“हस्तक्षेपक स्थानपर सहयोग केर भूमिका होमय के चाही।”

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— कीर्ति नारायण झा।       

मिथिला में एकटा प्रसिद्ध कहबी छैक जे “हुलकेने कुकूर शिकार नहिं पकड़ैत छैक” अर्थात् यावत् धरि ककरो अपन मोन सँ इच्छा जागृत नहिं हेतैक तावत् ओ कोनो काज सफलता पूर्वक सम्पादित नहिं कऽ सकैत अछि। यएह होइत छैक बच्चाक भविष्य आ रोजगार के चयन प्रक्रिया में। सभ माय बाप के यएह इच्छा होइत छैन्ह जे हमर धिया पूता आइ ए एस अधिकारी बनैथि आ जँ से नहिं तऽ डाँक्टर इन्जीनियर तऽ अवश्य बनैथि, मुदा इ निर्भर करैत छैक बच्चा के मनोदशा पर जे बच्चा की बनय चाहैत अछि? पहिले के समय के अपेक्षा वर्तमान में परिस्थिति आओर बेसी भयावह भऽ गेल छैक। दिनानुदिन प्रतियोगिता बढल जा रहल छैक। हमर सभक बाबूजी आ पित्ती के जमाना में रोजगार लोक के अत्यंत सहजता सँ भेटि जाइत छलैक कारण जनसंख्या कम छलैक आ ताहि हिसाबे लोक शिक्षा आ रोजगार पर कम ध्यान दैत छलैक। खेतीबाड़ी के स्थिति बहुत नीक छलैक, पलायन के स्थिति नहिं छलैक, मुदा आब स्थिति उलटि गेलैक अछि। शत प्रतिशत रोजगारोन्मुखी लोक भऽ गेल अछि। एहेन परिस्थिति मे माय बाप केर भूमिका अत्यन्त सम्वेदनशील भऽ गेलैक अछि जे ओ अपन धिया पूता लेल समय निकालि कऽ ओकर इच्छा के जनवाक प्रयास करवाक चाही आ तदनुसार ओकरा ओहि में सहयोग करवाक चाही नहिं की ओकरा पर अप्पन इच्छा थोपवाक चाही। एकटा हिन्दी फिल्म थ्री इडियट मे एहि सम्बन्ध में बहुत सुंदर चर्चा कयल गेल छैक महान कैरियर गुरु बाबा रणछोड़ दास द्वारा जे जँ कियो अपन मन जोगर काज के पाछू इमानदारो सँ लागि जाइत अछि तऽ ओ ओहि में निश्चित रूप सँ सफलता प्राप्त करैत अछि। वास्तव मे इ सत्य छैक मुदा माय बाप के अपन धिया पूता के अन्तर्मन सँ कखनो दूर नहिं होयवाक चाही जेना इ नहिं जे जे मोन होअय से काज करू। हस्तक्षेप के स्थान पर सहयोग केर भूमिका होयवाक चाही नहि तऽ सिनेमा के हीरो हीरोइन बनवाक चक्कर में लाखो जिनगी तवाह होयवाक आशंका सेहो रहैत छैक। माय बाप के अपन धिया पूता के संग सदैव मानसिक रूप सँ जूड़ल रहवाक चाही आ उचित मार्गदर्शन दैत रहवाक चाही कारण ओकर दिमाग अभिभावक के तुलना में कम परिपक्व होइत छैक। ओकरा सफलता के विषय में सतत् आगू बढैत रहवाक प्रेरणा दैत रहवाक चाही संगहि ओकरा नीक सँ नीक वातावरण उपलब्ध करेवाक ब्यवस्था माय बाप के करवाक चाही। ओकरा सदैव आत्मविश्वास के बढेवाक प्रयास करैत रहवाक चाही आ ककरो सँ तुलना नहिं कऽ कऽ ओकर प्रतिभा के सुदृढ मानि सतत् ओकर उत्साहवर्धन करैत रहवाक चाही। नीक अभिभावक आ नीक वातावरण पावि धिया पूता के सफलता निश्चित रूप सँ भेटैत छैक एकर इतिहास सदैव गवाही रहल अछि। एहि सम्बन्ध में निदा फाजली के ओ पाँती अत्यंत महत्वपूर्ण अछि जे,”नजदीकियों में दूर का मंजर तलाश कर, जो हाथ में नहीं है, वो पत्थर तलाश कर, सूरज के इर्द-गिर्द भटकने से क्या फायदा, दरिया हुआ है गुम तो समंदर तलाश कर, कोशिश भी कर, उम्मीद भी रख, रास्ता भी चुन, फिर उसके बाद थोड़ा मुकद्दर तलाश कर”