कविता
– रूपा झा
हम छी चौबटिया।
भरि बरख अहाँक लतखुरदन स’ आहत मर्माहत हम,
प्यासल रहै छी भरि बरख,
बाट जोहैत,
टकटकी लगेने रहै छी,
कहिया आओत जुड़ि शीतल,
कहिया हैत हमरो भोर,
आ जुड़ाएब हमहुँ,
ओइ मनुक्खक हाथ स’,
जे मनुक्ख भरि बरख हमरा छातीपर करैत अछि,
निशाभागो राति मे लतखुरदन,
आ हम ओंघेबाक लेल लालायित रहि जाइ छी,
राति पर्यन्त दिनक कोन बात,
मुदा आइ हमरो दिन आएल अछि जुड़ेबाक,
आ हम जुड़ा रहल छी,
बैशाखक अइ सुन्दर भोरमे,
आ निकलि पड़ब हम,
भरिसाल हरेक पथिकके जुड़ेबाक,
अनवरत यात्रा पर।
जुड़ाएल रही, जुड़बैत रही।
इएह शुभकामना जुड़शीतलक।
बैशाख २ गते, काठमांडु।