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“एक मानवक शरीर पूर्ण रूपेण चारू वर्ण संगम अछि।”

— उग्रनाथ झा।   

वर्तमान समाजमे जातिवादक माहूर ताहि रूपे भरल गेल अछि जाहि सं पार पाएबाक बाट दूरूह भेल जा रहल अछि । समाजक परिदृश्य देख भगवानक श्रेष्ठ किर्ती कहाए वाला रचना कोन आधार पर श्रेष्ठ मानल जाए अनबूझ बूझौबलि बनि रहि गेल अछि।
जहां तक जातिय व्यवस्था के संबंध में देखल जाए त स्पष्ट दृष्टिगत होएतजे एकरा विशेष नीति के तहत उपजाएल जाएत छैक जेकर पाछा विशेष स्वार्थ /लाभ निहित रहै छै । सर्वप्रथम जातिय आधारित जनगणना सन 1931मे विलायती साम्राज्य के द्वारा कराओल गेल जाहि मे कुल 4114 जातिक सूची तैयार कयल गेल , जखन की वर्तमान में लगभग छह हजार सं बेसी जाति सूचिबद्ध अछि। आब सोचनीय प्रश्न छैक जे ई लगभग 2000 जाति आकाश सं टपकल वा धराक गर्भ सं अवतरित भेल । जेकर मूल उद्देश्य जाति संघर्ष बढ़ा समाज के तोरि अपन राज स्थापित करब छैक। जेकर प्रथम पाठ विलायती बाबू पढ़ौलनि आ हमरा लोकनिक नेता सभ हुनकर अनुसरण करैत राज कर रहल छि।
जखन की एहि जातिवादी व्यवस्था के जन्मदाता के रूप में मनूस्मृति के उद्धृत करैत छैथ। मुदा हुनका मनुस्मृति पढ़बाक पलखति कहां । बस मनुवादी आ ब्राह्मणवादी सोच के घसिटबाक छैन्ह । जाहि उद्देश्य सं दिनों दिन जातिय व्यवस्था प्रजनन करैत छैक । जखन की मनुस्मृति वर्णाश्रम के प्राथमिकता पर रखने छैक । वर्ण आधारित चारि आश्रम आ कर्म आधारित चारि वर्ण ।चारु वर्ण के कर्म निर्धारित छैक । आचरण आधार पर ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शुद्र। के नामांकरण भेल छल ।
स्पष्ट रूपेण कहल गेल छैक “जन्मना जायते शूद्र: ,कर्मणा द्वीज उच्यते । जन्म सं सभ शुद्रे रहै छथि ओ कर्म सं श्रेष्ठ ब्राह्मण , क्षत्रिय ,वैश्य शुद्र होए छथि। अगर देखल जाए त कर्मबल के आधार पर रविदास , कबीर , दादू , सभ संत रुप धारण क आदर्श स्थापित केलाह ।हुनका पर त जातिय बंधन नहि लागल।
एक मानवक शरीर पूर्ण रूपेण चारू वर्ण संगम छि । किएक सनातन संस्कृतिमे आदिपुरुषक सुक्त में स्पष्ट उल्लेख छैक
ब्राह्मणोस्य मुखमासीद , बाहू राजन्य: कृत: ।
उरू तदस्य यद्वैश्य ,पदभ्यां शूद्रों अजायत: ।।
यानी मुंह ज्ञानी के प्रतिक ब्राह्मण , बाहू शक्ति (राजा)के प्रतिक क्षत्रिय , उरू (जांघ) भार वहन करय वाला पोषण शक्ति के प्रतिक वैश्य आ पैर सेवा भाव के प्रतिक शूद्र के प्रतिनिधित्व करैत छैक ।
