“आजुक समाज अपन सभ्यताकेॅं बिसैर रहल अछि..”

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— क्षमा कुमारी।       

हम सब जनैत छी जे मनुष्य के कखनो ई गप नै बीसरबाक चाही की आखिर ओ ऐल कुन परिवेश आर संस्कृति स अछी! ओकर पहचान आखिरकार की छै, ओ कोन जगह स आबैत अछी! हमर सभक ई त कुनू निक जन्मक कैल गेल कर्म अछी जे मिथिला सनक पवित्र आर पावन धरतीक पुत्र वा पुत्री होबाक सौभाग्य प्राप्त भेल अछी! हमरा सबके गौरवान्वित महसूस करबाक चाही अपन सुंदर आर सुदृढ़ संस्कृति पर जकर हर एकटा नियम आ विध व्यवहार अपना आप में महान अछी! वर्तमान परिवेश में पता नै किया आब बला जनरेशन के बुझाइत छैन जे परीवर्तन हेबाक चाही लेकिन हुनका सबके परिवर्तन आर वास्तविकता में अंतर नई पता छैन, हुनका सबके बुझ परतैन जे परिवर्तनक जरूरत ओत होयत अछी जाहि ठाम अन्याय आकी गलत व्यवहारक संस्कृति हुयै ! हमरा मिथिलाक ओरहन पहिरन स ल क ओकर बोली और रीति रिबाज सब अपना आप में एकटा अनोखा संस्कार के जन्म दैत अछी! फेर हमरा सबके अही परिवर्तनक कुन जरूरत अछी! आब बात करी जे वास्तविकता के आखिर कियो केना बदैल सकैत अछी वास्ताविकता के बदल के अर्थ भेल अपन संस्कृति के त्याग! जखन आहा कहैत छी जे हम ओही परिवेश के बच्चा छी त ई आहाक कर्तव्य अछी जे आहा अपन वास्तविकता ई सहमति स स्वीकार करू नै की अपन संस्कृति के अपमानक विषय मानु! आजूक समय में घोर कलयुग आईब गेल आई लेल ई बात कहलाऊ कियाक त जाहि वस्त्रक हरण लेल महाभारत सनक महा युद्ध भेल आय यदि आहा ओहि वस्त्र के पहिरलेल कहियाउन त फेर एकटा महाभारत हैत ! आर ओकर विषय हैत जे हमर समाज द्वारा हमर अधिकारक हरण भन रहल अछी ! जे व्यक्ति के अपन संस्कृति के अनुसरण केनाई अपन अधिकारक हनन बुझैत छनि हुनका सा की उम्मीद करब जे अपन संस्कार आर सभ्यता के ओ बचेता तै कहलौ जे घोर कलयुग आयब गेल! छोट वस्त्र पहिरनाई और बेसुरक संगीत पर नृत्य केनाई कूनू महानताक कार्य नही अछी ई त कियो क लेत अपन सीमा में रहिक यदि हम अपन सामाजक नाम रौशन करी नई की सिर्फ राष्ट्र स्तर पर बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर त अही स बढ़ी के की गौरव के बात हैत ! हमर ई भारत भूमि आई स नै बल्कि प्राचीन काल स अपन कर्तव्य के बल पर महानता के सबस उच्च स्थान पर विराजमान अछी नै सिर्फ पुरुष बल्कि महिला सब अपन कर्तव्य निष्ठा के लेल पूजल जैत छथी! अहिल्या सनक नारी भेली आर अनुसूया सनक सती भेली मा सीता सनक पुत्री आर पत्नी भेली , सावित्री सनक महान पतिव्रता भेली, आब कहू अतेक पवित्र भूमिक स्त्री वा पुरुष के यदि संस्कार आर सभ्यता के ज्ञान नई छैन त हुनका पतन स के बचा सकाइत अछी! हमर जे भूमि अछी आही ठाम कर्म सिर्फ वर्तमान काल के ध्यान द क नै कैल जाइत अछी बल्कि हमर कर्म के भूत अर्थात पितृ आर पूर्वज पर की प्रभाव परत आर आब बाला पीढ़ी पर अकर केहन प्रभाव परत तकरा ध्यान मे राखी क कैल जायत अछी! मुदा आजुक लोक के होयत अछी जे ई सभ्यता के बिसैर क हम बड महान बनैत छी जे सिर्फ हुनकर मोनक भूल अछी तै कीछ भ जाई लेकिन अपन वास्तविक परिवेश के नै बिसरी ई हमर आग्रह रहत सबस
जय मिथिला जय मैथिली जय भारत भूमि ।