“युवा-युवतीकेँ वैवाहिक जीवनपर आधुनिक शिक्षाकेँ दुष्प्रभाव “

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— आभा झा।         

ओना तऽ हमरा सभकेँ भलीभाँति ज्ञात अछि कि शिक्षा शुरू सँ ही मनुष्यक लेल एक मूल आवश्यकता रहल अछि। एकरे बदौलत हमरा अपन जीवनकेँ निखारैकेँ नब आयाम भेटैत अछि। मुदा पिछला दू दशक सँ आधुनिक शिक्षा प्रकारान्तर सँ मानवीय संबंधकेँ विशेषतः आजुक युवक-युवतीक वैवाहिक संबंधकेँ तहस-नहस कऽ देने अछि। एहि कारण सँ लगभग सभ युवा-युवतीक वयस पच्चीस पार भऽ रहल अछि। पच्चीसक बाद दू-तीन साल नौकरी, बिजनेस कयलाक बाद विवाहक नंबर अबैत छैक। एहि कारण लड़का-लड़कीकेँ वयस तीसक आस-पास भऽ जाइत अछि। आइ काल्हिकेँ युवा आ युवती आर्थिक रूप सँ आत्मनिर्भर भेलाक कारण अपन मर्जीकेँ मालिक भऽ गेल छथि। ओ सब एहि विवाहक संबंधमे बन्हय लेल जल्दी तैयार नहिं होइत छथि। कियैकि हुनकर स्वतंत्रता एहि सँ छिन जेतेन। आजुक युवाक यैह सोच जतऽ हुनकर अपरिपक्व मस्तिष्कक देन अछि, ओतहि जवानीक जोश सेहो अछि, जाहिमे होश नहिं रहैत अछि। पाश्चात्य चकाचौंधक पाछू आजुक पीढ़ी जकड़ल जा रहल अछि। विवाह भेलाक बाद तीन-चारि साल बच्चा पैदा नहिं केनाइ आजुक आधुनिक शिक्षाक देन अछि। कतेक युवक-युवती तऽ विवाहक एक वर्षक अंदर अगर गर्भमे बच्चा आबि गेल तऽ ओकरा अपन नौकरी आ स्वतंत्रताक लेल गर्भपात करा दैत छथिन। कतेकोकेँ तऽ बेसी वयसमे विवाह भेलाक कारण माँ बनयकेँ सुख सँ वंचित होमय पड़ैत छैन्ह। ई सभ आजुक युवा-युवतीक खान-पानक शैलीक कारण सेहो भऽ रहल अछि। आजुक युवा-युवती विवाह सँ पहिने ‘ लिव इन रिलेशनशिप ‘ में रहनाइ पसंद करैत छथि। आधुनिक कालमे एकरा युवा स्त्री-पुरूखक ‘ बिन फेरे हम तेरे ‘ सहजीवन कहल जा सकैत अछि। भारतमे युवामे ‘ लिव इन रिलेशनशिपक ‘ स्वीकार्यता बढ़ि रहल अछि। शायद ताहि दुवारे कियैकि ई धर्म, जाति, वर्ग आ नस्लक परे जा कऽ संबंधकेँ मान्य करैत अछि। ‘ लिव इन रिलेशनशिप ‘ होइकेँ कारण उन्मुक्त जीवन जीबयकेँ चाह, सही वयसमे विवाह नै भेनाइ, आर्थिक संकट, पसंदीदा वर या कनियाँ नहिं भेटनाइ भऽ सकैत अछि। यैह कारण अछि कि युवक द्वारा युवतीकेँ खंड-खंड काटि कऽ फेक देल जाइत अछि, एकर पाछू आधुनिक शिक्षा आ रहन-सहन पूर्ण रूप सँ जिम्मेदार अछि। अपन सभक समाजमे एखनो माता-पिता द्वारा कराओल गेल विवाहकेँ बेसी सफल मानल जाइत छैक। आजुक युवा-युवती तऽ पहिने एक-दोसर सँ चारि-पाँच मास गप्प करता, एक-दोसरकेँ बुझता, डेट करता तखन मोन मिलतैन तऽ विवाहक हामी भरता। आजुक आधुनिक शिक्षाक एकमात्र उद्देश्य छैक खूब पाई कमेनाइ। एकर अलावा किछु नहिं। सत्यं वद, धर्म चर, स्वाध्यायप्रवनाभ्यां न प्रमदितव्यम् जेहेन वाक्य सँ शिक्षा दऽ कऽ मानव बनाबैकेँ परिकल्पना आजुक शिक्षामे नहिं छैक। आजुक युवा-युवतीक वैवाहिक जीवनमे करियर आ समयक अभावक कारण संबंधमे दरार आबि रहल छैक। आजुक समयमे युवा-युवती एक संगे कंपनीमे काज करैत छथि आ ओ सभ पार्टीमे धुम्रपान, नशा सेहो करैत छथि। आजुक युवा वर्ग नशाक जालमे जकड़ल जा रहल अछि। संभ्रांत वर्गक युवा-युवती
अपन शान बढ़बैकेँ लेल नशाक शौक पालने छथि।ई चिंताक विषय अछि। संक्षेपमे कहल जाय तऽ आजुक युवा-युवतीक आदर्श वाक्य भऽ गेल छैक –
यावत् जीवेत् सुखम जीवेत्।
ऋणम् कृत्वा घृतं पिबेत।
भस्मिभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः।
जय मिथिला, जय मैथिली।

आभा झा
गाजियाबाद