— आभा झा।
घरेलू हिंसाक अर्थ – शारीरिक दुर्व्यवहार अर्थात शारीरिक पीड़ा, अपहानि या जीवन या अंग या स्वास्थ्यकेँ खतरा या लैंगिक दुर्व्यवहार अर्थात महिलाक गरिमाक उल्लंघन, अपमान या तिरस्कार केनाइ या अतिक्रमण केनाइ या मौखिक तौर भावनात्मक दुर्व्यवहार अर्थात अपमान, उपहास, गारि देनाइ या ताना मारनाइ या आर्थिक दुर्व्यवहार अर्थात आर्थिक या वित्तीय संसाधन जकर ओ हकदार छथि, सँ वंचित केनाइ, ई सब घरेलू हिंसा कहबैत अछि।” महिला, वृद्ध अथवा बच्चाक संग होइ वाला कोनो तरहक हिंसा अपराधक श्रेणीमे अबैत अछि। महिलाक प्रति घरेलू हिंसाक अधिकांश मामलामे दहेज प्रताड़ना तथा अकारण मारि-पीट प्रमुख अछि”।
घरेलू हिंसा ने केवल विकासशील या अल्प विकसित देशक समस्या अछि बल्कि ई विकसित देशमे सेहो बहुत प्रचलित अछि। घरेलू हिंसा हमर छद्म सभ्य समाजक प्रतिबिंब अछि। प्रत्येक वर्ष घरेलू हिंसाक जतेक मामला सामने अबैत अछि, ओ एक चिंतनीय स्थितिकेँ रेखांकित करैत अछि। ई कार्य ग्रामीण क्षेत्र, कस्बा, शहर और महानगरमे सेहो भऽ रहल अछि। घरेलू हिंसा सब सामाजिक वर्ग, लिंग, नस्ल और आयु समूहकेँ पार करि एक पीढ़ी सँ दोसर पीढ़ी लेल एक विरासत बनैत जा रहल अछि। उच्च शिक्षित महिला सेहो घरेलू हिंसाक शिकार भऽ रहल छथि। एक महिलाकेँ परिवार सँ बाहर काज करय सँ रोकनाइ अक्सर कतेक लोक द्वारा पतिक प्यार और देखभालक रूपमे देखल जाइत अछि। एना करि कऽ महिला आर्थिक रूप सँ निर्भर होइ लेल मजबूर छथि। कखनो-कखनो महिला द्वारा अर्जित आयकेँ पति और सासुर वाला लऽ लैत छथिन और हुनका लेल किछु नहिं छोड़ैत छथिन।
घरेलू हिंसाक कारण – 1) दहेज 2) संतान पैदा करयमे असमर्थ 3) पुरूष संतान पैदा करयमे असमर्थ 4) व्यवहार संबंधी मुद्दा 5) पितृसत्तात्मक समाज।
कुल मिला कऽ दहेज घरेलू हिंसाक मामलाकेँ लेल सब सँ पैघ ड्राइविंग कारकमे सँ एक अछि। दहेज निषेध अधिनियम 1961में अस्तित्वमे आयल।हलांकि, दहेज संबंधी मौतकेँ बढ़ैत संख्या चिंतनीय अछि। दोसर अछि स्त्रीकेँ संतान पैदा करयकेँ अक्षमता। प्राचीन काल सँ स्त्रीक जीवनक परम पवित्र उद्देश्य एक नब जीवनक निर्माण केनाइ अर्थात संतानोत्पत्ति केनाइ अछि। जे महिला संतान पैदा करयमे अक्षम होइत छथि, हुनका समाज द्वारा बहिष्कृत कऽ देल जाइत अछि और हुनका अक्सर अभिशप्त कहल जाइत छैन्ह। समाजक दवाब बढ़ैत छैक जकर परिणामस्वरूप मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक शोषण होइत अछि।हालांकि, किछ मामलामे हिंसाक कारण बेहद तर्कहीन भऽ सकैत अछि, जेना कि लड़का पैदा करयमे सक्षम नै भेनाइ। ई तेसर कारण अछि। बेटाकेँ प्रति भारतक सनक आइयो जारी अछि। ई कन्या भ्रूण हत्या और हत्याक संख्या सँ स्पष्ट अछि। चारिम, पति या सासुर वालाकेँ व्यवहार संबंधी मुद्दा जेना, तामस, शराबक लत आदि। अंतमे, और शायद सब सँ महत्वपूर्ण कारक पितृसत्तात्मक समाज अछि। महिलाकेँ अक्सर पुरूषक लेल आनंदक साधन मानल जाइत अछि।
