मैथिलजनः डिफरेन्ट वर्सेस डिफिकल्ट

विचार

– राजकिशोर झा

हे बंधुगण! अपन गलती, हरगिज़ नहि अहाँ करू कबूल,
दोसर के माथा मढ़ि दियौ, अप्पन हिस्सा केर सब भूल?
साहित्यकार, गीतकार, गायक, प्रोफेशनल्स, संगीतकार, शिक्षक, अधिकारी, व्यापारी, कर्मचारी, राजनेता आदि – ई सब different छथि की difficult?
मानव दर्शन (ह्यूमन साइकोलॉजी) केर अध्ययनानुसार एहि संसारमे सब व्यक्ति अलग (यूनिक) होइत छथि – यानी देखबामे, बोली-वाणीमे, व्यवहारमे, बौद्धिकता वा अन्य क्षमतामे सेहो। हालांकि एहिमे नव बात किछु नञि छै। सब कियो जनैत छियै मुदा कतेक लोक अप्पन व्यवहार आ चिंतनमे एहि सत्यकें प्रतिपालित कऽ पाबैत छी जे ‘हम आ अहाँ’ different छियै, जरूरी नञि जे difficult हेबै!
सामान्यतः अमैथिल समाजक बीच एहन धारणा छै जे मैथिल समाज प्रबुद्ध लोकनिक समुदाय अछि। बात सत्यो छै मुदा अप्पन लोकक बीच अप्पन लोकलेल की यैह धारणा अछि?
एक दोसराक प्रति जतेक असहिष्णु आ अहंमानी अपने सब छी शायद अन्य समुदायमे कम भेटत। तऽ की शिक्षा, संस्कार आ व्यवहारमे समन्वयक कमी अछि?
संप्रति ‘मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल’ जे पिछला सप्ताह मुंबईमे आयोजित छल से सामयिक विषय बनल अछि। बहुत सारगर्भित आयोजन आ सम्मानित विद्वतजन आ समाजसेवी सभक सहभागिता छल एहि आयोजन मे। कार्यक्रमक किछु अंश फेसबुक लाइव / वीडियो आदिक माध्यमसँ देखबामे आयल। ज्ञानवर्धक आ समाजोपयोगी आयोजन लागल जाहि लेल समस्त आयोजकगणकें साधुवाद। संगहि कतेक बेर आपसी असहिष्णुता आ असंवेदनशीलताक कमी केर अनुभूति सेहो भेल। सोचैत रही जे की ई विद्वतजन सब ‘ Different vs. Difficult’ केर मध्यक अंतर आत्मसात नञि कऽ सकैत छलाहा? आख़िरकार सभक अप्पन-अप्पन विचार, दृष्टिकोण, सिद्धांत आ क्षमता छन्हि तहन दोसर वक्ताक बात हुनका ढंगसँ समझबाक चेष्टा करबामे की दिक्कत? आन’क विचार हमरासँ ‘different’ भऽ सकैए सेहो सब कियो बुझिते हेताह / हेतिह। एहन स्थिति हरेक सामाजिक वा पारिवारिक आयोजनमे अनुभूति होइत रहैछ।
यदि अप्पन बात रखबाक ढंग परिपक्व नञि हएत तऽ दोसर के प्रति असम्मानक भावक प्रगटीकरण भऽ जाइत छै भले ही अहाँक मंशा तेहन नञि रहल हो।
दृष्टिकोणक भिन्नता के सामान्यतः अपने सब ‘difficult’ व्यक्ति (कहि दैत छियै ने जे बड्ड मुश्किल लोक छथि) समझि लैत छियै, की ई हमर-अहाँक वैचारिक अपरिपक्वता आ अव्यवहारिकता केर परिचायक नञि कहल जा सकैए? एहि दू शब्दक अंतर केँ बुझलासँ बहुतरास रिश्ता-नाता आ मानवीय संबंधमे मधुरता आनल जा सकैछ। पति-पत्नी बुझथि जे हमर जीवनसाथी ‘डिफरेंट छथि’ नञि की ‘डिफिकल्ट’। एक माए-बापक दू बच्चामे समान गुणक बजाय ओकर अद्वितीय क्षमताक पहिचान / सम्मान हो, शिक्षक बुझथि जे सब विद्यार्थी विशेष गुणसँ युक्त होइत अछि आ हुनका लेल अवसर छन्हि अलग-अलग क्षमताकें निखारबा हेतु। यथोचित योगदानक, समाजमे सब व्यक्तिक क्षमता अलग अलग हेतन्हि आ यैह तऽ देशक महान शक्ति रहल अछि जकरा हम सब ‘यूनिटी इन डाइवर्सिटी’ बुझैत एलियैए।
No two people are alike! We are born different and every individual deserves respect despite unique / different ability. This helps in enhancing interpersonal relationship and avoiding meaningless conflicts.
कतेको बेर एहि सामान्य बातक अनुपालन करबामे भूल केलासँ संबंध कमजोर वा समाप्त कऽ लैत छी। बेतुकक बात पर बहस (आर्गुमेंट) केनिहार शिक्षित लोक सेहो एहि सिंड्रोमसँ ग्रस्त भऽ जाइत छथि। ओना ईहो कहि सकैत छियै जे शिक्षित लोकक ई आभूषण भऽ जाइत छन्हि जाने-अंजाने मे। कियैक तऽ हिनक एप्रोच ‘My Way Is Highway’ वाला भऽ जाइत छन्हि। Education vs. Learning पर अगिला पोस्ट मे कहियो विचार राखब।
हँ, हमहुँ अलगे लोक छी!!
(लेखक टाटा कम्पनीक पैघ पदाधिकारी हेबाक संग-संग दृष्टिसम्पन्न व्यक्तित्वक रूप मे चिर-परिचित छथि। गुजरातक राजधानी मे शाश्वत मिथिला केर परिकल्पक आ मैथिली भाषा ओ मिथिला संस्कृति केर संरक्षण, संवर्धन आ प्रवर्धन हेतु समर्पित सेहो छथि। हरेक वर्ष उच्चस्तरीय आयोजन सँ देश-विदेशक मैथिल संग गुजरातक प्रवासी मैथिल समाज केँ जोड़िकय राखय मे महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करैत आबि रहला अछि। पूर्व मे दिल्ली प्रवास मे रहथि आ ओतय सेहो अपन गम्भीर योगदान सँ अपन मातृभाषा, अपन मौलिक पहिचान आ मूल मिथिलावासी लेल हरसंभव प्रयास करैत रहल छलाह।)