भाषा के भ’ओ नहि बुझनिहार नेताजी केँ भाषिक अधिकार सँ कोन मतलब, बस वोट टा चाही

भाषाक महत्व सब बुझथि
(भाषा विमर्श)

– प्रवीण नारायण चौधरी

* शिक्षा आ संस्कारक काज अनधिकृत लोक नहि कय सकैछ

* खाली मैथिली अभियानी टा कियैक हल्ला मचेने अछि

सामाजिक संजाल आ नागरिक पत्रकारिता के लोकप्रियता दिनानुदिन बढ़ैत गेला सँ सक्षम-साकांक्ष मैथिलीभाषी मे अपन भाषा प्रति चिन्ता-चिन्तन स्वाभाविक रूप सँ बढ़ल अछि। पूर्वक समय सँ बहुत बेसी रचनात्मकता मैथिलीभाषी मे देखल जा रहल अछि। ई बहुत शुभ संकेत कहि सकैत छी मैथिली भाषा-साहित्य एवं मिथिला संस्कृति-सभ्यता लेल। लेकिन गोटेक लोक मे ईर्ष्या सेहो होइत अछि आ ताहि कारण मैथिली पर तरह-तरह के आरोप लगेनाय, अन्हेरक कुतर्क कयनाय आ मैथिली केँ खन्डित करब सेहो ओतबे तेजी सँ बढ़ि रहल अछि।

एखन जे नेपाल मे नवोदित राजनीतिक दल ‘जनमत पार्टी’ द्वारा नवका झगड़ा ‘मधेशीभाषा’ के लगायल गेल अछि सेहो यथार्थतः मैथिलीक बढ़ैत हैसियत सँ भयावह ईर्ष्या करैत आ कुतर्कपूर्ण आरोप मढ़ैत जे मैथिली मात्र २% (ब्राह्मण आ कायस्थ जाति) के भाषा थिक। आब राजनीति करयवला लेल २% के कोन मोजर! सब केँ वोट चाही सत्तारोहण लेल, वोट त बहुसंख्यक जाति-समुदाय सँ लेबाक अछि, त ब्राह्मण-कायस्थ जातिक नाम पर बहुसंख्यक के भावना केँ भड़काउ आ अपन गोटी लाल करू। बस, एतबे कुतर्क डा. सी. के. राउत २०१७ के अन्तिम समय सँ करय लगलाह आ मौका भेटैत देरी ओ अपन कुतर्कक डंटा मैथिली पर बरसा देलथि।

ओ बुझैत छथि जे २% लोक के भाषा सिद्ध करैत मधेश मे राजनीति करय लेल दीर्घकालिक सूत्र होयत ई मधेशी-भाषा। हुनका ई नीक सँ पता छन्हि जे मधेशक जनता मे भाषाक महत्व कतेक तक बुझल छैक। सैकड़ों वर्ष सँ उत्पीड़न मे रहल ई जनता एखन तक आधारभूत शिक्षा लेल तरैस रहल अछि, ओकरा लेल भाषाक महत्ता कि हेतैक? तेँ ई राजनीतिक खेलाड़ी लोकनि सोचैत छथि जे अगबे स्टन्टबाजी टा करैत रहू भाषाक नामपर आ भ्रमित जनताक वोट पाबि सत्तासुख भोगैत रहू।

भाषाक आधार पर शिक्षा आ संस्कार संग सरकारी कामकाज आ रोजी-रोजगार के बात ई सब कहियो नहि करता। संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र के व्यवस्था परिवर्तन बाद संविधान कियैक सभक भाषा केँ ‘राष्ट्रीय भाषा’ कहिकय सम्मान देलकैक, कियैक अन्य अधिकार हेतु ‘भाषा आयोग’ के गठन कयलक, भाषा आयोग अपन प्रतिवेदन मे कि सब सिफारिश कयलक, कोन-कोन आधार पर कोन-कोन भाषा केँ पूर्ण आ अपूर्ण आदि कहलक, केना-केना भाषा सब केँ प्रदेश आ स्थानीय निकाय सब मे कामकाजी भाषाक रूप मे मान्यता देबाक आ भाषा विकास सम्बन्धी अन्य सूत्र सब कि-कि देलक ताहि सब सँ न एहि नेताजी सब केँ मतलब छन्हि आ न बेचारा ओहि बहुल्यजन जनता केँ जे एखन धरि ५०% सँ बेसी अनपढ़-अशिक्षित (असाक्षर) अछि।

