— शिखा झा।
“पल्लव मिथिला मैथिलीक अछि सेवक अनुचर
अभिनव अनुखन कर्मशील साहित्य सहोदर अभ्युन्नति आदर्श बढ़ायब डेग निरंतर जानकीक जय नित्य उचारू श्री मुरलीधर। “
मिथिला अपना आप में चारू धाम के महिमा सहेजने अछि। कमला कोसी के नगरी छी त स्वभाव सेहो जाति हिसाबे ओहिने।
कखनो प्रचंड वेग में आ कहुखन के अनंत सौम्यता लेने।
मतभेद कत्त ने होइछ। जखन स्वर्गलोक में सहो देवगण में आपसी मतभेद क खिस्सा सुनेत छी त मनुक्ख के गप्पे कोन।
मिथिला में मधुरक मिठास छय आ भाँग के नशा सेहो । तेतैर के खटास छे आ मिर्चय के बिसबीसी सेहो। जातिपरक भेदभाव त हरदम से रहल मुदा आब कनी बेसी दृष्टिगोचर भ रहल। कारण सबसे पैघ जे आब सुनबाक क्षमता कम भेल जा रहल छे लोक सब में। सही ग़लत के भान के बिना उधियाय लगला से आपसी मनमुटाव आ कर्कश वाद विवाद बेसी होमय लागल अछि।
ई सब रहतो मिथिलाक लोकक स्वभाव पान सन जे ऊपर से भले हरियर या पीयर मुदा घुईल के रंग लाल ए रहैछ। से चाहे कोनो जाति वर्ग या केओ।
मिथिला सीता के नगरी छी आ सीता धरती से जनमल छली वेहे स्वभाव मिथिला के कण कण में निहित जे बेर पर सब माटि से जुड़ल रही।
मिथिलाक संस्कार संग रहनाय सिखबेत अछि आ सिखबेत अछि पैघक मान।
मिथिला नगरी
में सभक हम
करब सदा सम्मान
माँ सीता के पावन धरती सभक अछि अभिमान।
शिखा झा
देहरादून।