कहबाक तात्पर्य जे सनातन धर्म में सदा सं कर्म आधारित वर्ण विभाजन / जाति विभाजन छल ।जे आपसी सहमति सं सामाजिक न्याय के संग चलैत छल। ताहिमें मिथिला क्षेत्रक भूमि विद्यागारा कहबै छल , एतुका शिक्षा , शास्त्र, आ संस्कार सकल जगत लेल अनूकरणीय रहल अछि। सभ समुदाय के सहभागिता निर्धारण करैत सामाजिक संस्कारिक ताना बाना बुनल छल । आई वैदिक संस्कार के एक एक गतिविधि देखब त पता चलत जे भिन्न भिन्न कार्य लेल भिन्न जातिक अनिवार्यता बनल छैक जेना पूजा हो त बासक बासन डोम सं , ढ़ोल पिपही चमार सं , फूल माला मालीन सं , यानी हजाम, सोनार , बरही , धोबी , खबास इत्यादी सभके सहभागिता तय छैक । मिथिला के हर यज्ञ अनुष्ठान देवी देवी के भजन किर्तन में सभ जातीय के उपयोगिता के वर्णन भेटत । यदि जातिय संघर्ष में बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा जाति विशेष के शोषित बना रखबाक चेष्टा रहितन्हि त फेर एतेक उपयोगिता के ताना बाना किएक बुनितथि । हं जाहि वर्ग सं जाहि तरहक कार्यक सक्षमता हुनका वाजिब स्थान भेटल। हं चारू वर्ण में एखनो असक्षम लोकनि एकोर बनल रहै छथि ।सभ एक दोसराक उत्सव में सहभागिता दैत रहल छैक । कतौ त एक दोसरा के प्रति जातीय हिंसा नै छलै। हं तहन किछु समाजिक मर्यादा छलै । आ ओ मर्यादा कमबेस सजातीय पर से हो लागू छलै । मुदा जातिवादी षड्यंत्रकारी एहि मर्यादा प्रदूषित करबाक कोनो मौका नहि छोड़लक। उदाहरण स्वरूप कहि जे मिथिला में जेठ यदि कियो जेठ आंगन निप देलनि वा आंगन बाहलन्हि त छोट ओहि पर चलबा सं पहिने ओहि जगह के प्रणाम करैत क्षमा याचना करै छलीह तखनहि लात दैत छलीह , कनिया बहुरिया बिन स्नाने भनसा घर नहि पहुंचै छलीह , जेठ श्रेष्ठक सोझा पनहि पहिरनाए वर्जित रहैत छल वा धाख सं नहि पहिरैत छलिह ।
त निश्चित रूपेण ई सभ पालन करबाक लेल सभ वर्णके बाध्यता रहैत छल जेकरा समयक संग विकृति क जाति भेद के नाम देल गेल ।जखन की ई बंधन सजातिय पर लागु छल । त दोसर के छुट कोना ? जे कर्म आधारित उच्चतर आचरण के अनुगामी छलैथ त कर्मच्युत जन ओहि ठम अपन सहभागिता दै स कतरात छलैथ आ कतौ कतौ हुनका रोकलो जाए छलै । अधिकत्तर आध्यात्मिक व्यक्ति स्वयं पवित्रता आ आराधना में लीन रहै छलाह त ओतहुं अयोग्य के बाध्यता रहै छलै ।किछु लोकनिक कहब छन्हि जे उच्च जाति सभ नीच जाति के श्रम शोषण /आर्थिक शोषण करैत छलखिन्ह । एहि बिन्दू पर कहय चाहब जे समाज में दू जातिय धारा जरूर छल ओ एखनो अछि, ओ शोषण पहिने के अपेक्षा एखन बेसी घातक रूप में अछि ।जेकरा हमरा लोकनि अर्थवान आ अर्थहीन में विभाजीत क सकैत छि। यानी गरीब वर्ग के आवश्यकता पर मदति देनाय आ वापसि नहि केला पर जर जमीन हथिएनाय वा श्रम सं राशि ओसुलनाए ।कहब जे ओ संघर्ष एखनो सभतरि विद्यमान छैक बस चोला बदलि लेने अछि। पहिले जमींदार , सेठ साहुकार होएत छल त आब कार्पोरेट घराना अछि । आईयो किसान ऋण नहि चुकासकला पर या त आत्महत्या करैत छैक या घर घरारि निलाम होएत छैक। कहां किछु बदललै।हं समय संग पढ़ाय लिखाय के प्रति सभ जाति में रूचि बढ़लै । शिक्षा सं संस्कार बदललै ।
आए किछु तथाकथित कमजोर वर्गक मसीहा जे जातिय संघर्ष के बढ़ावा देबय लेल हुंकार भरै छथि ओ पहिनने एहन बिषलता सं बाहर निकालौथ समाज कें । ताहि सं कोन सरोकार?
