— उग्रनाथ झा।
बच्चाक चतुर्दिक विकासक संपूर्ण ताना बाना ओकर परिवेश सं प्रभावित होएत छैक । ओ जाहि माहौल में रहत , जेहन संसर्ग रहतैक तेहने चारित्रिक निर्माण होएत छैक । ताहि हेतु माता पिता के प्रथम जिम्मेवारी रहैत छन्हि जे सर्वप्रथम बच्चाके के आदर्श माहौल उपलब्ध कराबथि। जाहि सं हुंकार शारिरिक,मानसिक विकास संभव भ सकै । किएक त विपरीत माहौल में सकारात्मकता के प्रयास अल्प फलदायी होईत छैक ।जेकर कारण अभिभावकक अनावश्यक दबाब सं बच्चा पथ विचलित आ कुंठित भ सकै छै । एहि कारणे बहुत बच्चा विद्यालयी पढ़ौनी पूरा करै सं पहिने बस्ता खुट्टी पर टांगि दैत छैक । ताहि हेतु अभिभावक के प्रथम कर्तव्य जे बच्चाक शिक्षा सं लगाव प्रगाढ़ करबाक सौहार्द प्रयास करबाक चाहि। बिना कोनो भी अतिरिक्त दबाव देने ।
दोसर बिन्दू देखबा में अबैत छैक जे अभिभावक सतत अपन स्वप्न के बच्चा पर थोपि दैत छथि। जाहि सं बच्चा के अंतरात्मा में स्वत: द्वंद उत्पन्न करैछ। उदाहरण स्वरूप बच्चा अपन करियर यदि कला के क्षेत्र में तैयार करय चाहै छथि परंतु अभिभावक अपन इच्छानुसार सरकारी नौकरी प्राप्त करबाक लेल जोर दैत छथि। एहन परिस्थिती में बच्चाक स्वप्न आ अभिभावक स्वप्नक द्वंद के सतत टकराहटि बच्चाक अंतर्मन में चलैत रहैत अछि। जे अंततः बच्चाक कुंठाग्रस्त करैत छैक आ जाधरि बच्चा अपना आप के कोनो निराकरण पर तैयार भ सकै ताबैत समय निकैल गेल रहैत छैक। ताहि हेतु एहन परिस्थिती में अभिभावक के कर्तव्य बनैछ जे बच्चा के कोनो भी लक्ष्य संधान करेबा सं पूर्व ओकर अंतर्मनक जिज्ञासा जनैत ओकर सबल आ निर्बल पक्ष पर पूर्ण रूपे जानकारी दि जाहि सं बच्चाक मन में ओहि लक्ष्यक प्रति ललक उत्पन्न होए आ स्वविवेक सं रमि जाए ।
तेसर स्थिति जे अभिभावक बच्चाक मोन रखबाक हेतु बच्चा द्वारा चयनित लक्ष्य के प्राप्ति हेतु सहज स्वीकृति त द दैत छथिन्ह परंतु बाद में भिन्न भिन्न कारणे जहन अभिभावकक दायित्व निर्वहन में समस्या उत्पन्न होमय लगैत छन्हि तहन नाना प्रकारक खड़िछियाह बात कहि बच्चाके शिघ्र लक्ष्य प्राप्ति हेतु उत्तेजीत करय लगैत छथि। परिणामस्वरूप बच्चाक एक दू प्रयास निष्फल होईत छैक त अवसाद में चली जाए छैक वा अभिभावक सहयोग लै सं कतराईत अन्य विकल्पक चयन करैत अछि। उक्त दूनु परिस्थिती सं लक्ष्य प्राप्ति में बाधा उत्पन्न भ सकैत छै । ताहि हेतु अभिभावक के कोनो भी तरहक लक्ष्य निर्धारण सं पूर्व अपन आर्थिक आ बच्चाक मानसिक क्षमता पर सम्यक विचारोपरांत लक्ष्यक चयन हेतु दूनू के बीच खुजल विमर्श होएबाक चाही । अन्यथा हाथ किछु नहि आओत ।
चारिम बिन्दू अछि जे कखनो भी अभिभावक के अपन बच्चा लेल देखौस वाला लक्ष्य नहि निर्धारित करक चाहि जेना फलामाक बच्चा/बुच्ची डाक्टरी पढ़ै छै त हमर कोन ओकरा स कम । एहन सोच सतत समाज में उपहासक पात्र बनाओत । किएक त हर व्यक्तिक मानसिक क्षमता भिन्न भिन्न होईत छैक । ताहि हेतु अभिभावक के सतत निम्न बिंदू पर ध्यान रखैत लक्ष्यक चयन करबाक चाहि ।
1) सर्वप्रथम बच्चाक आंतरिक इच्छा सं उत्पन्न लक्ष्य आ ओहि लक्ष्य भेदन लेल अभिभावक आवश्यक योगदान (आर्थिक) लेल सम्यक क्षमताक आंकलन । यदि अभिभावक दायित्व निर्वहन में असक्षमता परिलक्षित हो त वैचारिक विमर्श सं बच्चाके संतुष्ट करि।
2) यदि अभिभावक अपन स्वप्न बच्चाक माध्यमे पूर्ण करय चाहैथ त ओहि सं पहिनने बच्चाक मानसिक क्षमताक सहि सहि आकलन आ फेर ओहि के प्रति बच्चा मानसिक रूपे सजग केनाय ।
3) तेसर यदि आपसी समन्वय स कोनो भी लक्ष्य निर्धारित करी त ओकर प्राप्ति हेतु समयक सीमान नमहर खिंची । जाहि सं लक्ष्य भेदन में लगैत समय अभिभावक के उबाऊ नहि बुझेतनि आ अभिभावक संयम बच्चा के लक्ष्य प्राप्ति लेल उर्जान्वित करतन्हि।
अतः कहि सकैत छि जे बच्चा के भविष्य आ रोजगार के चयन में माता पिता के भूमिका ठिक ओहिना छैक जेना नदि जल प्रवाह के दू तरफी बान्ह । जेना जल प्रवाह के गति आ शक्ति के आकलन करैत बान्ह विशाल जलधाराक प्रवाह के दिशा दैत अछि । जखन वेग बलवती भेल त अपन कटान सं प्रवाहित क गति नियंत्रित करैत अछि। तहिना अभिभावक अपन यथाशक्ति सामर्थ्यक अनुरूप बच्चा इच्छानुसार लक्ष्य निर्धारित करबाक स्वतंत्रता देथू । अन्यथा यदि अनावश्यक रूपे लक्ष्य थोपैत छथि त बाढ़िक पानि सदृश बच्चाक लक्ष्य छिड़िएबाक संभावना प्रबल रहत ।