लेख
– प्रदीप बिहारी
मशाल लेने चलैत अग्रदूत
राम लोचन ठाकुर माटिपानिक एकटा एहन कवि, कथाकार, अनुवादक, सम्पादक आ रंगकर्मी छथि, जिनक रचनाक कण-कणसं मातृभूमि आ मातृभाषाक प्रति अनुराग छिटकैत अछि। जें मिथिला आ मैथिलीक सर्वांगीण विकास हेतु आग्रह छनि, तें मिथिला, मैथिल आ मैथिलीक प्रति सरकारी उपेक्षाक विरोध सेहो हिनक रचनामे पाओल जाइत अछि।
सन् 1987 ई. मे अपन उपन्यास “विसूवियस” क विमोचन समारोहमे कोलकाता (ताहि समयक कलकत्ता) गेल रही। ताधरि भाइ श्री रामलोचन ठाकुर हमरा लेल फड़िछायल परिचित भ’ चुकल छलाह। हिनक पोथी सभ, यथा- माटिपानिक गीत, देशक नाम छलै सोनचिड़ैया आ आजुक कविता (सम्पादित) पढ़ि चुकल रही। एतबे नहि, विभिन्न पत्र-पत्रिका सभमे ‘कह लोचन कविराय’ सेहो पढ़ने रही। ‘अग्रदूत’ आ ‘कुमारेश काश्यप’ नामसं कथा आ हास्य-व्यंग्य सेहो पढ़ने रही आ फरिछौट भ’ गेल रहय जे अग्रदूत आ कुमारेश काश्यप केओ आर नहि, दुर्घर्ष अग्नि हस्ताक्षर राम लोचन ठाकुर छथि। एतबे नहि, मुर्तजा हुसैन सेहो यैह छथि। हिनक सम्पादनमे बहरायल नाट्य पत्रिका ‘रंगमंच’ देखि चुकल रही आ प्रभावित भेल रही। एहन अग्रदूत सं भेंट आ भरिपोख गप करबाक सेहन्ता लेने सेहो कलकत्ता गेल रही।
मुदा, दुखित होयबाक कारणें ओ उल्लेखित विमोचन समारोहमे नहि आबि सकलाह। हमहीं हुनका भेंट कर’ गेल रहियनि। मिथिला आ मैथिलीक विभिन्न समस्या पर गप भेल छल। रंगमंचक अधुनातन शिल्प पर गप कयलनि।
हमरा प्रसन्नता भेल रहय जे हमर ताधरिक अधिकांश कथाक कथावस्तु आ पात्रक नाम धरि मोन छलनि। जे नीक लागल रहनि, तकर बड़ आवेशसं प्रशंसा कयलनि । आ, जे नीक नहि लगलनि, जत’ त्रुटि बुझायल रहनि वा कोनो वैचारिक मतभेद बुझायल रहनि, तकर स्पष्ट रूपें आलोचना कयने रहथि। हिनक ई गुण हमरा तहियो नीक लागल रहय आ आइयो नीक लगैत अछि।
नीककें नीक आ बेजायकें बेजाय कहबाक हिम्मति रामलोचन भाइमे छलनि। ओ मुंह देखि मुंगबा कहियो ने परसलनि। हुनक ई गुण हुनका बहुतोसं बेरबैत छनि। अपन एहि गुणक कारणें बरोबरि कतिआयल जाइत रहलाह । मुदा तकर परबाहि ओ कहियो ने कयलनि । हुनका लेल अपन सोचक मानदंड बेसी महत्वपूर्ण छलनि। हुनका स्वयं पर भरोस छलनि। आ तें ओ अपन रचनामे आ व्यवहारमे परम्पराक रूढ़िकें तोड़ैत रहलाह ।
राम लोचन ठाकुर एकटा एहन गीतकार छलाह, जे अपन गीतसं मिथिलाक बिसरल जाइत उत्सवकें मोन पाड़ैत छथि। बिसरल जाइत खेलकें अपन गीतक विषय बना ओकरा जिअ’बैत छथि। ‘माटि पानिक गीत’ नामक संग्रहमे देखल जा सकैत अछि जे हिनक प्रत्येक गीतक आखर-आखरसं मिथिला आ मैथिली अनुगुंजित होइत अछि। एहि संग्रहक खेल शीर्षकसं लिखल गीत हो वा कोनो आने, ऊपरसं तं सोझ-सोझ बुझाइत छनि, मुदा भीतरसं मरखाह आ आक्रामक छनि। हिनक काव्य रचना पढ़ने बुझाइछ जे ई सोझे-सोझी बात कहबाक आग्रही छथि। तथापि विषय वस्तुक अनुसार छन्द गढ़बाक हिनक लूरि सहजहिं देखबामे अबैत अछि। कुण्डलिया छन्दमे हिनक रचना ‘कह लोचन कविराय’ खूबे चर्चित भेल छल।
