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‘सीताः मिथिलाक अस्मिताक परिचिति जानकी – मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल २०२३ केर विमर्श पर समीक्षा’

हालहि सम्पन्न पाँचम मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल मुम्बई मे एकटा विमर्शक सत्र छल “सीताः मिथिलाक अस्मिताक परिचिति जानकी”, विमर्शक संचालक छलाह अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के प्राध्यापक कमलानन्द झा विभूति, विमर्शी सब छलाह वरिष्ठ मैथिली साहित्यकार विभूति आनन्द, कृष्णमोहन झा, डा. लीना झा, विभा झा, जिबनाथ चौधरी एवं राजेश कुमार झा।

चर्चा मे रामायण आ जानकी हावी भ’ गेलीह। विमर्शक मूल केन्द्र ‘मिथिलाक अस्मिताक परिचिति जानकी’ पर केन्द्रित रहलाह जिबनाथ चौधरी, विभा झा एवं मिथिला राज्य निर्माण सेनाक महासचिव आ मिथिलावादक प्रखर समर्थक राजेश कुमार झा। जिबनाथ चौधरी सीता केँ अपन बहिन-दीदी आ अपन परिवारक मर्यादित अभिभावकक भाव मे बुझबाक अन्तर्भान आ हुनक त्यागपूर्ण जीवन सँ प्रेरणा लेबाक बात कहलनि, तहिना विभाजी जानकी केँ नायिका आ नारी-पुरुष बीच समन्वय संग जीवन संचालनक पक्ष पर जोर दैत मिथिलाक परिचिति सँ बान्हल बात रखलीह। राजेश कुमार झा त अखण्ड भारत मे श्रीराम के प्रमुख भूमिका वला विन्दु पर जोर दैत मिथिलावादक प्रथम बुनियाद आ अन्तिम सत्य धरि केवल ‘सीता’ केँ राखि संकल्प तक लेलनि जे आबयवला समय मे हुनकहि कमान्ड केँ सर्वोपरि बुझि हम सब काज करब।

संचालक सहित अन्य विमर्शी लोकनि पूर्णरूपेन चर्चा केँ ‘सीताचरित्र’ पर केन्द्रित कय ओहि मे सँ मिथिलाक अस्मिता आ परिचितिक मूल जानकी केँ लगभग गायब कय देने रहथिन। हमरा इहो बुझायल जे विमर्शक दिशा सीताक चरित्र मात्र पर केन्द्रित रहबाक कारण आ संचालक प्रो. विभूति द्वारा राखल गेल विभिन्न सन्दर्भ व प्रश्न सभक पेरिफेरि मे विज्ञ वक्ता लोकनि घुमा-फिराकय सीताक अस्तित्व पर, हुनक रावणक अपहृता बनबाक आख्यान केँ कमजोर-निरीह स्त्रीक स्त्रीत्व पर आ वर्तमान समाज मे नारी-पुरुष बीचक भेद-विभेद आ नारी हिन्साक विरूद्ध नारी सशक्तिकरण पर घुमा देलखिन्ह।

एहि तरहें ई सत्र वास्तव मे जाहि डिस्कोर्स लेल राखल गेल छल से पूर्ण तरहें डाइल्यूट भ’ गेल छल। हम कहय चाहब जे ई हमर समग्र समझ बनल आ तहिये हम अपन औब्जेक्शन फेसबुक पोस्ट मार्फत रखने रही। आइ पुनः ई सन्दर्भ राखल – कारण बनल अछि मैथिलीक प्रसिद्ध गीतकार आनन्द मोहन झा केर ई सुन्दर आ सारगर्भित रचना, कनी गौर करियौकः

सीता

जनकसुता जगजननी जानकी।
अपन व्यथा की कहती जानकी॥

अगिन कहाँ अपकार कयल किछु।
कवित अनल सँ जरली जानकी॥

देखा रहलि जिनका ओ दुर्बल।
हुनक दशा पर हँसती जानकी॥

उठा रहल आंगुर संतति सब।
झुका नयन तेँ चलली जानकी॥

असल विभूति सिया मिथिलाकेँ।
करथि क्षमा सब गलती जानकी॥

कविक भाव सँ पूर्ण सहमति रखैत आइ हम जनक-जानकी सन्तति जँ स्वयं सीताक अस्तित्व पर सवाल उठायब, तरह-तरह के विवादित बात करब, त सच मे जानकीक भावना हमरा सब लेल वैह होयत जेकर कल्पना कवि द्वारा कयल गेल अछि।

