“घरैया हिंसा – एकटा सामाजिक अभिशाप ।”

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— उग्रनाथ झा।   

आधुनिक समाजमे नाना तरहक विकृतिक तिव्रता संग पैसार भ’ रहल छैक। जेकर जड़ि कारण छैक हमरा सभ अपन शिक्षाक मूल उद्देश्य सं दूर होईत भौतिकवादी अर्थ व्यवस्था के साधन के रूप में उपयोग ।फलाफल मानवीय आचरण अपन आदर्श स्वरूप सं भटकी कल्पना लोक के प्राप्त करबाक असंतुष्ट प्रयास करैत छथि । जे हुनका प्राथमिक रूप में तनाव ,आ बिचलीतता सं ग्रसीत करैत छन्हि। जे अपन जकड़ैत फन्नी में सर्वोत्कृष्ट चेतना के कुंठित करैत अमानवीय चरित्रक निर्माण करैत छैक। जे हिंसात्मक स्वभाव के जन्म दैत छैक। इ हिंसा कोनो भी स्वरूप में भय सकैत छैक जेना – मानसिक , शारिरीक अथवा आर्थिक । जे नारि हिंसा , पुरूष हिंसा , बाल हिंसा , वृद्ध हिंसा के रूप समाज भोगि रहल छैक ।
समाज में देखबा में अबैछ जे फराक फराक रूपक हिंसा छैक जे नित कोनो ने कोनो रूप में नित कतेको परिवार कें घोटि रहल छैक। उपर्युक्त वर्णित हिंसा के जौ परिणाम देखब त भांज चलिए जाएत जे इ विभत्स स्वरूपा कोन रूपे मानवीय संवेदना के घोंटी रहल छैक । हमर समाज आई सभ सं बेसी पति पत्नीक हिंसा सं ग्रस्त अछि। जाहि के बीचक मुख्य कारण आर्थिक आ मानसिक विलगाववाद । आई हमरा सभ भौतिकवादी दुनियाक दुष्प्रेम सं एतेक प्रभावित छि जे जन्मदाता के जहन स्थान मान सम्मान नहि बचा पाबै छि त जांघ तरहक स्त्री के कतेक मोजर । हम अपन जहन स्वयंके बले अपन महत्वांकाक्षी विलासी दुनिया के उपभोग करबा में असक्षम भ जाए छि।तखन माता पिता पर अपन विकृत महत्वाकांक्षा के दबाव बना बैत छि । जौ माता पिता सक्षम छैथ त किछु हद तक पूर्ति त होईते छैक मुदा जतय माता पिता असक्षम ओतय ओ ओकर स्वप्न में पंख लगादैत छथि जे विवाह हेतौ त दहेज में सास ससुर देतौ । फलत: मानवीय सोच में विकृतिक पैसार क देल जाए छै । ओहि पूर्ती लेल सपरिवार दृढ़ भ जाए छथि।जाहि सं वैवाहिक मांगिलीक काज बनियौटी भ जाए छैक ,आ मांग रूपी दहेजक जननी । दोसर पक्ष से हो एहने भाव अलखक चान प्राप्त करबाके कारण सटैत छथि। परिणामत उनैस बिस भेला पर मतभेद जन्म लैत छैक । बहुधा देखबा आओत जे मांग चांग पूर्ती के बादहुं मोनमे नव नव इच्छा जनमैति रहैत छन्हि जे पति पत्नीक बीच मनभेद उत्पन्न करैछ। फलस्वरूप नारि हिंसाक जन्म होएत छै। जे मार पीट , हत्या , आत्महत्या , के जन्म दैत छैक ।एकरे दोसर रूप य़दि पुरूष के वास्तविकता सं बढ़ाचढ़ा क दान दहेज ऐंठल गेल बाद में पत्नी के सच्चाई के पता चलल वा झूठ के शानमे देखल स्वप्न जौ पति के द्वारा पूरा नहि भेल त पत्नी मानसिक रूपें प्रताड़ितक पुरूष हिंसा के जन्म दैत छथि। बहुधा महिला त मारपीट तक पर परहेज नहि करैत छथि। एहनो होई छै जे एक दोसराक संग छोड़ी नव जोड़ी संग जीवन बितेबाक बाट अख्तियार कर लैत छथि। यदि एतय मानवीय संवेदना रहतै त जरूर बिकट परिस्थिती के थाम्हल जा सकै छैक।
ठिक एहि प्रकारे देखबा में अबैछ जे माय बाप य़दि अर्थोपार्जन करबा में सक्षम नहि होथि , वा आर्थिक सशक्त नहि होथि त’ बाल बच्चा द्वारा मानसिक प्रताड़ना भेटैत छन्हि। फलस्वरुप वृद्धावस्था में नारकीय जीवन व्यतीत करैत छैक ।एते तक जे जखन वृद्ध केँ बाल बच्चा सं बेसी अपेक्षा रहैत छन्हि तखनहि बेसी उपेक्षा होई छन्हि । या त रोज रोज के उलहन अपदर के आत्मसात करैत गरल पीब जीबैत छथि वा वृद्धाश्रम के शरण लैत छथि।।