राम लोचन ठाकुर अपन कविता सभमे मातृभूमि आ मातृभाषाक विकास आ समृद्धि हेतु अपन व्याकुलताक संग देखाइत रहैत छथि। संगहि, वैमनस्य आ वैमनस्यकें प्रश्रय देल जाइत व्यवस्थाक विरोध करैत छथि। अपन रचना सभमे नव निर्माण लेल व्याकुल देखाइत छथि। नव निर्माण लेल रचैत छथि आ विद्रोह सेहो करैत छथि।
ओ आंखि खोलने सभठाम आ सदिखन ठाढ़ देखाइत छथि। सामाजिक व्यवस्था आ सांस्कृतिक मूल्यक क्षरण होअय वा शोषित-प्रतारितक दुख, राम लोचन ठाकुर सभक भंगठी लेल कलम उठौने देखाइत छथि। हमरा जनैत हिनका मोनमे अभाव घुरमुरिया दैत रहैत छलनि। जत’ अभाव देखैत छलाह, तकर निवारण लेल तैयार भ’ जाइत छलाह, उठा लैत छथि कलम। ई गुण हिनक रंगकर्मी होयबाक कारणें सेहो छलनि प्राय:। प्रस्तुतिक उत्कृष्टताक लेल जेना रंगकर्मी नाटक आ रंगमंचक कोनहु काज लेल तत्पर रहैत अछि, तहिना राम लोचन ठाकुर अपन कलम उठौने तत्पर रहैत छलाह। आ तें बहुत विधामे रचना कयलनि ।
राम लोचन ठाकुर बहुत विधामे लिखलनि। अग्रदूतक नामसं कथा, कुमारेश कश्यपक नामसं व्यंग्य। आदि, आदि। मैथिलीमे जत’-जत’ रिक्तता बुझयलनि, अपन कलमसं भरबाक प्रयास कयलनि आ सफल भेलाह । बिसरल जाइत लोक साहित्यकें ‘मैथिलीक लोक कथा’ नामक पोथीमे परसलनि ।
राम लोचन ठाकुर कुशल अनुवादक छलाह। अनुवादक प्राय: दस गोट पोथी प्रकाशित छनि। हिनक मूल लेखक आ अनुवादक, दुनू एक पर एक। हिनका द्वारा अनूदित कृति सेहो मौलिके सन लगैत छैक। एकर प्राय: इहो कारण छैक जे स्रोत भाषासं सोझे लक्ष्य भाषामे अनुवाद करैत छलाह। एखनि मैथिली मे बड़ कम अनुवादक छथि, जनिका अनुवादमे संपर्क भाषाक खगता नहि होइत छनि। बांग्लासं अनूदित पोथी सभ छनि। जे महत्वपूर्ण वस्तु अपना भाषामे आनबाक खगता बुझयलनि, जे पूरे इमानदारीसं आनलनि। कहल गेलैए जे नीक अनुवाद वैह, जे पढ़ैत काल अनुदित सन नहि लागय। से, हिनका द्वारा अनुदित नाटक होअय, काव्य संग्रह होअय वा उपन्यास, उत्तम कोटिक अनुवाद मानल जा सकैत अछि। लक्ष्य भाषामे स्रोत भाषाक लोकोक्ति आ मुहावराक सटीक अनुवाद ताकबामे हिनक कारीगरी महत्वपूर्ण छनि। एहन देखल गेलैक अछि जे स्रोत भाषाक समाजक चलन-प्रचलनक अर्थ लक्ष्य भाषाक समाजमे उनटि जाइत छैक। ओहिठामक नीक एहिठाम अधलाह भ’ जाइत छैक। ई अनुवादकक लेल चैलेंजक स्थिति भ’ जाइत छैक। किछु अनुवादक एकर शार्टकट विकल्प ताकि ससरि जाइत छथि। एहना स्थिति मे अनुवादककें बेसी सतर्क होयबाक खगता होइत छनि। ई कहैत हर्ख होइत अछि जे राम लोचन ठाकुर अपन अनुवादमे एहन कोनो शार्टकट ताकि ससरलाह नहि अछि, जकर बानगी हिनका द्वारा अनूदित उपन्यास नन्दित नरके, पद्मानदीक माझी, कठपुतरी नाचक इतिकथा, अयाचीक संधान आ काव्य-संग्रह ‘जा सकै छी, किन्तु किए जाउ’ मे देखल जा सकैत अछि।
