“आस्था आ आडंबरक बीच व्याकुल मन एकटा सामान्य दुविधा छैक।”

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— भावेश चौधरी।       

आस्था आ आडंबर के बीच व्याकुल मन एकटा सामान्य दुविधा छै,जेकरा अधिकांश लोग के सामना करय पड़ैत छैन।एक तरफ “विश्वास” जीवन में उद्देश्य के बोध, सांत्वना आर मार्गदर्शन प्रदान करैत अछि। ई कठिन समय में आराम आ आशा प्रदान करैत छै आओर नैतिक व नैतिक व्यवहार के रूपरेखा प्रदान करैत छै । दोसरऽ तरफ “आडंबर” – धन, शक्ति आ हैसियत के प्रदर्शन के क्रिया,आकर्षक आ लोभनीय भऽ सकैत छै,जेकरा चलते व्यक्ति आध्यात्मिक मूल्यऽ स बेसी भौतिक संपत्ति के प्राथमिकता दैत छैथि।
ई आंतरिक संघर्ष-अपराधबोध, भ्रम, आ असुरक्षा के भावना पैदा क सकैत छै। कतेको लोग ई सवाल उठाबै छैथ कि ओकरऽ काज ,ओकरऽ विश्वास के साथ संरेखित छै कि नै ? कियो सामाजिक मानदंड के संग फिट बैसई के तरीका के रूप में दिखावा के तरफ झुकि सकै छैथ, आ किछु लोग दिखावटी के सतही आर अपनऽ मान्यता के उलट मानैत अपनऽ आस्था स॑ कैस क चिपैक सकै छैथ।
विश्वास बहुत लोगऽ के जीवन के अभिन्न अंग छैन आ ई आराम, मार्गदर्शन आ उद्देश्य प्रदान करैत छनि। ई व्यक्ति कें अपन अनुभवक के समझ मे मदद करएयत छैन आ ओकरा अपन अगल बगल कें दुनिया कें समझय कें लेल एकटा रूपरेखा प्रदान करएयत छैन। लेकिन किछु मामला में अपनऽ आस्था के प्रदर्शन करै के इच्छा धर्म के पालन करै के आतंरिक प्रेरणा के ऊपर आबी सकैत अछि।एतहि आडंबर प्रवेश करैत अछि।दिखावा के परिभाषित कायल गेलऽ छै कि अपनऽ धन, शक्ति या धर्मपरायणता के प्रदर्शन या प्रदर्शन के तरीका,जेकरऽ उद्देश्य दोसरऽ के प्रभावित करै के होय ।
एतबे नै,आडंबर के कारण धार्मिक समुदाय के भीतर सामाजिक विभाजन आर ईर्ष्या सेहो पैदा भ सकैत छै । जेकरा बेसी पुण्य या भक्त मानलऽ जाय छै,ओकरा दोसरऽ के आक्रोश के सामना करय पईड़ सकै छै। अइ सं समुदाय कें भीतर विभाजन आ टकराव सेहो भ सकय छै आ लोग के बीच संबंधक नुकसान पहुंचा सकएय छै।
आस्था आर दिखावा के बीच के ई द्वंद्व बहुत मानसिक तनाव आ चिंता बढ़ा सकै छै । व्यक्ति अपनऽ विश्वास के प्रदर्शन करै के इच्छा आर बेईमान या पाखंडी के रूप में बूझलऽ जाय के डर के बीच फाटलऽ महसूस क सकैत छथि। अइ स अपराधबोध,लाज आ सामान्य रूप सऽ दुख के भाव पैदा भ सकय छै। व्यक्ति अपनऽ धार्मिक प्रथा जारी रखै लेल प्रेरणा के कमी सेहो महसूस क सकैत छथि।
अंततः आस्था आ आडंबर के बीच संतुलन खोजय लेल आत्मचिंतन आ आत्मनिरीक्षण के आवश्यकता होइत छैक।अपनऽ काज के पाछू के प्रेरणा के बुझनाई आ ई आकलन केनाई जरूरी छै कि ई ओकरऽ मूल्य और मान्यता के संग मेल खाय छै कि नै ? आस्था के प्रयोग आत्म-बढ़ाव या मान्यता के साधन के रूप में नै करलऽ जाय, बल्कि, सद्गुणी आ सार्थक जीवन जीबै के साधन के रूप में करलऽ जाय ।
निष्कर्षतः आस्था आ दिखावा के बीच परेशान मन एकटा जटिल आ चुनौतीपूर्ण मुद्दा छै,जेकरा लेल लोक के अपनऽ काज और प्राथमिकता के प्रति सजग रहनाय जरूरी छै । आस्था आ आडंबर दूनू के मूल्य और महत्व के मनन क एहनऽ संतुलन खोजै के कोशिश करी जे ओकरऽ जीवन में शांति आ पूर्णता हुअन।।