वीर विक्रम शाह द्वारा स्थापित अछि? महात्मा गाँन्धीक नामपर भारतक प्रायः सभ शहरमे सड़क अछि। गाम-गाममे स्कूल-कालेज अछि। पटनामे गंगा नदीपर महात्मा गाँन्धी सेतु अछि। की एकर अर्थ ई भेलैक जे पटनाक गान्धी सेतुक निर्माण महात्मा गाँन्धी कएने छथि? ओ सेतु गाँन्धीजीक थिकनि? एहन-एहन नामकरणक एकमात्र अर्थ छैक जे भारतीय जनमानसमे महात्मा गाँन्धीक प्रति जे अपार श्रद्धाभाव अछि, तकरहि ई सभ अभिव्यक्ति थिक।

कालिदासक जन्मस्थलक लेल विवाद अछि। होमरक जन्मस्थानक लेल विवाद होइत रहल। कविकोकिल विद्यापतिक साहित्यपर तीन भाषा-भाषी अपन दावा करैत रहलाह अछि। तकर कारण अछि, महान लोककेँ सभ केओ अपने मानय लगैत अछि। बड़का लोकमे सभ केओ सटय चाहैत अछि। आ’ जँ केओ राजा सलहेसक गीतमे वर्णित स्थलकेँ राजा सलहेससँ सम्बद्ध होएब, दाबा करैत छथि अथवा सलहेसक नामपर जाति विशेषक लोकक छाती फुलैत छनि तँ ई कतहु सँ अस्वाभाविक नहि भेल। ई सब राजा सलहेसक सामाजिक मान्यताक द्योतके थिक।

‘शैलेश’क तद्भव सलहेस भए सकैत अछि, मुदा ‘राजा सलहेस’ कोना होएत? ‘शैल’ मे ‘ईश’ शब्द जोड़लासँ ‘शैलेश’ भेल अछि। ई अर्थ सलहेसमे स्वतः निहित अछि। तखन सलहेसक पूर्व ‘राजा’ जोड़ब की द्योतित करैत अछि? एहिठाम ‘राजा’ संज्ञा थिक की विशेषण?

हमरा समक्ष राजा सलेहस गीतक दू टा पाठ अछि। पहिल अछि जार्ज अब्राहम ग्रिअर्सन संकलित एवं प्रकाशित (1881ई.) पाठ तथा दोसर अछि डा. विश्वेश्वर मिश्र संकलित पाठ। ग्रिअर्सनक पाठमे एकसँ बेसी बेर राजा सलहेसकेँ राजा भीमसैनक फूलबाड़ीक चैकीदार कहल गेल अछि। रानी हँसावती चोरीक हाल कहैत राजा भीमसैनकेँ जे शिकाइती पत्र लिखने छथि, ओहिमे स्पष्ट अछि सलहेस चैकीदार छथि – ‘जनमक चैकीदार थिकाह सलहेस।’

राजा सलहेस स्वयं अपनाकेँ नोकर कहल अछि – ‘तखन कल जोरि कै ठाढ़ भेल सलहेस, जन्मसँ नोकरी कैल कहिओ फूलक साटी न लागल, आइ कोन बिखै भेल जे बन्धुआ बान्हि देल।’

किन्तु चोरीक माल बरामद भए गेलापर राजा भीमसैन सलहेसकेँ ‘राजा सलहेस’ कहि सम्बोधन कएल अछि – ‘दौना मालिनि लै राजा सलहेस भीमसैनक फुलबाड़ी करै जन्म भरि रखबारी।’ एहू ठाम रखबारीक उल्लेख अछि। औखन गाछीक रखबार होइत अछि।

डा. विश्वेश्वर मिश्रक संकलनक अनुसार सेहो सलहेस राजाक ड्योढ़ीमे चैकीदार छथि, सात सए सिपाहीक नायक छथि –

1. ‘जाहि सलहेस के अंचरा बन्हलें, तरुणी वयस बीतै छौ, से राजा के ड्योढ़ी मे चैकीदारी ने लिखलकौ, तोरा गै जिनगी जीवनमे।’

2. ‘सुन गै दगधी! तोरा कहै छी, हटल बात हम नै करै छी, बड़-बड़ भेद जखन राजा के छैक, चौदह कोस फूलबाड़ीमे सात सौ पहरू हुनको छैन, सबको अबसर (अफसर) सूरम सलहेश, सबको पहरा अगिली पछिली राति बितैये, निसी भाग करमुनिया बितैये, ताहि अमलमे दौना सलहेश पहरा बितैये।’

विश्वेश्वर मिश्रक संकलनमे भीमसैनक अतिरिक्त चूहड़मलकेँ सेहो नटिनियां (दौना मालिनि) ‘राजा’ कहि सम्बोधित करैत अछि – ‘तोरे बल पैरुख देखैले हम हाथीक पीठी चढ़लौं हौ! कहेन राजा छैका?’ स्पष्ट अछि, अपन हाव-भावसँ दौना मालिनि चूहड़मलकेँ अपन मोहपाशमे बान्हि राखय चाहैत अछि। राजा सलहेसकेँ ओ ‘सलहेस गमरुआ’ कहैत अछि। ई उपालम्भ थिक। जेना ‘पिया मोरा बालक, हम तरुणी गे’ मे अछि।

