स्मृतिक दंश:लप्रेक

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6मार्च2023,मैथिली जिन्दावाद।।

|| लप्रेक ||

#स्मृतिक_दंश 
🕳️
से एतऽ अबिते मोन पड़ि गेल. लागल जेना क्यो सोर करैए– ‘कहाॅं जाइ छे, बइठ न !’
– ‘की कोनो काज छौ की ?’
– ‘नः, बस ओनाहिते ! हमरा ऐ जग बइठे मे बड़ा निम्मन लगै हय !’
– ‘तऽ तोरा निम्मन लगने हमरा ? जाइ छी इसकुल !’
– ‘सब दिन तऽ जाइते छे, एकदिन हमरो भिरू तऽ बइठ !’
– ‘नै गे, तों नै बुझबीही !’
– ‘की ?’
– ‘माय कहै छै, नै पढ़बें तऽ बऽहु के कोना डेबल हेतौ !’
– ‘बप्प रे बप्प, अभिये से बऽहु के फिकिर !’
– ‘तोरे सब के ठीक छौ ! पढ़ तैयो, नै पढ़ तैयो…’
…आ गप करैत कखन रूही लग आबि बैसि गेलहुॅं, से ने तॅं ओ बुझलक, आ नेे हम !

से हमरा बैसिते रूहीक माथ पर मज्जर झड़लै. आ ओ महोर भऽ उठलि– ‘अही लागी तऽ ऐ ठियाॅं बइठै छिऐ, देखही !’
– ‘की ?’
– ‘सुॅंघही न, मज्जर हइ !’
– ‘सुॅंघने छिऐ, मदहोस कऽ दै छै !’
– ‘हम तऽ साफे पगला जाइ छिऐ…’
से गप करिते रही, कि कोम्हरो सॅं कोइली कुहुकलै– ‘कू उ उ उ…!’
– ‘इस्स !’
– ‘की भेलौ ?’
– ‘कुछ न. ई करिकबा तऽ हमरा जीये न देतै !’
– ‘से की ?’
– ‘कते जहर हइ एकर बोली मे !’
…आकि भक् टुटि गेल– जाह, ई की भऽ गेलै !

से जहिया सॅं ‘हर्ट’क आपरेशन भेल, ई सभ सोचनाइ छोड़िये देने रही. मुदा…
…आ तकर संग अनेक-अनेक तर्क, अनेक-अनेक मनोरथ– कतऽ हेतै रूही ! की ओकरो अहिना याद अबैत हेतै ? की नैहर अयला पर ओहो अबैत हैत एतऽ !…
…से इच्छा होइए, मरऽ सॅं पहिने जॅं एकबेर भेंट भऽ जैतय ! आ दुनू गोटऽ एतऽ बैसि कऽ एकबेर फेर सॅं स्मृतिक एहि दंश कें जीबि लितिऐ !…
कि तखनहि पोता टोकि बैसल– ‘चलू न बाबा ! एतऽ ठाढ़ भऽ कऽ की सब सोचऽ लगलिऐ ?’
आ हम हड़बड़ा गेलहुॅं– ‘नै, कत्तौ किछु नै…’

लेखक:-विभूति आनन्द