मैथिली कथा
– प्रवीण नारायण चौधरी
मुम्बई वाली भौजी

बड़का बौआ आ पढुआ बाबू केँ मुम्बई वाली भौजी बड बेसी हुथियारैत रहथिन। बड़का बौआ दून स्कूल सँ पढ़लन्हि तेँ ओ अपनहि बड़ काबिल लोक। पढुआ बाबू 5 गो विषय सँ एमए कय डिग्री के भरमार लगा रेकर्ड बनेनिहार महापुरुष। ताहि बीच बिड़ला कम्पनी के मुम्बई कार्यालय में अदना पद सँ मदना पद धरि पहुँचल ईमानदार आ मजबूत लोक गजेन्द्र बाबू के दुलारी बेटी जे मुम्बई यूनिवर्सिटी सँ ग्रेजुएट त रहबे करथि, ओहि महानगरी के महान कला आ संस्कृति केँ अपनाबैत देशक विभिन्न भागक लोक आ हुनक व्यवहार सँ परिचित सेहो रहथि।
ई तीनू जखन एक ठाम होइथ त तीनू तीन तरहक विन्दु कोनो एक विषय मे राखिकय रगड़ा अवश्ये टा करथि। परिवार के आरो लोक सब खूब साक्षर समझदार। जखन विमर्श के सत्र अन्त हुए त मुम्बई वाली भौजी अपन पति पढुआ बाबू आ दियर बड़का बौआ केँ कहथिन जे कूपमंडूकता सँ बाहर आबिकय वृहत पटल पर वैश्विक मानक अनुसार कोनो तथ्य राखल करू। ओ दून स्कूल के दम्भ या फेर डिग्री के भरमार के व्यक्तिगत उपलब्धि सँ सामाजिक दिशा दशा नहि बदलत।
जीत भौजिये के भ गेल करन्हि। अर्थात् पढ़ल-लिखल लोक या हुनका सभक समाज जखन एकत्रित होइत अछि, कोनो न कोनो विषय पर चिन्तन आ विमर्श स्वाभाविक रूप सँ आरम्भ भ’ गेल करैत छैक। लेकिन विडम्बना ई जे ओ सब अपन-अपन व्यक्तिगत योग्यता आ क्षमता केर प्रदर्शन करैत दर्शक-दीर्घा सँ अपना लेल वाहवाहीक लोभ मे ओझरा गेल करैत छथि। लोकहित लेल स्तरीय विमर्श, ओकर दस्तावेजीकरण आ तदनुसार लोक-समाज मे ओहि विमर्शक निष्कर्ष सँ सद्मार्गक दिग्दर्शन सब नहि भ’ पबैत छैक। केवल अहं आ ईर मे डूबल ई कथित एलिट्स (प्रबुद्धवर्ग) अपन जीवन एहिना बिता लेल करैत छथि। विरले कियो अमर कीर्तिवान् होइत छथि।
मुम्बई वाली भौजी समय-सन्दर्भित ‘मैथिली कथा’ थिक, यानि मैथिल समाजक एकटा दृष्टान्त थिक। हालहि सम्पन्न ‘मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल’ केर कतेको रास सकारात्मक-सार्थक पक्षक बीच एकटा बेतरतीब पक्ष ‘आत्मरती विमर्शी’ केँ उघार करयवला कथा थिक। हमरा बुझने, विजेता बनय लेल विमर्श नहि होइत छैक, एकर जरूरत समाज लेल होइत छैक। परिणाम सदैव सुन्दर मार्गदर्शन वला होयब जरूरी छैक। हँ, बाद में सब चाह कॉफी पिबैत बड नीक विमर्श करैत छथि, से मुम्बई वाली भौजी अपन पति व दियर संग बिना बिसरने करैत छथि, सेहो कम भारी बात नहि थिक। विमर्श मे कटुता आ एक-दोसर केँ पटकि देबाक धारणा-प्रवृत्ति रहितहु यदि आपसी प्रेम आ सद्भावना मजबूत रहय त ओ समाज केँ जिवन्त समाज कहल जाइछ। से हम मैथिल निश्चिते टा छी। तखन न सनातन आ युगों-युगों सँ हमर पहिचान लहलहा रहल अछि!!