— कीर्ति नारायण झा।
“ढोल गवार शुद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी” गोस्वामी तुलसीदास जी केर रामचरित मानस में अर्थ के अनर्थ लगा कऽ राजनीति के बजार लोक गरम कऽ रहल छैथि, नारी के लेल नहिं शुद्र शब्द सँ राजनैतिक भदवरिया बेंग के समस्या छैन्ह। नारी लोकनि चुप छैथि कारण हुनका लोकनि के गोस्वामी तुलसीदास जी के शब्द आ कहवाक तात्पर्य बुझवा में आबि रहल छैन्ह। ओना अपना सभक ओहिठाम के विद्वान लोकनि अपन लेखनी मे स्त्री के भूमिका के कंजूसी सँ स्थान देने छथिन, एहि में कोनो संदेह नहि मुदा स्त्री विमर्श पर कला जगत के मिथिलांचल के नारी झकझोरि कऽ राखि देने छैथि। अपन पेंटिंग के कलम चला कऽ मिथिलाक जितवारपुर मधुबनी के सीता देवी एहि संसार के देखा देलखिन्ह जे हुनक कलम में कतेक ताकत छैन्ह। मिथिला पेटिंग जाहि पर मुख्य रूप सँ स्त्रीगणकेँ आधिपत्य छैन्ह आ समस्त संसार में अपन एकटा विशिष्ट स्थान बनाओने अछि आ अत्यन्त गर्व सँ मिथिलाक संग संग भारत के नाम उज्वल कयने अछि। आइ आन देश मे भारत केर चर्चा मिथिला पेंटिंग के कारण कला आ संस्कृति के क्षेत्र में उत्कृष्ट स्थान प्राप्त करवा में महत्वपूर्ण योगदान देने अछि।भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नारी शक्ति केर भूमिका के चर्चा साहित्य में सीमित रूप सँ कयल गेल अछि। ओहि मे पुरूष प्रधान समाज होयवाक कारणे बाहरी संघर्ष केर चर्चा समुचित रूप सँ कयल गेल मुदा संघर्ष में घायल सेनानी के घर में समुचित सेवा कऽ कऽ पुनः संघर्ष के लेल तैयार करैत स्त्री शक्ति पर लिखनिहार के ध्यान नहिं गेलैन्ह। स्त्री समाज अपन सभ सख मनोरथ के त्यागि स्वतंत्रता सेनानी के लेल समर्पित भाव के चर्चा साहित्य में स्थान प्राप्त करवा में असफल रहल। साहित्य केर प्रभाव एतेक पड़ैत छैक जे ओहि में जाहि चीज केर चर्चा कयल जेतैक आम आदमी के संज्ञान में वेएह तथ्य अबैत छैक।भारत के पहिल प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के ओ प्रसिद्ध वाक्य जे “लोक के जगेबाक लेल स्त्रीगण के जागृत भेनाइ जरूरी अछि”। स्त्रीगण जखन अपन पएर आगू करैत छैथि तऽ संग संग हुनक परिवार आगू बढैत छैन्ह, समाज आगू बढैत अछि, संग संग देश समृद्धि के रस्ता पर आगू बढैत अछि। अपना देश मे स्त्रीगण के सशक्त बनेबाक लेल समाज में हुनकर अधिकार मारवाक लेल हुनक राक्षसी सोच जेना दहेज प्रथा, अशिक्षा, भ्रुण हत्या, यौन हिंसा इत्यादि के मारनाइ सभ सँ जरूरी अछि। लैंगिक असमानता के दूर कऽ कऽ महिला सशक्तिकरणक के आगू बढाओल जा सकैत अछि। हिन्दी कथा साहित्य में नारी मुक्ति के लऽ कऽ विमर्श 1960 ई. में पश्चिमी भारत में शुभारम्भ भेल छल आ जेकर कर्ता धर्ता उषा प्रियंवदा, कृष्णा सोबती, मनु भंडारी आ शिवानी छलीह। इ चारू स्त्रीगण के अन्तर्मन में नुकाएल शक्ति के चिन्हलनि आ हुनकर दिशाहीनता, दुविधाग्रस्तता, कुण्ठा इत्यादि के साहित्य में विश्लेषण कयलनि। स्त्री विमर्श पर सभ सँ कटुतापूर्ण शब्द केर उपयोग सेमाओन द वेउवोर आ डोरोथी पार्कर द्वारा कयल गेल छल जाहि मे ओ स्पष्ट लिखने छैथि जे स्त्री के स्त्री रूप में देखल जाए। स्त्री पुरुष सभ समान रूप सँ मानव प्राणी के रूप में स्वीकार कयल जाए। एकर प्रभाव आस्ते आस्ते अपन रूप लैत गेल आ आइ काल्हि दुनू अर्थात स्त्रीगण आ पुरूष समान रूप सँ अपन अपन स्थान एहि समाज में प्राप्त करवा में सफल भेलीह। आब प्रत्येक क्षेत्र मे लिंगभेद के समापन भऽ गेल अछि आ राष्ट्र के निर्माण में दुनू कंधा सँ कंधा मिला कऽ आगू बढैत राष्ट्रीय विकास में बरावर के भागीदार बनि आगू बढि रहल छैथि।