“व्यवहारिक अनुभव ज्ञानक मुख्य श्रोत”

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— अखिलेश कुमार मिश्रा।   

कहल गेल अछि जे मनुक्ख के पास पाँच टा ज्ञानेन्द्री होइत अछि। ज्ञानेनेन्द्री ओ अंग भेल जाहि सँ मनुक्ख कें किछु ज्ञान भेटै अर्थात मनुक्ख किछु बुझि समझि पाबै। आ एक्कर संचालनकर्ता मस्तिष्क होइत अछि।
आब बात आबैत अछि ज्ञान प्राप्त करबाक श्रोत की अछि। एकर दू टा मुख्य श्रोत अछि। एक अछि सैद्धान्तिक आ दोसर अछि व्यवहारिक। सैद्धांतिक ज्ञान ओ भेल जे पढ़ला लिखला अथवा सुनला सँ प्राप्त होइत अछि। मुदा व्यवहारिक ज्ञान किछु क’ क’ अनुभव सँ प्राप्त होइत अछि। देखल गेल अछि व्यवहारिक ज्ञान सैद्धान्तिक ज्ञान पर भारी होइत अछि। जेना भेल सैद्धान्तिक ज्ञान जे साइकिल एना चलैल जाइत अछि। अहाँ कतबो रटि लीय’ जे साइलकिल के इ बनाबट अछि, ओहि में अतेक बल पैर सँ लागओल जाइत अछि, हैंडिल एना पकड़ल जाइत अछि, आदि आदि। मुदा अगर चलाब’ लेल द’ देबै त’ सीधे मुँहे भरे धड़ाम। मुदा एक आदमी के साइलकिल के बनाबट, कोना चालाबी, हैंडल कोना पकरी आदि किछु नै बुझल, मुदा साइकिल चलाब’ में उस्ताद अछि। वास्तव में साइकिल ओ चला क’ अनुभव क’ क’ सिखने अछि। आब बात अछि अनुभव के, जे समय के संग प्राप्त होइत अछि।
देखल गेल अछि जे एक सँ एक पैघ विद्वान सभ सैद्धान्तिक ज्ञान में त’ निपुण छैथि मुदा जेखन जीवन जेखन ओकरे व्यवहार में आन’ जरूरत होइत छै त’ एक नम्बर के फिसड्डी साबित होइत छैथि। देखल गेल अछि जे एक सँ एक धर्मात्मा सभ दोसर के ज्ञान दै में बड्ड आगा मुदा अपने ओहि सिद्धान्त के पालन करै में बिल्कुल अलग। सैद्धान्तिक ज्ञान कें त’ रटि क’ प्राप्त कैल जा सकैत अछि मुदा व्यवहारिक ज्ञान बिना केने, बिना अनुभवे नै भेंटि सकैत अछि।
ऐ संर्दभ में एक किस्सा अछि जे एक बाबाजी एकटा सुग्गा पोषने रहैथि। ओहि सुग्गा कें बढ़िया सँ रतल रहै जे “शिकारी आएगा। दाना डालेगा। जाल बिछाएगा। लोभ से उस में फसना नहीं।” इ बात भरि दिन सुग्गा रटय आ सभ के सुनबैत छल। एक बाबाजी ओकर ज्ञानक परीक्षा लै के सोचलैथि। खुद भेष बदलि शिकारी बनि गेलाह। दाना डालि क’ जाल बिछा बैसि रहला। कनि कालक बाद सुग्गा जाल में आबि क’ फसि गेलै। मतलब ओकर सभ रटंत विद्या राखले रहि गेल।
प्रकृति के जतेक जीव-जंतु अछि जे किछु पढ़ि लिखि नै सकैत अछि, से अपन जीवन यापन सिर्फ व्यवहारिक अनुभव सँ ही सम्भव क’ पाबैत अछि।
ओना एक बात त’ स्पष्ट अछि जे जतेक वैज्ञानिक अविष्कार सभ अछि सभक आधार सैद्धान्तिक अछि। पहिले सिद्धान्त तहन ओकर व्यवहार। मुदा बिना व्यवहारिक ज्ञान कें सभ सिद्धान्त अधूरे रहि जाइत अछि तैं व्यवहारिक ज्ञान सैद्धान्तिक ज्ञान पर भारी अछि। ताहि सँ स्पष्ट अछि जे व्यवहारिक अनुभव ज्ञानक मुख्य श्रोत अछि। सभ कें चाही जे सैद्धान्तिक ज्ञान बेसक कतबो हुयै मुदा व्यवहारिक ज्ञान में निपुण होबाके चाही। इ सभ गुरु के लेल (माता-पिता समेत) आवश्यक अछि जे हुनकर शिष्य व्यवहारिक ज्ञान में निपुण होइ।