दुष्परिणाम – ई देखल गेल अछि कि, घरेलू हिंसा सँ पीड़ित व्यक्तिकेँ सोच नकारात्मक भऽ जाइत छैक। एकर संग-संग एहेन लोकक अंदर आत्मसम्मान जेहेन गुणक कमी भऽ जाइत छैक। हुनकामे घबराहट, चिंता आ अकेलापन जेहेन समस्या उत्पन्न भऽ जाइत छैन्ह। कतेक बेर घरेलू हिंसाक वजह सँ व्यक्ति नशीला पदार्थक आदि बनि जाइत अछि। एहेन स्थितिमे ओ आत्महत्याकेँ रस्ता अपना लैत अछि। एकर अलावा हुनका एहि हिंसा सँ मानसिक रूप सँ बाहर एनाइ बहुत मुश्किल होइत छैन्ह। कियैकि हुनका लगैत छैन्ह कि जे व्यक्ति पर ओ भरोस केलनि आइ वैह हुनका मारि रहल छैन्ह। हिंसाक ओ पल हुनका मोन पड़ैत छैन्ह। कतेक बेर तऽ घरेलू हिंसा सँ पीड़ित व्यक्तिकेँ मानसिक आघात एतेक खतरनाक होइत छैक कि, ओकर मानसिक संतुलन बिगड़ि जाइत छैक। घरेलू हिंसा सँ ने सिर्फ पीड़ित व्यक्तिकेँ चोट पहुँचैत अछि, बल्कि ओकर पूरा समाज और परिवार पर प्रभाव पड़ैत छैक। हिंसाक शिकार कतेको महिला सामाजिक जीवनक गतिविधिमे बहुत कम भाग लैत छथि।जखन कोनो परिवारमे एहेन घरेलू हिंसा होइत अछि, तखन ओहि घरक बच्चा सेहो आक्रामक व्यवहार सीखैत छथि।यैह बच्चा पैघ भऽ कऽ घरेलू हिंसाकेँ और बढ़ावा दैत छथि। एहेन बच्चा सभक वृद्धि और विकास सेहो रूकि जाइत अछि।
हम जखन दस बरखक रही तखन हम घरेलू हिंसाक एक घटना अपन आँखि सँ देखने छी। हमर एकटा संबंधमे पीसी छलीह जे राँचीमे रहैत छलीह। हुनका दू टा बेटा छलनि। हुनकर पति हमर पीसा शराब पीबि कऽ हुनका खूब मारैत-पिटैत रहथिन। हमर पीसी अपन दुनू बच्चाकेँ लऽ कऽ हमर घर पर कखनो दू बजे राति तऽ कखनो तीन बजे रातिमे भागि कऽ अबैत छलीह। हुनकर देह पर कतेको चोटक निशान रहैत छलनि। कखनो हाथ टूटल तऽ कखनो माथ फूटल। ओ हमर बाबूजीकेँ कहैत छलखिन हमरा हमर पति कहैत छथि कि हम अहाँकेँ मारि कऽ बोरामे डालि कऽ स्वर्ण रेखा नदीमे बहा देब।हुनकर दुनू बच्चा डर सँ अपन घर वापस नै जाय चाहैत छल। हमर बाबूजी पीसाकेँ पागलखाना सँ मुस्टंड वार्ड बाॅय पठा कऽ हुनका पकड़ि कऽ पागलखानामे बंद करवा दैत छलखिन। एहि घटनाक असर हमरो सभ पर होइत छल। हमहुँ ई सब देखि खूब डरा जाइत रही। बादमे पता नै ओहि पीसी संग कि भेलनि।
घरेलू हिंसा पर रोक लगबैकेँ लेल महिलाकेँ शिक्षित केनाइ एक उपाय भऽ सकैत अछि, मुदा समस्याक पूरा समाधान नहिं। शिक्षित स्वावलंबी नारी ही समाजकेँ शक्तिशाली बना सकैत अछि। एकर संग-संग हमरा ओहि पुरूष प्रधान सत्ताक अंत सेहो करबाक चाही, जे सदियों सँ चलल आबि रहल अछि। घरेलू हिंसा पर रोकक लेल बच्चामे एहेन संस्कार पैदा करू, जाहि सँ पुरूष और महिलाकेँ समान बुझयकेँ मानसिकता विकसित होइ। एहेन हिंसक घटनाकेँ रोकयकेँ लेल आब महिलाकेँ अपन अधिकारक प्रति जागरूक हेबाक आवश्यकता अछि, ताकि ओ स्वयं हानि पहुँचाबै वालाकेँ विरुद्ध आवाज उठा सकैथ। घरेलू हिंसाक खिलाफ आवाज उठाउ। तखने हम घरेलू हिंसाकेँ जड़ि सँ खत्म कऽ पायब। जय मिथिला जय मैथिली।
आभा झा
गाजियाबाद