मिथिलाक परिचिति जनक-जानकी मात्र सँ सदा-सनातन जियैत आबि रहल अछि। हँ, सत्य इहो छैक जे मिथिलाक अस्मिता मे ऋषि-मुनि आ निमि सँ मिथिक जन्म आ विदेहराज अनेकों राजा जिनका ‘जनक’ उपाधि सँ विभूषित करैत राज्य संचालनक जिम्मेदारी देल गेल – ओ सब कारक बनलाह जे अधिष्ठात्री जगदम्बा जानकी रूप मे एहि धराधाम मे अयलीह। ई सिद्धि जनक शिरध्वज केर रहनि जे हलेष्ठि यज्ञ करैत ‘सीता’क अवतरण मे सहायक बनलाह, तेँ ओ सीताक पिता कहेलाह। धन्य जनक जे जानकी अयलीह। परञ्च अयोध्यानरेश दशरथक पुत्र श्रीराम केर भार्या ओ केना बनलीह, कोन पौरुष सँ श्रीराम मात्र सीताक पति बनबाक अधिकार प्राप्त कयलन्हि, केना हुनका राज्याभिषेक होइत-होइत वनाभिषेक केर १४ वर्ष निर्वासनक आदेश पिता दशरथ सँ माता कैकेइ केँ देल वचन केँ पूरा करय के क्रम मे भेटलनि, कोना सीता अपन सासु-ससुर आ राज्यक भोग केँ त्यागिकय पतिक संग वनगमन केँ सर्वोपरि मानलीह, केना ओ राजकुमारी तपस्विनीक भेष मे जटाजुट बान्हि दुर्गम वन केँ गेलीह आ फेर श्रीराम द्वारा केना-केना राक्षस आ अत्याचारी-व्यभिचारी सभक अन्त कराबय मे सहायिका भेलीह – ई सबटा बात घुमा-फिराकय हुनकर त्याग आ समर्पण बल केँ स्थापित करैत अछि आ यैह ‘सीता’ केर बल सँ ‘मिथिला’ केर परिचित ‘सदा-सनातन’ बनैत अछि।

आइ हमरा लोकनि आन ठाम जाइत छी, हमर भाषा मैथिली कियो सुनैत छथि त जिज्ञासा करैत पुछैत छथि – आपलोग कहाँ के हैं…. कि कहैत छियैक हम सब? हम सब यैह कहैत छियैक जे हमलोग मैथिलीभाषी हैं, मैथिली बोलते हैं, मैथिली अर्थात् जनकदुलारी जो श्रीराम की भार्या थीं उनके मायकेवाले हैं हमलोग। जानकीक दोसर नाम मैथिली बाल्मीकि रामायण मे उद्धृत भेल अछि। हमरा सभक भाषाक नाम विद्यापतिक समय मे ‘मैथिली’ नहि छल, ओ कतहु भाषा-बोली केँ ‘मैथिली’ कहिकय जिकिर नहि कएने छथि। बल्कि अधुनातन मैथिल समाज द्वारा ई शब्द केँ अपनायल गेल अछि। भाषाक नामकरण पछातिकाल मैथिली भेल अछि आ से मात्र ‘सीता’ (मैथिली) केर कारण।

विद्यमान भौगोलिक आ स्थापित राष्ट्रीय पहिचान मे हम सब स्वयं केँ नेपाल सँ या फेर बिहार सँ होयबाक बात कहैत छियैक। जखन कि हमर अस्मिता जनक-जानकी आ मिथिला सँ रहल अछि आ अन्ततोगत्वा हमरा सब केँ अपन परिचय मे ओतय धरि जाइये टा पड़ैत अछि। हमर अस्मिता ‘जनक-जानकी’ केँ छिनबाक लेल कतेको कुचेष्टा आइ धरि कयल जा रहल अछि, नेपाल मे मधेश नामकरण कय केँ बड़का-बड़का पदलोभी आ सत्तालोभी सीता केँ ‘मधेशी’ पहिचान पहिराबय सँ नहि चूकि रहल छथि त भारतीय राजसत्ता के शिखर धरि पहुँचल किछु लोक जानकी केँ नेपाली कहि ‘विदेशी’ तक कहि रहल छथि। आब स्वयं सोचू – हमरा सभक ओ विमर्शक सत्र के परिधि कि छल आ आखिरकार कतय पहुँचि गेल रही। हम किनको वक्तव्य केँ खारिज नहि कय रहल छी, मुदा एतेक रास विद्वान वक्ता लोकनि केँ प्रस्तुत विषय के सामान्य अर्थ तक नहि लगलनि आ सब कियो भटैक गेलाह, एहि पर आपत्ति दर्ज करेनाय आवश्यक त अछिये।

निष्कर्षतः मिथिलाक आत्मविद्याक आश्रयदाता राजा के रूप शास्त्रीय परिभाषा अन्तर्गत ‘सः मैथिलः’ कहैत ‘मैथिल’ पहिचान निर्धारित कयल गेल अछि। हिनकहि शासित भूमि केँ मिथिला कहल गेल अछि। ताहि ठाम ब्रह्माण्डनायिका ‘सीता’ मात्र सँ हमरा सभक पहिचानक अस्मिता विश्वप्रसिद्ध अछि, ई मानिकय आगू सँ सब ठाम प्रस्तुत होयब। जेना राजेश कुमार झा बाजल छलाह ओहि विमर्श मे जे भारतीय राजनीतिक परिदृश्य मे जेना ब्रह्माण्डनायक श्रीराम केर नाम पर आइ राजनीतिक दशा-दिशा अखण्ड भारतक परिकल्पना कय रहल अछि, ठीक तहिना हम मिथिलावासी अपन संवैधानिक राज्य ‘मिथिला राज्य’ प्राप्ति हेतु सदैव ब्रह्माण्डनायिका सीता केँ आगू राखि कोनो कार्य करब, से संकल्पित छी। यैह संकल्प प्रत्येक मैथिल नागरिक मे हेबाक चाही, चाहे ओ भारत के हो या नेपाल के। दुनू सम्प्रभुसम्पन्न राष्ट्र मे हम मैथिल संवैधानिक ‘मिथिला राज्य’ केर प्रान्तीय पहिचान सँ सम्मानित अनुभव करैत रहब। ॐ तत्सत्!!

हरिः हरः!!

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