“कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था जे कालांतरमे जन्मानुगत जाति व्यवस्थाक आधार बनि गेलैक तकर विकृत स्वरूप आब देखबामे अबैत अछि।”

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— अरुण कुमार मिश्रा।         

मिथिलाक भूमि अद्दोकाल सँ धर्म आ ज्ञानक भूमि रूपेँ जानल जाइत अछि। देश विदेश सँ लोक ज्ञान प्राप्त करबाक लेल मिथिला अबैत रहला अछि। बहुत दिन धरि न्याय, मीमांसा, दर्शन, कर्मकाण्ड आ ज्योतिष इत्यादिक केन्द्र मिथिला रहल अछि।

मुुगलकाल सँ पुर्व धरि एहि ठाम वर्ण व्यवस्था अपन आदर्श स्थिति बनोने छल। कर्म आधारित वर्ण व्यवस्थाक अद्भुत उदाहरण मिथिलामे भेटैक छलैक आ से एहि ठाम विधि व्यवहार मे अखनो देखल जा सकैत अछि। सभ वर्णक बेगरता लोक के छलैक। मुड़न, उपनयन, विवाह, दुराग्मन आ श्राद्ध इत्यादिमे किछु वर्ण विशेषक उपयोगिता अखनो प्रमुख छैक। हजाम, डोम, माली, लोहार, कुम्हार, कहार, धानुक आ धोबी इत्यादिक भागिदारिता रहैते छैक।

मिथिलामे सत्तरक दशक के बाद राजनीतिक कारण सँ जातिगत विद्वेष पसारल गेलैक। बदलैत परिस्थिति केँ देखैत लगैत अछि जे मिथिला आब जाति व्यवस्था केँ भवंरमे फंसि गेल अछि। चुनावक समयमे ई विशेषकर अनुभव काएल जा सकैत अछि मुदा काज परोजनमे गाम घरमे अखनो कमोबेेस सर्वधर्म संभाव देखवामे अबैत अछि आ से धर्म-समभाव बनोने अछि। हमर ई व्यक्तिगत मानब अछि जे वर्ण व्यवस्था केँ सही अर्थ बुझवाक आवश्यकता छैक। सभक सहयोग आ सहभागिता सँ जयों काज होइक त’ ओकर आनंदे किछु आर होइत छैक। आजुक अर्थ युग मे अकर घोर अभाव देखना जाइत अछि, मिथिलामे अकर कुप्रभाव सेहो देखा रहल अछि।

कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था जे कालांतरमे जन्मानुगत जाति व्यवस्थाक आधार बनि गेलैक तकर विकृत स्वरूप आब देखवामे अबैत अछि। एहि विकृतिक प्रारम्भ मुगलक शासन मे भेल छल जे अंग्रेजक शासनमे पराकाष्ठा पर पहुँच गेल।

ऋग्वेेद, मनुस्मृति, महाभारत, इत्यादि अनेक प्राचीन ग्रन्थमे सवर्ण शब्दक उल्लेख छैैक मुदा कतयो ओ आधुनिक कालक विपरीत अर्थ मे नहि अछि। अकर सामान्य अर्थ छल ‘समान वर्णक’। कई प्राचीन ग्रन्थो मे व्यक्ति विशेषक नाम सवर्ण वा सावर्ण वा सावर्णि भेटैत अछि। सवर्णक अर्थ अछि है वर्ण−सहित अर्थात् वर्णव्यवस्थाक अन्तर्गत चारू वर्ण तहिना अवर्ण ओ जे चारू वर्ण सँ बाहर अछि। म्लेच्छ सभक जानि बूझि क’ आधुनिक कालमे ‘सवर्ण’ आ ‘अवर्ण’ केँ दुष्प्रचारित केलैथ। महाभारत अनुसारे अवर्णक अर्थ अछि रङ्गहीन।

प्राचीन आ मध्ययुगक कुुनु ग्रन्थमे अवर्णक अर्थ कुनु जातिक लेल नहि कएल गेल अछि। फूट डालि, राज करबाक नीतिक अन्तर्गत अंग्रेज हिन्दू समाजमे फूट डालवाक लेल सवर्ण आ अवर्णक गलत अर्थ प्रचारित केलक जे आई धरि मैकॉलेवादक अनुयायी सभ प्रयुक्त क’ रहल छैथ। समाजक शरीर चातुर्वर्ण्य व्यवस्था सँ बनैत अछि तँ एहि संरचनाक ध्यानमे राखि व्यवहार करी। अस्तु।

………..अरुण कुमार मिश्र
संतनगर, दिल्ली
दि० २३/१२/२०२२

Vandana Choudhary Deepika Jha