एहिना समाज में बाल हिंसा देखबा में अबैत अछि जे बिना बच्चाक मानसिक शारिरीक अवस्था देखने ओकर श्रमशोषण आ मानसिक प्रताड़ना देल जाएत अछि। ज्यादातर एहन सतमायक देखरेख में ई होएत रहल मुदा आब त माय स्वयं कोखि हिंसा (कन्या भ्रूण हिंसा)के बढ़ौबलि दय रहलीह।
एहि सभ सं विलग हिंसा के स्वरूप जे हाल में बढ़ि रहल छैक ओ अछि यौन हिंसा । जाहि मे विपरीत लिंग के प्रति मर्यादा विकृत उत्तेजना ।जे समाजिक सीमा के अंदर आ बाहर दूनू के हद पार हो जेना दाम्पत्य जीवनमे समाजिक मर्यादा के भीतर त क्षम्य छै मुदा जौ ई स्वैच्छिक नहि भ एक पक्षीय हो अनैतिक /अप्राकृतिक हो त हिंसा के सीमा में अबैत छै । य़दी ई आकर्षण /समागम समाजिक मर्यादा के विरूद्ध हो त जधन्य अपराध छैक। कतौ पुरूष दोषी कतौ स्त्री दोषी ।जे आपसी वैचारिक मतभिन्नता के द्योतक छैक । और इ मतिभिन्नता के कारण छैक समाजिकताक लोप।।
मुदा एहि तरहक हिंसा पर काबू कोना हो ओ बहुत पैघ सोचनीय प्रश्न छैक । एकर जहन हमरा सभ सं’ ज़बाब तकै छि त स्वत: मुंह सं निकलैत अछि निस्सन कानून । मुदा की कानून एहि तरहक घरैया हिंसात्मक प्रकरण के रोकि सकत ? कथमपि नहि! कि एक कानून के कान्ह पर उभय पक्षक सुरक्षा लादल छैक जेकर कारण छैक दुरुपयोग नहि हो। देखबा में अबैत छैक जे दहेज विरोधी कानून हो वा यौन हिंसात्मक कानून सभ के सद्पयोग सं ज्यादा दूरूपयोग होईत अछि। सत्य ओझरा के रहि जाएत अछि। किएक जखन झूठ जाल ओछबैत अछि त कार्य योजना के अनुसार मुदा सत्य के औचक पाला पड़ैत छैक।जाहि कारण कतौ ने कतौ कानून के से हो लचीला बनय पड़ैत छैक। आई भिन्न भिन्न हिंसा निरोधक हेल्पलाइन बनल छैक मुदा की ओ रोकथाम में कारगर छैक नहि किएक त पारिवारिक बात छैक सभ क्षणिक वार्ता क मेल मिलाप के मार्ग प्रशस्त करैत छथि मुदा हार्दीक मनोभावना के जोड़बा में सफल भ पबै छथि नहि । किएक बजरी जमीन पर फसल उगब असंभव । ठिक ओहिना चेतना शुन्य हृदय में भाव भरब असंभव छैक । पहिने आवश्यक मानव हृदय में मानवीय आचरणक भाव भरब । जहिया एहि में सफल होएब तहिए समस्त ताना बाना खत्म आ एहि मानवता खुशहाल होएत।
तै हमरा लोकनि जाधरि अपन परिवार में सांस्कारिक /चारित्रिक निर्माण पर ध्यानाकर्षण नहि करब ताधरि संतुलित समाज के निर्माण नहि भ सकैत छैक। जाधरि जन जन में चारित्रिक चेतना जागृत नहि होएत दिनानुदिन एहि में वृद्धि होएत रहत । जाहि रूपे निकट भविष्य में देखै छि जे गाम- घर, समाज आ सरकार के मानव के समाजिक चेतना जगबै लेल ठिक ओहिना व्यवस्था करय पड़तै जेना नशा मुक्ति केन्द्र, बाल सुधार गृह , रिफ्यूजी राहत केन्द्र चलै छैक तहिना मानवीय समाजिक-पारिवारिक चेतना केन्द्र खोली जन मानस में चेतना जागृतिक खगता छैक । तखनहि अपेक्षित सुधार संभव छैक । दूनिया में व्यवहृत शोसल साईट्स पर लगाम लगाबय पड़त जे कोनो भी मानवीय सरोकार के अवहेलित करैत हो। जाहि सं विषम सं विषम परिस्थितिमे आपसी सुझ बुझ सं आदर्श स्थापित क सकय ।