“स्त्री विमर्शक अभिप्राय अछि जे साहित्यिक आंदोलन स्त्रीक अस्मिताकेॅं केन्द्रमे राखि स्त्री साहित्यक आ कलाक निर्माण कयल जाए।”

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— उग्रनाथ झा।     

साहित्य समाजक दर्पण कहल जाएत छैक त कला साहित्यिक सृजनक उद्बोधन छैक । दुनूक संगमक प्रतिफल जे समाज में चेतनाक संचार सतत प्रगतिशीलता के पथ प्रशस्त करैत रहल अछि । ताहि हेतु साहित्य आ कला क क्षेत्रमे जतेक स्वस्थ्य आ स्तरीय विमर्शक स्थान प्राप्त होएत समाज ओतबे सुसंस्कृत आ सुव्यवस्थित होएत ।पुरातन भारतीय समाज त सभदिना सुसंस्कृत आ सुदृढ़ रहल ।परंतु आधुनिक समाज में थोड़ बहुत विकृति सं प्रभावित रहल जाहिके सुव्यवस्थित करबाक हेतु सतत कलमजीवी अपन उपस्थिति दर्ज करबैत रहैत छथि।
जहांतक स्त्री विमर्शक बात छैक त सतत ई कला आ साहित्यिक केन्द्र में रचल-बसल रहल अछि । सतत साहित्यक प्रणेता लोकनि अपन मोइस’क धार स’ समाजमे स्त्रीक दशा आ दिशा में नव गति देबाक प्राथमिकता तय करैत रहलाह अछि। स्त्रीक मजबूत चित्रण में यथा सामाजिक स्थिति , शिक्षा , चेतना पर केन्द्रीत करैत सुधारवादी डेग के मजगूत करैत रहल अछि।
तहिना सृजीत साहित्यिक चेतना के शिक्षा विहीन समाजक अंग के मानस पटल पर उतारबाक लेल चित्रात्मक कला आ चलचित्रात्मक अभिनय के माध्यमे जागरूकता आ मार्गदर्शन अदौकाल सं होएत रहल छैक । चाहे ओ कोनो भी समाजिक परिदृश्य लेल होए ।उदाहरण स्वरूप बहुतरास भाव नृत्य , गायन , लिखिया पेंटीग , आ चलचित्र उपलब्ध अछि। जेकरहि प्रतिफल जिनका लेल कारि अक्षर मोइस बराबर ओहो कला के माध्यमे स्वस्थ्य समाजिक सरोकारक विमर्श सं भिज्ञ भ जाएत छथि।
जतए तक स्त्री विमर्शक अभिप्राय अछि जे साहित्यिक आंदोलन स्त्री अस्मिता के केन्द्र में राखि स्त्री साहित्यक आ कला के निर्माण कयल जाए ।जाहि के केन्द्र में नारि पुरुष समानता , नारी अधिकार , लिंग विभेदक विरोध केन्द्रीत हो । साहित्यिक आ कलात्मक जागृतिक प्रतिफल जे विधवा विवाह, बाल विवाह,बहुपत्नी प्रथा के विरूद्ध जनजागृति उत्पन्न भेल । फलस्वरूप आई बहुतहि सुधार देखबामे आबि रहल छैक । ई जागरण विश्व के एक छोर सं दोसर छोर तक अपन प्रभाव स्थापित करबा में सक्षम रहल आ आई कहबा में असोकर्ज नहि जे दोयम दर्जा में जीनिहारि आब पुरुषक संग डेग सं डेग मिलाक’ सभ क्षेत्र में अपन योगदान दय रहली अछि।एहि में कियो एक नहि बल्की अनेकानेक बुद्धिजीवी लोकनि अपन सियाहीक छाप सं चेतना जगाबैत रहलाह चाहे राजा राममोहन राय , ज्योतिबाफुले हो वा सावित्री फुले , रमाबाई , एलिजाबेथ कैंडी हो वा स्टैण्टण इत्यादि।
मुदा साहित्यिक आ कला के क्षेत्र जे सतत नारी स्वच्छंदताक अलख जगा सशक्त समाजक निर्माण में अहम भूमिका निभौलक ओहि में किछु अतिवादी विचारधाराक विकृत प्रदर्शन समाजे में अपवाद स्वरूप विभत्सता सेहो घोरबाक काज क रहल छैक । जेना चलचित्र जतय समाजमे वास्तविक चित्र प्रदर्शित करैत छैक ओतय अतिवादी सोच ग्रसीत चलचित्र समाज में फुहरता नग्नता आ लैंगिक हिंसाक जन्मदाता सेहो साबित भ रहल छैक । ताहि हेतु हमरा सभके स्वच्छ साहित्यिक आ कलाक सृजन आ पुष्पित पल्लवित करबाक ध्येय हो जे सागरक मोती साबित होय आ समाजिक स्वस्थ्य चेतना जागृत होए।
सादर ।।