गीत
– आनन्द मोहन झा
सीता
जनकसुता जगजननी जानकी।
अपन व्यथा की कहती जानकी॥
अगिन कहाँ अपकार कयल किछु।
कवित अनल सँ जरली जानकी॥
देखा रहलि जिनका ओ दुर्बल।
हुनक दशा पर हँसती जानकी॥
उठा रहल आंगुर संतति सब।
झुका नयन तेँ चलली जानकी॥
असल विभूति सिया मिथिलाकेँ।
करथि क्षमा सब गलती जानकी॥