“स्त्री विमर्शपर कला आ साहित्य जगतकेँ द्वारा उठाओल गेल ठोस डेग आ ताहि केर प्रभाव “

338

— आभा झा।     

ओना तऽ कला साहित्यक क्षेत्रमे अपन देशमे स्त्रीगण आदिकाले सँ सक्रिय रहैथ – मैत्रेयी, गार्गी, आम्रपाली आदिकेँ नाम के नहिं सुनने अछि – मुदा स्त्री विमर्शक अवधारणा आधुनिक समय आ समाजक प्रतिफल अछि। देखल जाय तऽ स्त्रीगणक लेखन अपन मूल प्रवृत्तिमे प्रतिरोधक लेखन अछि, चाहे ओ बेर-बेर प्रेमी बदलवाक आ यौन शुचिताक अवधारणा पर प्रश्नवाचक ठाढ़ करयवाला कहानी लिखि रहल होइथ अथवा सत्ताक प्रतीक पुरूषक घर सँ निकललाक बाद भनसामे राहतक साँस लैत, मुक्तिक अँगड़ाई लैत स्त्रीक कविता कहि रहल होइथ। प्रतिरोध आ अस्मिताबोध सँ लबालब एहि तरहक रचना आजुक स्त्री साहित्यक दर्शनक मूल आधार अछि। ई दमन आ अपमानक दमघोंटू धुआँ सँ बाहर निकलै, खुजल हवामे इत्मीनानक साँस लेबयकेँ साहित्य अछि। ई हुनकर अनुभवक गर्भ सँ जन्मल साहित्य अछि। आजुक स्त्री-लेखनमे बहुवर्णी आ अनेक परत आ विविध प्रकारक
विडंबना, रोचक जीवन स्थिति सँ भरल यथार्थ एकदम नब बिंब आ कथावस्तुक संग उपस्थित होइत अछि, जे पाठककेँ प्रायः चमत्कृत करैत अछि।
वस्तुतः स्त्री रचनाकार जखन अपन गिरह खोलैत साहित्यमे उपस्थित होइत छथि तऽ सहस्राब्दी पुरान पितृसत्तात्मक समाजक चेहराक असल रंग-ढंग देखाइ दैत अछि।ई विशेषता समकालीन स्त्री-कथा लेखनकेँ भविष्यक संघर्ष आ असमानता सँ मुक्तिक लेल सजग-सचेत बनबैत अछि। इक्कीसवीं सदीक कथा-लेखनमे स्त्री -चेतनाक ई फलक निरंतर व्यापक होइत जा रहल अछि जाहिमे नब पीढ़ीक अनेक युवा स्त्री
कथाकार सक्रिय आ सजृनरत अछि। ई रचनाकार अपन अनुभव आ यथार्थक कथा-लेखनमे जाहि विश्वसनीय रूप सँ अंकित कऽ रहल छथि ओ स्त्री समाजक लेल हुनकर अनभक संघर्षक दीर्घ स्वप्न आ हुनकर रचनात्मकताक सेहो केंद्रबिंदु अछि। समाजक वर्चस्ववादी
आ रूढ़िवादी सोचक विरुद्ध जे वैचारिक स्तर पर जे संघर्ष कएल जा रहल अछि आ वर्तमानमे भयावह होइत स्त्री -हिंसा आ शोषणक परिदृश्यमे स्त्री-कथा लेखनक भूमिका, नब युगक विमर्श रचि रहल अछि।
समकालीन कथा-साहित्यक लोकप्रिय परिदृश्यमे युवा स्त्री-कथाकारक भूमिका अविस्मरणीय मानल जा सकैत अछि जिनकर लेखन अपेक्षाकृत रूप सँ बेसी समृद्ध आ विविधतासंपन्न रूपमे पाठकक सामने आयल अछि। स्त्री रचनाकार एक पैघ बदलावक संग आत्मविश्वास सँ अपन सुख-दुःख, आक्रोश, अनुभव आ असहमतिकेँ व्यक्त कऽ रहल छथि। अनुभव कखनो इकहरा नहिं होइत अछि। अलग-अलग व्यक्तिक अनुभव अलग-अलग होइत अछि, ओहिमे भेद होइत अछि। ताहि दुवारे स्त्री-लेखनकेँ कोनो एक सूत्रमे बान्हनाइ सर्वथा कठिन होइत अछि। यैह ओकर खूबी अछि। एहि सँ ओकरा बहुरंग आ विविध आकर्षक छटा हासिल होइत अछि। यैह तत्व ओकरा खूबसूरत बनबैत अछि।
स्त्री अपन दैनंदिन जीवनमे जे प्रतिबंध झेलैत अछि, पुरूष ओकर कल्पना मात्र कऽ सकैत अछि जे प्रायः आंशिक आ एकांगी होइत अछि। स्त्री लेखन ओहि प्रतिबंध आ दमनक प्रतिरोधक सार्वजनिक उद्घोष अछि आ एहि प्रतिरोधक वजह सँ ओ समाजक अन्य वंचित हाशिये पर छूटल समूहक स्वर दैत प्रतीत होइत छथि।
अपन जीवनमे स्त्री होइकेँ कारण पेश आबय वाला अनेक घटनाक्रम सँ जूझैत ओ बेर-बेर अपन जेहेन स्थितिमे रहय वाली स्त्रीक जीवनक मुआयना केलनि। स्त्री रचनाकार अपन नानी, बाबी, मायक जीवनकेँ देखने छथि आ चाहैत छथि कि हुनकर जीवन हर हालमे हुनका सँ अलग हेबाक चाही। आजुक दौरकेँ सब सँ नीक बात ई अछि कि आजुक रचनाकारक स्त्री-पात्र अपन वर्तमानमे जीबय छथि आ जे दुःख हुनकर नानी, बाबी आ मायक आँचरमे पलि रहल छल ओ ओकरा विदा कऽ देलनि। आब स्त्रीकेँ कोनो चोर दरवाजाकेँ जरूरत नहिं अछि ओ मेन गेटमे प्रवेश करैत अपन मनचाहा जीवन जीबी रहल अछि।
एकटा बिल्कुल नब रचनाकारक कथाक अंतिम पाँति हमरा याद आबि रहल अछि जाहिमे एक युवती जे अपन मंगेतरकेँ विवाह सँ इनकार कऽ दैत छथि कियैकि एहि बीच ओ कोनो दोसर युवककेँ पसंद करय लगलीह, ओ कहैत छथि आब लिखय लेल किछु नहिं बचल हम आब जीवन चाहैत छी। जीवनकेँ जीबयकेँ इच्छा जतेक शिद्दत सँ आजुक स्त्री-पात्रमे अछि शायद पहिने कखनो नहिं देखल गेल कियैकि आजुक स्त्री आसमानक दूरी नापि लेने छथि आ साहित्य तऽ समाजक आईना मानल गेल अछि।
जय मिथिला, जय मैथिली।

आभा झा
गाजियाबाद