भाषा तोड़ब – समाज टूटतः विध्वंसक विचारधारा पर रोक आवश्यक

मैथिली केँ खन्डित करनिहार ध्यान देब

हमरा सब के भाषा ‘मैथिली भाषा’ के नाम बिगाड़य के लेल किछु लोक जातीय आधार पर बड़ा उद्यत् देखाइत छथि। हमरा मोन पड़ैत अछि ‘संस्कृत भाषा’। संस्कृत भाषा केँ एकल जातीय भाषा, उच्चवर्ग द्वारा बाजल जायवला भाषा कहिकय एहिना समाप्त कयल गेल। लोकक मन-मस्तिष्क मे एहि महत्वपूर्ण भाषा प्रति वितृष्णा उत्पन्न कयल गेल। ओहि भाषा के गूढ़ता-गम्भीरता देखिकय आ लोक के आचरण-व्यवहार देखिकय लगितो छैक, सामान्यजन केँ लगैत छैक जे ई भाषा केवल उच्च-परिष्कृत लोक मात्र बाजि सकैत अछि, लेकिन भाषाक महत्ता कतेक छैक से आइ संसार के ओहो देश बुझि रहल अछि जे कहियो संस्कृत केँ अपमान कएने छल, भारतवर्ष मे गलत सन्देश प्रसार करैत लोक केँ भ्रमित कएने छल। आइ संस्कृत के महत्ता कम्प्यूटर कोडिंग सँ लैत वैज्ञानिक आविष्कार तक मे कतेक अछि से केकरो सँ छुपल नहि अछि।

संस्कृतक अवस्था एहेन अछि जे बहुल्यजन एहि सँ दूर भेल छी। हमहुँ नहि बाजि सकैत छी संस्कृत, जखन कि हम कथित उच्च जाति ब्राह्मण छी।

स्पष्ट छैक जे जाति कोनो हो, अध्ययन रहले सँ अथवा व्यवहारक अभ्यास करिते-करिते कियो कोनो भाषा सिखैत अछि, बजैत अछि। लिखित आ मौखिक भाषा मे सेहो जमीन-आसमान के फर्क रहैत छैक। लिखयकाल शुद्धता-अशुद्धता आ कतेको रास वैयाकरणिक दृष्टि-विचार सँ लेख लिखल जाइत छैक। इहो सच छैक जे बहुल्य शिक्षित लोक बाजयकाल सेहो वैयाकरणिक दृष्टि-विचार अनुसार बजैत छथि। जखन कि जनसामान्य द्वारा ई सब नियम आ कायदा ओतेक विचार करय के जरुरते नहि पड़ैत छैक। बस, भाषा अपन अभिव्यक्तिक संचरणक एकटा माध्यम मात्र रहैत छैक।

मैथिली भाषाक लेख्यरूप आ सामान्य बोलचाल के रूप मे स्वाभाविक अन्तर छैक। बाजय मे सेहो अलग-अलग स्तर के शिक्षित लोक के अलग-अलग शैली होयब स्वाभाविक छैक। तखन एहि सब मापदंड पर भाषा केँ जातीय पहिचान अनुसार संस्कृत जेकाँ एकल जाति किंवा उच्चवर्ग आदिक भाषा कहबाक गलती दोहरेनाय उचित नहि भ’ रहल अछि।

भाषा (बोली) के आधार पर केकरो बड़का आ केकरो छोटका (बाभन-सोलकन) के भाषा कहब स्पष्टतया मूर्खक काज होइत रहल अछि। लेकिन मूर्खक काज केँ जँ कियो सुविज्ञ-सुजान लोक सेहो समाज केँ विभाजित करबाक बीड़ा उठा लियए त हमरा समझ सँ ओ कुलद्रोही आ कुपुत्र थिक। ओकर कुकृत्य केर बहुत खराब असर मानव समाज पर पड़त। आइ तक कोनो खास भूगोल मे अलग-अलग जाति-समुदाय केर भाषा केँ अलग नामकरण कयल गेल नहि देखब। हँ, यदि मूल पहिचानक भेद होयत, जेना कियो बहुत पहिने जंगल सँ निकलि आबादी क्षेत्र मे आबि आन भाषाभाषी संग निवास करय लागल त ओकर भाषा किछु समय तक दोसरे रहतय, लेकिन कालान्तर मे ओकरो सन्तान केँ ओहि खास आबादीक्षेत्र (भूगोल) के मूल भाषा संग मिश्रित होबइये टा पड़तैक।

नेपालहि के उदाहरण लिअ। नेपाल के वर्तमान राष्ट्रभाषा नेपाली सरकारी कामकाज, शिक्षा आ संचार आदिक भाषा हेबाक कारण मैथिली सहित विभिन्न मातृभाषा जे नेपाली सँ बेसी प्राचीन अछि ताहि सब केँ मोटामोटी विस्थापित कय देलक या फेर नेपालीमिश्रित मैथिली, नेवारी आदि यथार्थरूप मे व्यवहार मे आबि गेल। तेँ, कोनो खास भूगोल के मूल भाषा केँ मारिकय नव-नव नामकरण कयला सँ लोक अपन स्वार्थ त सिद्ध कय लेत, एकर दुष्परिणाम समाजक विखंडन होयत से ओ स्वार्थी सत्तालोलुप लोक नहि रोकि सकत। अतः एहेन विभाजनकारी तत्त्व केँ तांडव करय सँ रोकय लेल हम सब आगू आबी।

हरिः हरः!!

पुनश्चः संस्कृत भाषा केँ एहिना षड्यन्त्रपूर्वक मारल गेल। लेकिन विश्वक महान लोकतंत्र भारत मे एहि संस्कृत केँ पुनर्जीवित करय लेल कतेक खर्च कयल जा रहल अछि से देखब आवश्यक अछि। संविधानक आठम अनुसूची मे संस्कृत केँ सम्मिलित कयल गेल अछि। उत्तराखण्ड के द्वितीय राजभाषा थिक। आकाशवाणी और दूरदर्शन सँ संस्कृत मे समाचार प्रसारित कयल जाइत अछि। कतिपय वर्ष सँ डी. डी. न्यूज (DD News) द्वारा वार्तावली नामक अर्धहोरावधि केर संस्कृत-कार्यक्रम सेहो प्रसारित कयल जा रहल अछि जे हिन्दी चलचित्र गीत सब केँ संस्कृतानुवाद, सरल-संस्कृत-शिक्षण, संस्कृत-वार्ता और महापुरुष सभक संस्कृत जीवनवृत्ति सब, सुभाषित-रत्न आदिक कारण अनुदिन लोकप्रियता प्राप्त कय रहल अछि। (साभारः विकिपीडिया)