एहि दूनू गाथाक अनुसार ‘राजा सलहेस’ राजा भीमसैनक फुलबाड़ीक चैकीदार छथि। राजा हुनक विशेषण नहि, संज्ञा थिकनि। जँ ई ‘राजा’ विशेषण थिक तँ ओहिना अछि, जेना पराधीन भारतमे अङरेज सरकार स्वामीभक्त जमीनदार लोकनिकेँ ‘राजा’ एवं ‘रायसाहब’ आदिक पदबी दैत छल। स्वतन्त्र भारतक पहिल भारतीय गर्वनर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (1878-1972) ‘राजाजी’क नामसँ सुविख्यात छथि। चेन्नैमे ‘राजाजी सलाइ’ (सड़क) सेहो अछि। ओएह 15 अगस्त, 1947 केँ लार्ड माउंटबेटेनसँ भारतक बागडोर अपना हाथमे लेने छलाह। कोन प्रक्रियासँ कोनो राजा ‘चक्रवर्ती’ होइत छलाह, शास्त्र-पुराणमे विस्तारसँ वर्णित अछि।

‘राजा’क व्युत्पत्ति होइत अछि ‘राजति इति राजा’। अर्थात् जे ऐश्वर्यसँ युक्त रहए। सलहेसक संग लागल ‘राजा’ शब्द भलहिं विशेषण नहि, संज्ञा हो, तथापि ई निश्चित अछि जे सलहेसक व्यक्तित्व ऐश्वर्यसँ युक्त रहल होएतनि, अन्यथा लोकमानसमे हुनक अमिट छवि अंकित नहि रहैत आ’ ने श्रद्धाक दृष्टिएसँ लोक देखैत रहितनि।

मौखिक परम्परासँ इतर राजा सलहेसक सामाजिक मान्यताक जे कोनो अभिलेख उपलब्ध अछि, ओहिमे पहिल अछि जार्ज अब्राहम ग्रिअर्सनक अभिमत। ओ लिखने छथि जे तिरहुतक गाम-गाममे पीपरक गाछतर बनल माटिक चबुतरापर स्थापित सलहेसक प्रतिमाक पूजा दुसाध जातिक लोक सभ करैत छथि। राजा सलहेसक सामाजिक मान्यताक ई पहिल सुपुष्ट एवं अकाट्य प्रमाण थिक।

डा. ग्रिअर्सन ईहो लिखल अछि जे एक डोमक मुहसँ यथासुनल, गीत राजा सलहेस लिपिबद्ध कराओल अछि। ई एहि बातक संकेत थिक जे राजा सलहेसक गीत दुसाध जातिक अतिरिक्त मिथिलाक अन्यो जातिमे प्रचलित छल। कोनो जातीय शूरवीरक गाथाकेँ, भिन्न जातिक लोक द्वारा कण्ठस्थ करब आ’ गायब सामाजिक स्वीकृति थिकैक।

प्रायः अधिकांश लोकगाथामे अलौकिक शक्तिक वर्णन अछि। किन्तु सलहेस, दीना-भद्री एवं बिहुलाकेँ छोड़ि अन्य लोकगाथाक नायक/नायिकाकेँ देवत्व प्राप्त नहि छनि। एहि तीनूमे राजा सलहेस सबसँ बेसी व्यापक छथि। ई सामाजिक स्वीकृति भेलैक।

राजा सलहेसक गाथाक आधार पर साहित्यक अनेक विधामे रचना भेल अछि। केओ उपन्यास लिखल, केओ महाकाव्य लिखल, केओ नाटक लिखल आ’ केओ भक्तिभावमे डूबि ‘सलहेस चालिसा’ लिखि देलनि अछि। केओ-केओ हुनक गीतक गायनसँ लोकक मनोरंजन सेहो करैत छथि। मैथिलीक अन्य कोनहु लोकगाथा नायकक एतेक व्यापक, सर्जनात्मक एवं लोकरंजक उपयोग एवं प्रभाव नहि भेटैत अछि। अपन सर्जनात्मक प्रतिभाक अभिव्यक्तिक लेल राजा सलहेसक गाथाक आश्रय लेब हुनक सामाजिक स्वीकृति थिक।

