— उग्रनाथ झा।
सर्वप्रथम सोहर शब्द सुनितहि मोन मे एक असीम आनंद प्राप्तिक बोध होएत छैक । जेकर लयबद्ध उद्गार गबैया आ श्रोता दुनू भाव विह्वल आत्मविभोर क दैत छैक । पारंपरिक गायनक ई विधा मुख्यत: शिशु जन्मक उत्सवी दृश्यक वर्णन के समेटने रहैत छैक । ई एकटा एहन समय होएत छैक जे जीव मात्रक युगल जोड़ी लेल असीम आनंदक पल होईत छैक । ताहि में त मानव लेल ई क्षण त हित मित बंधु बांधव सभ लेल अविस्मरणीय खुशी क्षण रहैत छैक ।
एहि आनंदक क्षण में जे पारंपरिक गायनक केन्द्र रहल अछि ओ राजसी ठाढ़ बाट में दान पूण्य आ प्रेम मिलन छैक । जाहि में मिथिला में श्रीराम आ श्री कृष्ण के अवतरणक खुशी में दशरथ आ नंद के महल के आनंदक दृष्टांकन रहैत छैक। जाहि मे श्री राम जन्मोत्सवक अवसर पर देशक भिन्न भिन्न प्रभाग में भांति भांति भजन , किर्तन , गायनक आयोजन रहैछ । त मिथिला एहि सुभ अवसर पर वंचित रहत से संभव कोना ? ओहो में श्रीराम जे मिथिलाक पाहुन आ हुनकर जन्म तहन सोहरक आनंद नहि लेल जाए तखन मैथिल कहेबाक फल की ?
ताहि लेल राम जन्मोत्सव पर मिथिला में सोहरक गायन के प्रचलन रहल छैक ।जाहि मे बढ़ि चढ़ि क सभक सहभागिता रहैत छैक आ श्रीरामक अवतरणक खुशी स सराबोर भेल रहैछ । एहि समय हुनकर धीर वीर गंभीर नायकत्व ,आदर्श अपन भावनाक डोर में जकड़ैत छैक।जेकर खुशीक डोर सतत ध्यान आकृष्ट करैत छैक जे श्री राम सिर्फ अयोध्याक राजकुमारहि टा नहि बल्कि मिथिलाक जमाय सेहो छथि । ताहि लेल मर्यादित चौल सं सेहो बाज नहि अबै छथि । जखन ओ जमाय के रूप में नजरि सोझा अबै छथि त सीया धीयाक कर्तव्यपरायणता ,त्याग , तपस्या आ गंभीरता के कात नहि कयल जा सकैछ ।जे हर मैथिल के हृदय में आत्मगौरवक मान उच्च करैत छैक। मैथिल बेटीक आदर्श सं गर्वानुभूति करैत छैक। संगहि मोन मे एक उदासी सेहो घेर लैत छैक जे मिथिलाक नाति “लव-कुश ” सेहो छलैथ जिनकर जन्म अवसर पर निसहाय सीता एक राजकुमारी/ एक साम्राज्ञी रहितहुं एहि आनंद सं वंचित रहि गेली ।हं जतय रामक एक पत्नीक मर्यादाक पालन आकर्षित करैत छैक त श्री राम लेल सीता क त्याग आ यातना आंदोलित करैत छैक । जे विरह गायन परंपरा में सुनबा मे अबैछ ।लेकिन समेकित रूप में ई सीता रामक जोड़ी हृदय में एक आश’क बिहनि जरूर उपजैत छैक जे जौ हे परमपिता परमेश्वर जौ पुनि एहि धरा पर अवतरित होए निश्चित अपन संबंध एहि मिथिलाक धरा सौ जोड़ने रहि । जहिना राम के मिथिला सीता अर्पण क’ मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम बनौलक तहिना मिथिला सतत अपनेक मर्यादा लेल अर्पित रहत और एहि भावना सं सतत उर्जान्वित आ सियाराम मय भेल रहैत छथि । मुदा द्वापर सं वर्तमान तक मिथिलाक धिया परीक्षाक कसौटी पर ठाढ़े छथि ।
जय जानकी ।