बहुतो लोक कहैत छथि जे खाली अहाँ (मैथिली अभियानी) सब मात्र भाषा-भाषा अनघोल कएने छी, दोसर भाषाभाषी कहाँ एतेक करैत छथि जतेक अहाँ मैथिलीभाषी कय रहल छी। हमर सोझ जवाब छल जे भाषा, भेष आ भूषण के महत्ता जे बुझतय वैह न अनघोल करत, वैह न समर्थन या सराहना आ कि गलत केँ गलत कहबाक हिम्मत करैत विरोध करत। बाकी भाषाभाषी मे जँ जनचेतना मैथिलीभाषीक स्तरक नहि रहतनि, किंवा नहि छन्हि त हुनका लेल नाम परिवर्तन आ मौलिकता सँ छेड़छाड़ धैन सन के बात भेल। किछु लोक भोजपुरी भाषाभाषीक उदाहरण सेहो देलनि, हम हुनका सब केँ मोन पाड़ि देलियनि जे एहि भाषाक कथित विद्वान् लोकनि जहिया कतहु मंच पर प्रस्तुति देता त मैथिलीक विरोध मे विषवमन छोड़ि अपन निजताक महत्व केना बढ़त, साहित्यिक रचनात्मकता केना बढ़त आ भाषाभाषी मे भाषिक पहिचान प्रति आकर्षण कोना बढ़त ताहि सब लेल कोनो खास चिन्तन-मंथन कहियो कतहु नहि देखलहुँ।

सवाल छैक नेपाल मे मैथिलीक हैसियत सँ डाह करयवला आन भाषाभाषीक संग-संग स्वयं अपनहु लोक मे भाषा प्रति वितृष्णाक भाव। ई वितृष्णाक कारण सब सुनब त हँसियो लागत आ निरीहता पर दया सेहो आओत। कतेको लोक चर्चा करता जे मैथिली भाषाक सब सम्मानित स्थान पर खाली झाएजी सब विराजमान होइत छथि, आर लोकक कोनो पुछारिये नहि होइत छैक। जखन कि ई बात सरासर गलत छैक। किछु जानल-मानल चेहरा जे राष्ट्रीय स्तर पर अपन छवि, व्यक्तित्व आ प्रतिभा सँ स्थान प्राप्त कएने अछि, बस हुनका सब केँ देखि सामान्य लोक मे भ्रम सृजना करय लेल लोक एना बाजि दैत छथि। बामोस्किल २-४ गोट स्थान छैक राजनीतिक नियुक्ति केर आ ताहि ठाम सुयोग्य लोक केँ स्थान भेटल छैक नहि कि कोनो जोगाड़ी लोक केँ। सुयोग्य सेहो कोनो एकल जाति के नहि, सब जाति के लोक ओहि महत्वपूर्ण पद पर पहुँचि सकल छथि। तखन आरक्षण वला पद्धति सँ पद के बँटवारा कयल जाय आ कि जबर्दस्ती कोनो योग्य लोक केँ ओहो दुइ-चारि स्थान पर नियुक्ति सँ रोकल जाय त कतेक नीक हेतैक?

एकटा सवाल आर उठल करैत छैक जे अधिकतर सवर्ण टा एहि भाषा-विमर्श मे आगू देखाइत छथि। एकरो जवाब अत्यन्त सहजहि ढंग सँ बुझल जेबाक चाही जे एहि अर्थ-प्रधान युग मे केकरा पास फुर्सत छैक जे मंगनी के काज मे समय खर्च करत, एहि लेल फुर्सति-पलखैत रहल लोक मात्र आगू आबि सकैत अछि नहि कि अपन आजीविकाक आर्जन मे व्यस्त लोक या वर्ग या समुदायक लोक आगू आबि सकत। एखनहि ई घोषणा कय न दियौक जे फल्लाँ ठाम जेबाक अछि, ५०० टका भत्ता आ यात्रा करय लेल बस के व्यवस्था होयत – आ देख लियौक भीड़। आइ-काल्हि नेताजी सब केना भीड़ जुटबैत छथि से केकरो सँ नुकायल थोड़े न अछि! तहन त साक्षरता जेना-जेना बढैत जायत, तेना-तेना भाषा आ साहित्यक धारा मे बहुल्यजन शामिल होइत जेताह।

निष्कर्ष यैह अछि जे मैथिलीभाषी जनसमुदाय मे भाषिक चेतना अन्य भाषाभाषीक अपेक्षा अधिक अछि। दोसर, जे एखन तक शिक्षा आ साक्षरताक भावबोध नहि कयलनि अछि, हुनका समय लागि रहल अछि भाषाक महत्व बुझय मे आ यैह वर्ग केर मन-मस्तिष्क भ्रमित कय आइ-काल्हिक नेताजी सब अपन राजनीति चमकाबय लेल भाषाक नाम पर सेहो समाज केँ तोड़य सँ नहि चूकैत छथि। हम भाषा अभियानी लोकनि ई टारगेट ली जे जनचेतना मे भाषाक महत्व स्थापित हुए। भाषाक लिखित-मौखिक शुद्धता-अशुद्धता ओकर औपचारिक शिक्षा आ व्याकरण मात्र करैत छैक, चलैत-फिरैत मुसाफिर द्वारा शिक्षा आ संस्कार वला काज नहि होइत छैक। तेँ, नेताजीक लगायल झगड़ा मे किन्नहु आमजन नहि फँसथि आ हुनका सँ अधिकार केर लड़ाई लड़बाक आग्रह करैत एकल भाषा नीति सँ ऊपर उठबाक आग्रह सब करथि।

हरिः हरः!!