ग्रिअर्सन लिखल अछि, यद्यपि ई गीत थिक, मुदा गाओल नहि जाइत अछि, पाठ होइत अछि। मन्त्रक पाठ होइत अछि। भारतीय चिन्तनक अनुसार ‘शब्द’ चेतनाक अवतार थिक। ‘स्वर’ ओहि चेतनाक वाहक थिक। दूनूक समन्वयसँ दिव्य शक्ति उत्पन्न होइत छैक। शब्द एवं स्वरमे ओहने समन्वयक हेतु विशेष मुद्रा एवं अंग-संचालनक संग वैदिक ऋचाक पाठ होइत अछि। ओहि उच्चारणमे मोहकता रहैत छैक। श्रोता मोहित भए अनुगामी भए जाइत छथि। मन्त्रक पाठ वा जपमे लोकक महती कल्याण-कामना वा आत्मशुद्धिक प्रबल आकांक्षा रहैत अछि। ई शिवत्व भाव थिक। राजा सलहेसक गीतक मन्त्र जकाँ पाठ इएह प्रमाणित करैछ जे ओ शिवत्वभावसँ आपूरित अछि। ई शिवत्व-भाव सामाजिक स्वीकार्यता थिक।

लोकसाहित्य अभिजात साहित्य जकाँ शाब्दिक नहि होइत अछि, एहिमे कृति-तत्त्वक प्रधानता रहैत छैक। कृति-तत्त्व थिक करब, प्रदर्शन। राजा सलहेसक गीत गाओल जाइत हो, वा एकर पाठ होइत हो, कृति-तत्त्व विद्यमान रहैत अछि। कृति- तत्त्वक मोटा-मोटी पाँचटा विशेषता अछि –

1. सामूहिकता
2. सहभोगिता एवं व्यापकता
3. परिस्थिति एवं मनःस्थितिक अनुकूलन-क्षमता
4. नृत्यक संग प्रगाढ़ सम्बन्ध
5. शरीरक लय, गति एवं अभिव्यक्ति अर्थात् अंग-प्रक्षालनक संग सम्बन्ध

इएह कृति-तत्त्व राजा सलहेसक सामाजिक स्वीकार्यताकेँ अद्यावधि अक्षुण्ण रखने अछि। एही विशेषताक कारणेँ राजा सलहेस लोकमानसमे मूर्तिमान छथि।

जेना हिमशृंगसँ निःसृत सुर-सरिता बंगाब्द धरि अबैत-अबैत अनेकहु छोट-पैघ नदी-धारकेँ अपनामे समाहित कए अपन पाट चाकर करैत जाइछ, ओहिना भारतीय संस्कृति प्राक् वैदिक कालहिसँ सामाजिक समरसता, राजनीतिक सुदृढ़ता एवं सांस्कृतिक विशदताक संग सर्वतोन्मुखी विकास, सन्तुलन एवं स्थायित्वक लेल छप्पन कोटि देवी-देवताक परिकल्पना कएने अछि। केओ सर्जना करैत छथि; केओ पालन करैत छथि; तँ केओ संहार। केओ वर्षाक देवता भेलाह तँ केओ धन-सम्पदाक। समाजकेँ प्रयोजन भेलैक तँ सम्मिलित शक्तिपुंज साकार भए दुष्टदलक दलन कएलक। ओही शक्तिपुंजक आराधनामे कविकोकिल विद्यापति लिखल – ‘कज्जल रूप तों काली कहिओ।’ सम्प्रति ‘सांई बाबाक’ मन्दिर बनब जोड़पर अछि।

सामूहिकता तथा सहभागिता समान पृष्ठभूमिक लोककेँ संगठित प्रयासक लेल प्रेरित करैत छैक। विद्यापति गीत विभिन्न रुचि एवं पृष्ठभूमिक मैथिल समाजकेँ अपन भाषा, साहित्य एवं क्षेत्राक विकासक लेल संगठित कएलक अछि। ओ मैथिल मात्रक परिचितिक आधार भेल अछि। अजस्र प्रेरणाक स्रोतसँ भरल राजा सलहेसक गीतक सामूहिकता आ’ सहभागिताक एहि लोकतान्त्रिक युगमे हुनक आराधक वर्गकेँ ओहिना संगठित एवं प्रेरित कए रहल अछि, जेना दासवृत्तिक लेल विभिन्न मूलसँ उखाड़ि अमेरिकामे बसाओल गेल नीग्रोकेँ हुनक संगीत कहिओ संगठित कएने छल। लोक-साहित्यक महान अन्वेषक एवं विश्लेषणकर्ता विलियम क्रूक्सक कहब सर्वथा समीचीन अछि जे अपन पुरातनकेँ बिना चिन्हने जातीय गौरव एवं गर्वक भावना आएब सम्भव नहि अछि।

अतएव, राष्ट्रीय जागरण एवं सामाजिक एकजुटताक हेतु एवं सांस्कृतिक साम्राज्यवादसँ अपन सांस्कृतिक वैशिष्ठ्यक रक्षाक लेल राजा सलहेस सन लोकनायकक प्रयोजन तँ अछिए, लोकतन्त्रक एहि युगमे लोकमानसमे विराजमान ओहि गाथा नायकक महत्त्व एवं सामाजिक स्वीकार्यता राजनीतिक अपियारीक लेल सेहो ओहिना अपरिहार्य भए गेल अछि। (2010 ई.)

सिरहा, नेपालमे निर्मित सलहेस मन्दिरमे स्थापित आधुनिक अस्त्र-शस्त्रसँ सुसज्जित राजा सलहेस।

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