राम लोचन ठाकुर एकटा कुशल संपादक छलाह। जखन बुझयलनि जे कवितामे रजनी-सजनी लिखल जाइत छैक, तं 1984 ई. मे ‘आजुक कविता’ नामक कविताक पोथीक संपादन क’ कविताक चित्र स्पष्ट करबाक प्रयास कयलनि । एहि पोथीमे सोमदेवसं विभूति आनन्द धरिक तेरह गोट कविक कविताक संकलन-संपादन क’ कविताकें वर्तमान परिवेश प्रसूत मानसिकताक प्रतिफलनक रूपमे प्रस्तुत कयलनि अछि।
बहुत रास पत्र-पत्रिकाक संपादनक बाद ‘मिथिला दर्शन’क कुशल संपादन कयलनि।
अपन बेसी पोथीक प्रकाशक ओ स्वयं छलाह। ओना मैथिलीमे ई बात मानल जाइत अछि जे लेखक स्वयं प्रकाशक होइत छथि। ई बात सांच सेहो अछि। मुदा, पूरा-पूरी सांच नहि। जाहि समय हिनक पोथी सभ अबैत छल, ताहि समय कलकत्तामे बहुत रास संस्था सभ छल। ई संस्था सभ बहुत रास पोथी छापलक। मुदा…
अपन स्पष्टवादी स्वभाव आ ठाहिं-पठाहिं उचित-अनुचित कहैत रहबाक कारणें राम लोचन ठाकुर बहुत गोटेकें नहि पचलाह, बहुत संस्थो कें नहि। मुदा, एहि सभक परबाहि ओ कहियो ने कयलनि।
लेखककें असल मान पाठके दैत छनि। से, पाठक हिनको मान-सम्मान देलकनि अछि। खूब पढ़ल गेलाह अछि।
अपन धुनमे मस्त अपन उद्देश्यक लेल बढ़ैत रहलाह अछि।
साहित्य आ समाजक गोलैसीसं फराक रहैत अखण्ड मिथिला आ मैथिली लेल सोचैत रहलाह। मुदा, एहन-एहन गोलैसीकें इंगित करबामे चुकलाह नहि । काव्य-संग्रह ‘अपूर्वा’क स्मृति-चित्र शीर्षक कविताक ई पद देखल जा सकैछ–
सुनह वियोगी कान दय भलमानुष के बात।
मैथिलीक साहित्य मे सब सं पैघ गतात ।।
राम लोचन ठाकुर ईमानदारीपूर्वक मिथिलाकें मिथिला लिखैत छलाह। जिनका सभकें हिनकासं पत्राचार भेल छनि, सभ एहि बातसं सहमति होयताह । पत्र पर लिखल ठेकान पर जिलाक बाद मिथिला लिखैत छलाह। जेना, जिला-बेगूसराय (मिथिला)। सभ ठाम एहि तरहक ठेकान लिखल देखैत रहबाक सपनाक संग राम लोचन ठाकुर अंत धरि जीबि रहल छलाह। अपन क्रान्ति-यात्रामे मशाल बला हाथकें नोतैत जीबि रहल छलाह।
ओ अस्वस्थ भेलाह, अल्जाइमर सं ग्रसित भेलाह, हठात् अलोपित भेलाह आ भेटल हुनक लहास। हृदयविदारक स्थिति भेलैक। मैथिल समाज कानि उठल छल। आइ हुनक दोसर पुण्यतिथि अछि। आइ सदेह ओ नहि छथि, मुदा हुनक विपुल साहित्य समाज लग स्वस्थ भेल ठाढ़ अछि आ रहत।
नमन भाइ।
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(ई लेख विदेह द्वारा प्रकाशित ‘रामलोचन ठाकुर विशेषांकमे तखन छपल छल, जखन ओ जीवित छलाह। आजुक स्थितिक अनुसार एहि लेखमे थोड़ेक परिवर्तन कयल गेल अछि।)
– प्रदीप बिहारी