आए किछु समाज के ठीकेदार जाति प्रथा के गलत कहै छथिन्ह तर्क देता सभ इंसान छथि , शोणित एक रंग छैक त फर्क किएक , अंतर्जातीय विवाह किएक नहि । त हम कहय चाहब जे एहन सोच संग सामाजिक श्रष्टा छैथ ओ पहिने समाज के अमिरी गरीबी के फर्क मिटाबू । जे हमेशा एसी में रहनिहार छथि ,मैक डोनाल्ड सं जलखै मंगेनिहार छथि हुनका सं आग्रह जे अपनहि जातिक ओहि व्यक्ति सं जे पुआरक सेजोट पर केथरी ओढ़ि गुजर करैत होए , मसुरिक घोर आ धूसरी धानक भात सं पेट भरैत होए ओकरा घर चारि दिन बिलमि कें देखियौ , ओकरा परिवार में विवाह दान कय के देखू तखनहि ने बुझब जे मनसा वाचा कर्मणा में एकरूपता अछि। लेकिन नहि करता हुनका त समरूप परिवार चाहिऐन । तहन जौ लोक अपन समरूपता में समान जाति , समान अर्थ व्यवस्था तकै छथि त जातिवादी के तमगा देबाक कोन औचित्य ? तहन त अपने लोकनि समाजिक सद्भाव के बिगाड़ैत रहुं।
जखन अपना पर लागू होएत त समान गुणवत्ता आ स्तर पर ध्यान देब यानी रक्त चरित्र समान होएबाक चाहि लेकिन डिंक हांकब ।
अंततः मिथिला एहन भूमि छैक जतय सर्वाधिक जातीय समरसता पाओल जाएत छैक । एतय कोनो स्व उत्पन्न जातीय संघर्ष देखबा में नहि आयल अछि। हं छोटछिन प्रायोजीत संघर्ष भेल हो त अपवाद छैक। खद्दर धारि कतबो जाति संघर्ष बढ़ेला परंतु आपसी सद्भाव सं हम सभ एक छि आ अपन मर्यादा के आचरण अचरैत छि।
ई त भेल सनातन संस्कृतिक कें प्रायोजित विखंडन त उत्पन्न जाती संघर्ष । लेकिन एहि सं उपर मिथिला अन्य धर्मक’प्रति समभाव से हो अनुकरणीय भेटत । एतय मुस्लिम लोकनिक इस्लामिक पाबनि दाहा (तजिया) के प्रति अगाध श्रद्धा भेटत । जहन दाहा दलाने दालान परिक्रमा करैत छैक त सनातनी लोकनि रूपया, अगरबत्ती , अन्न वस्त्र चढ़ाबैति छथि । हिन्दू लोकनि अपना कबूला-पाति के आधार पर डांर में घूंघरू बान्हि जंगी बनि उमंग सं कुदै रहैत छथि।संगहि हां हुसैन हां हुसैन गाबि आनंदित रहै छथि ।ई समरसता मिथिला के अलौकिक दृश्य भेंट सकै अछि। ओहिना मिथिला के ठाम ठाम पर हिन्दू पाबनि तिहार छठि,दूर्गापूजा , दियाबाती में मुस्लीमक सहभागिता दृष्टिगत होएत।
अंत: मिथिलाक पवित्र भूमि अतित सं वर्तमान तक धार्मिक ,समाजिक आ जातीय समभाव के पथ प्रदर्शक रहल अछि।जे संपूर्ण विश्व लेल अनूकरणीय छैक।

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