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कखन बुझब जे अहाँक लेखन परिश्रम सफल भ’ रहल अछि

लेख के सार्थकता

लेख/पोस्ट* के सार्थकता पाठक पाबिकय होइत छैक। लाइक-कमेन्ट के आधार पर पोस्ट के सार्थकता कदापि नहि बुझब। सिर्फ ई देखियौक जे अहाँ या हमर या केकरो पोस्ट कतेक बेर पढ़ल जाइत छैक आ पढ़निहार के आचरण आ व्यवहार मे ओकर प्रभाव कतेक दूर तक पड़ैत छैक अथवा पड़ि सकैत छैक। यदि लिखिकय ई अपेक्षा लागय जे देखी कतेक लोक लाइक-कमेन्ट करैत छथि तखन अहाँ नीक नहि लिखि सकब। ध्यान राखब। फेसबुक या अन्य पटल पर लेखन के स्तर लाइक-कमेन्ट सँ तौलबाक अर्थ भेल जे हुनका लेखनीक वास्तविक मर्म आ प्रभाव सँ परिचय छन्हिये नहि। उदाहरण – पहिने (आइ सँ करीब १२‍-१३ वर्ष पूर्व) देखियैक जे परिचित लोक बिना पढ़नहिये लाइक कय केँ लिखनिहार पर उपकार करबाक भान करथि। जहाँ पुछियनि ओकर अन्तर्वस्तुक मादे, ओ मुंह बाबि देल करथि आ दाँत बिदोरि हें-हें-हें कय के लाज भगा देल करथि। बाद मे कतेक शपथ-निहोरा करय लगलहुँ जे बिना पढ़ने लाइक नहि ठोकल करू। पढ़िकय विशुद्ध प्रतिक्रिया जँ लिखबाक मोन हो त लिखब नहि त कमेन्ट के कोनो जरूरी नहि छैक। बस पढ़ू टा। नीक कि बेजा पढ़ि देल करू। लिखबाक सार्थकता पढ़य टा सँ होइत छैक। से धीरे-धीरे सुधार होइत रहल आ आइ कतहु जाइत छी त अपन पाठक २-४-१० के संख्या मे भेटिते टा छथि। तेँ, हम एतबा कहब समस्त लेखक आ लेखन मे रुचि रखनिहार नवागन्तुक चेहरा सँ – कृपया लिखैत चलू। अलाय-बकच लिखि-लिखिकय पन्ना भरला सँ नहि होयत। लिखू जे सर्वथा लोकोपयोगी हो। जेकर प्रभाव लोकमानस पर सार्थक रूप मे पड़य।

लेखक केँ निरपेक्षताक भाव मे अपन विचार व दृष्टि सहितक लेख लिखैत रहबाक चाही। निहित उद्देश्य लोककल्याण-लोकहित हो।

महाकवि तुलसीदासजी रामचरितमानस लेखन आरम्भ सँ पूर्व मंगलाचरण (अपन शिष्टाचारक भाव) सँ पाठक लेल बहुत किछु लिखि देने छथि। काव्य आ कि कीर्ति केर सृजन केर सार्थकता मे ओ यैह सूत्र के जिकिर कयलनि अछि। बस लोकहितक लेल सृजित कोनो लेख्य सामग्री सचमुच इतिहास कायम करैत अछि। एतबे ध्यान सब लेखक देथि। बेसी किछु नहि कहब।

पंथ निरपेक्षता सर्वोपरि होइछ। कतेक लोकक ई मानब अछि जे लेखन मे राज्य सत्ताक विपक्ष केर भूमिका आवश्यक अछि। हमर बौद्धिकता मे एखन धरि एहि विन्दु पर कोनो तेहेन तरहक सत्यक दर्शन नहि भ’ सकल अछि, लेकिन वरिष्ठ लेखक लोकनि केँ सुनैत छी आ हुनका सभक तर्क सेहो उच्चस्तरीय हेबाक भान भेटैत अछि, मुदा हम दक्षिणपन्थी होयब बेसी रुचबैत छी अपना जीवन लेल। बामपन्थ विचारधारा हमरा व्यक्तिगत सूट नहि करैत अछि। आलोचना आ विरोध के स्वर सेहो प्रखर राखय मे विश्वास करैत छी हम। कारण मिथिलाक बेटा छी, बाप-बाबा केँ गाइरे मुंहे लोक सब केँ बुझबैत आ रिझबैत देखने छी। माने जे गाइरो पढ़ू लेकिन लोकहित के उद्देश्य सर्वोपरि हो। स्वयं बदनामो भ’ जाउ, लेकिन लोकक कल्याण भ’ जाय से सोच राखू। हमरा एहि सँ बेसी महान विचारधारा आ पन्थ दोसर नहि बुझि पड़ल अछि एखन धरि। दया आ करुणाक भाव लोक लेल हुए हमरा मे, बेसी किछु नहि चाही।

हरिः हरः!!

*पोस्ट केर अर्थ सामाजिक संजालक देवाल पर लिखल जाय वला बात-विचार सँ जुड़ल अछि।

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