— कीर्ति नारायण झा।
हाथी के खयवाक दाँत अलग आ देखयवाक दाँत अलग होइत छैक अथवा बारी के पटुआ तीत एहेन कतेको उदाहरण देल जाइत छैक मैथिली भाषाक विस्तार आ विकास के सन्दर्भ मे मुदा वेएह होइत छैक जे अन्त में घुरिया फिरिया कऽ बात ओतहिये रहि जाइत छैक जाहि ठाम सँ इ आरम्भ भेल छल। अनेरुआ घास अथवा अकटा मिसिया बुझि मैथिली भाषा के उखारि कऽ फेकि देल जाइत छैक मुदा एकरा लेल जिम्मेवार के? हम अहाँ आ हमर अहाँ के समाज। अपन भाखा के त्यागि दोसर भाषा के बजवा मे मैथिलीभाषी के तगमा भेटि सकैत छैन्ह । हमरा लोकनि अपन भाखा के देहाती आ पिछड़ल होयवाक श्रेणी में रखैत छी। हम कतेको बड़का – बड़का भाषण देनिहार के देखने छी जे मैथिली भाषा के विकास के लेल लम्बा चौड़ा भाषण करैत छैथि आ अपना घर पर पहुँचतहि देरी अपन धिया पूता सँ फटाफट हिन्दी अथवा अंग्रेजी भाषा मे बात केनाइ शुरू भऽ जाइत छैन्ह। हुनका सँ जँ पूछियौन तऽ कहताह जे धिया पूता मैथिली नहिं बुझैत छैथि। इ हाल मैथिल परिवार में नब्बे प्रतिशत सँ अधिक परिवार में छैक। मैथिली भाषा में बात केनाइ ओहि परिवार के एडवांस कहेवा में वाधक बनैत छैक तखन धिया पूता के मैथिली भाषा के ज्ञान होयवाक कोनो सबाले नहिं उठैत छैक, इ सभ मैथिली भाषाक लेल दुर्भाग्य केर बात थिकै जखन कि अन्य भाषा बंगाली, गुजराती, कन्नर, मलयालम भाषा सभके इ हाल नहिं छैक। बच्चा अंतर्मन सँ मातृभाषा मैथिली के स्वीकार करय नहिं चाहैत अछि कारण ओकरा विद्यालय में अथवा संगी साथी के बीच एहि भाषा के सुनवाक लेल नहिं भेटैत छैक। घर मे माय बाप सेहो अपना में मैथिली में बात केनाइ गारि बुझैत छैथि।
एहेन बात नहिं छैक जे मिथिला के लोक पढल लिखल कम छैथि अथवा हाकिम सभ कम छैथि मुदा अप्पन मातृभाषा क प्रति समर्पण भाव में एको रत्ती सुधार नहिं भेल अछि कारण हमरा लोकनि एहि भाषा के प्रति कहियो सँ साकांच नहिं रहलहुं अछि। कुथैत कुहरैत मैथिली मात्र समाजक किछु गानल गुथल आदमी के हाथक खेलौना मात्र रहि गेल अछि। कतेको नेता लोकनि एहि भाषा के विकास के नाम पर वोट पावि कऽ एहि भाषा के जस केँ तस छोड़ि कऽ सभटा बिसरि जाइत छैथि । एहि भाषा के विकास मात्र मैथिली के प्रति समर्पित आदमी द्वारा संभव अछि आ एकर आरम्भ अप्पन परिवार सँ करय पड़त कारण जे परिवार सँ समाज केर निर्माण होइत छैक आ समाज सँ राष्ट्र के। एहि भाषा मे एक सँ एक किताब छपल छैक, खिस्सा पिहानी, काव्य, मिथिलाक संस्कार आ विधि ब्यवहार सँ सम्बन्धित मुदा एकर पढनिहार कतहु कियो नहिं आब लोक मैथिली भाषाक रचना लिखि ओकरा प्रकाशित करवा में धकचुकाइत रहैत छैथि जे एकरा पढयबला कियो हेएत कि नहिं। विद्यापतिक रचना अथवा अन्य अनेकानेक रचना पुस्तकालय सभ में उपलब्ध रहैत अछि मुदा ओकरा पढबा में हमरा लोकनि के अरुचि भऽ जाइत अछि जखन कि आन भाषाक पोथी, उपन्यास हमरा लोकनि बड्ड मोन सँ पढैत छी। हमरा कहवाक इ तात्पर्य इ नहिं जे आन भाषा नहिं पढू मुदा वरीयता अपन मातृभाषा के भेटवाक चाही नहिं तऽ देसिल बयना सभ जन मिठ्ठा बाली बात के हमरा लोकनि जपिते रहि जायब आ इ छुछे फटक्का फुटैत रहत तें समस्त मिथिला बासी के एकर प्रचार प्रसार के लेल भगीरथी प्रयास करय पड़त तखने किछु सम्भव अछि नहिं तऽ मैथिल एहिना भुल्ला माछ जकाँ थाल पकड़ि कऽ पोखरिक एक कात में पड़ल रहि जायब। भाषण देनाइ अत्यंत आसान होइत छैक मुदा ओकर क्रियान्वयन अत्यंत कठिन होइत छैक। जय मैथिली