लेख
– प्रवीण नारायण चौधरी
आत्मसंस्मरण
अन्तर्मनक ओ बात
हम यदा-कदा बड भावुक भ’ गेल करैत छी… कियैक? कियैक त’ हमरा जखन विवाह करबाक लेल आत्मा मानि लेलक त हम अपन पूज्य पिता सँ कहलियनि जे आब अहाँ जरूर कतहु नीक परिवार देखू आ हमर जीवनसंगिनी तय करू। लेकिन जीवनसंगिनी तकबाक (निर्णय करबाक) बदले हमर जीवनक अनमोल संगी स्वयं हमर पिता हमरा छोड़ि चलि गेलाह….!
बात १९९४ के थिकैक। हमर उम्र २२ वर्ष छल लेकिन आत्मविश्वास सँ ओतप्रोत युवा रही। अपन जीवनक आधार आ भविष्य सबटा तय कय लेने रही। निडर बनि गेल रही। जाहि जीवनसंगिनी केँ अपनायब, हुनका कहियो दुःखी नहि होबय देब तेहेन कन्फिडेन्स बनि गेल छल। तेँ पिता सँ कहने रही जे आब तय कय दिअ… लेकिन! कहबे कयलहुँ, उल्टा हमर पिता चलि गेलाह एकदम असमय। हम अनाथ भ’ गेलहुँ। बस माय के सहारा रहल। पितियौत-ममियौत-पीसियौत आदिक भरोसा ताहि समय तक उठि गेल रहय समाज सँ…!
रोजगारक मादे कहब जे एक अंग्रेजी आवासीय विद्यालयक गणित विषयक शिक्षक रही, ट्यूशन सेन्टर सेहो जबरदस्त चलय। पढाबी गणित लेकिन बुझाइत छल जे कोनो डाक्टर रही….! कारण ताहि समय पुरना पैटर्न सँ नवका पैटर्न के गणित नया सिलेबस एतय आयले रहैक। अन्य शिक्षक सब लेल नया पैटर्न के गणितक सवाल सब बड कठिनाह भेल करन्हि, जखन कि हम नहियो किछु त लगभग १० अलग-अलग पब्लिकेशन्स के गणितक विभिन्न तरहक हिसाब सब खूब (राति-दिन) प्रैक्टिस करी से हमर आदतिये छल। अन्य शिक्षक सब डाक्टर वला पूर्जा जेकाँ विद्यार्थी सब केँ लिखिकय देथिन जे ई नवका डाक्टर प्रवीण चौधरी मात्र इलाज कय सकैत छौक… कहबाक अर्थ जे अपन पेशा पर पकड़ नीक रहय आ ई विश्वास रहय जे आब जीवन मे बैक-गेयर नहि लागत। कनियाँ सम्हारि लेब।
आजीविका कमेबाक संग-संग फैशनक दुनिया मे सेहो अपन दखल छल। नाटक के हिरो हो या समाजक बीच युवा रूप मे हिरोपनी – एकदम मोडर्न टेक्नोलौजी सँ लैस जीवनमार्ग पर दौड़ि रहल छलहुँ। तखन पिता सँ कहने रहियनि जे ई जीवनरूपी गाड़ीक दोसर पहिया सेहो ससमय लागि जायत त कुमार्ग पर नहि जायब, बचि जायब…। नहि त नेपाल के कोन ठेकान, सूर्य अस्त नेपाल मस्त आ फैशन मे बम्बइयो केँ फेल करयवला समाज… कहीं बहकि गेलहुँ त सब बर्बाद!
दोसर बात, बेसी उमेर मे सन्तान भेला सँ सन्तानक रेख-देख अधवयस किंवा वृद्ध पिता सँ ओतेक नीक नहि भ’ पबैत छैक जतेक कि उपयुक्त समय मे विवाह आ सन्तानक पिता बनल पिता सँ होइत छैक… एहेन-एहेन कय टा सैद्धान्तिक बात सब मे नित्य चिन्तनशील एक समाजवादी नेताक बेटा हम तेँ २२ साल मे निर्णय कय लेने रही जे उपयुक्त कथा निर्णय कय विवाह कय ली। लेकिन भगवान् केँ किछु आरे मंजूर रहनि…. हमर पिता हमरा अचानक १९९५ मे छोड़ि चलि गेलाह।
हमर पिता बहुत दूरदर्शी आ अत्यन्त अध्ययनशील, स्वाध्यायी अध्येता आ बड़का-बड़का रहस्यक उद्घाटन करनिहार स्रष्टा छलथि। ओ डायरी लिखथि। नित्य अध्ययनक सारांश लिखथि। हमरा सेहो यदा-कदा पिताक लिखल डायरी भेटि जाय आ पढि लैत रही। अक्षर त हुनकर एहेन सुन्दर आ सुस्पष्ट रहनि जे कि कहू! एहि इहलोक सँ परलोक जाइ सँ पहिने जुलाई १९९४ मे हमरा एकटा चिट्ठी लिखलनि हमरहि पत्रक उत्तर मे जे हम आइ धरि सम्हारि रखने छी। ओहि चिट्ठी मे बुझू ओ हमर जीवन लेल सम्पूर्ण गीता उपदेश लिखि देने छथि। कहियो शेयर कएने होयब… आगू फेरो करब।
पिताक चलि गेलाक बाद ई विवाह सम्बन्ध केना तय भेल आ ताहि समय के समाज व लोकक सोच हमरा प्रति केहेन रहल ई एतबा मार्मिक अछि जे लिखल नहि जा रहल अछि। हम जे सब सोचियो नहि सकैत छलहुँ तेहेन-तेहेन घटना सब घटित भेल छल। आइ ओहेन लोक सब केँ हम ईश्वरक डाँग सँ दण्डित होइत देखि रहल छी, मुदा ताहि दिन घटक मोड़बाक घटना सब देखि काफी विचलन होइत छल। माँ सँ किछु बात सुनय लेल भेटि जाय आ सुनी जे फल्लाँ बाबू एहेन काज कयलनि… तखन मनहि-मन अपना केँ विहँसैत बुझाबी… अरे माँ! फल्लाँ बाबू अपन काज कयलनि, तूँ चिन्ता नहि कर। हमर पिताक आदर्श आ सिद्धान्तक संग हुनकर डायरी-सन्देश आ पत्रादेश हमरा लेल श्रीकृष्णक गीता समान अछि। सब नीक हेतैक। से भेवो केलैक। लेकिन समाजक ओहि तरहक लोक जे पिताविहीन पुत्रक जीवन केँ खलबलेबाक कुत्सित काज करैत छल… ई आइयो मोन पड़ैत अछि त भयातुर भ’ जाइत छी।
हमरे समान कतेको पिताविहीन पुत्र लेल आइ यदि हम पिताक भूमिका कय सकैत छी त एहि सँ बेसी प्रसन्नताक बात दोसर कोनो नहि भ’ सकैत अछि हमरा लेल। बस भावुकता पर अपन नियंत्रण राखि कर्मठता सँ समाज केँ नीक दिशा देबाक लेल प्रतिबद्ध बनय पड़ैत छैक। परोपकारक काज करैत संसार मे जीवन जिबय के अलगे आनन्द छैक। कथा त लम्बा भेल… लेकिन सम्भव अछि एहि मे सँ किछु सन्देश किनको-किनको भेटि जाय। से अपने सब स्वतः कहबे करब प्रतिक्रिया मे! अस्तु! सभक कल्याण हो!!
हरिः हरः!!