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“कतहु रहू मुदा अपन संस्कृति आ संस्कार सँ जुड़ल रहू।”

— आभा झा।     

” प्रवासी मैथिल अपन संस्कृतिक संरक्षण आ संवर्द्धन कोना करैथ “- संस्कृति एक समाजक ताकत होइत अछि। कहल जाइत अछि कि कोनो गाछ तखने तक जीवित रहि पबैत अछि, जखन तक ओ अपन जड़ि सँ जुड़ल रहैत अछि। अपन मैथिल समाजमे व्यक्तिकेँ ओ जड़ि संस्कृति अछि, जकरा सँ जुड़ल रहनाइ व्यक्तिकेँ लेल आवश्यक होइत छैक। स्वदेश हो या विदेश संस्कृति सँ कटल व्यक्ति ओहि पतंग जेकां होइत अछि, जे उड़ि तऽ रहल अछि मुदा मंजिल व रस्ता तय नहिं होइत छैक, ने ओकरा पता रहैत छैक कि ओ कतय जा रहल अछि। वर्तमान परिदृश्यमे अपन समाजकेँ देखू तऽ पता चलत कि युवा पीढ़ी अपन संस्कृतिकेँ दिन-प्रतिदिन पाछू छोड़ि कऽ आधुनिकताक दौड़मे शामिल भेल जा रहल छथि।आइ अधिकांश प्रवासी मैथिल अपन संस्कृति व संस्कार छोड़ि कऽ दोसरकेँ संस्कृति अपना रहल छथि। अपन मातृभाषा मैथिली बाजयमे लाज होइत छैन्ह। जखन अपन मातृभाषा मैथिली अहाँ घरमे बाजब तखन ने अहाँक बच्चो अपन भाषाकेँ बजनाइ सीखत। अहाँ बाहरो रहि कऽ सभटा पाबनि-तिहार मनायब तखन ने अहाँक बच्चो अपन संस्कृति सँ जुड़त।अहाँ अपन माता-पिताकेँ सम्मान देबनि तखन ने अहाँक बच्चो अहाँक सम्मान करत। अपन बेटा या बेटीक विवाह अपन मिथिलाक विध-व्यवहार सँ करब तखने अहाँ अपन संस्कृति आ संस्कारकेँ बचा सकब। विवाहमे दोसरक नकल जेना स्टेज पर जयमाला, धोती-कुर्ता आ पाग छोड़ि शेरवानी पहिरब तखन अहाँ अपन संस्कृतिकेँ संरक्षण नहिं कऽ सकब। बाहरो रहि कऽ अपन पाबनि-तिहार व रीति-रिवाजकेँ सामूहिकता व अपनापनकेँ भावना सँ समाजमे हर्षोल्लास व मातृभाव सँ मनाओल जा सकैत अछि। आइ ओहि पाबनि-तिहार पर सोशल मीडियामे बधाईकेँ फोटो डालि कऽ इतिश्री कऽ देनाइ ई कहाँ तक उचित छै। पाबनि-तिहारक अवसर पर अपन मैथिली लोक संगीत बजा कऽ पाबनिमे चारि चाँद लगायल करू।अपन मैथिली गीत छोड़ि ऊँच आवाजमे डीजे लगा कऽ फूहड़ गीत बजेनाइ उचित नै अछि।
विश्वमे कतहु चलि जाउ मैथिल सब ठाम सहजता सँ देखा जाइत छथि। अदौं काल सँ पाबनि-तिहार अपन संस्कृतिक अभिन्न अंग रहल अछि। अहाँक पहनावा अहाँक संस्कृतिकेँ पहचान होइत अछि। आइ काल्हि परंपरागत पोशाक पहिरैकेँ प्रचलन पाबनि-तिहारमे कमे देखय लेल भेटैत अछि। परदेसमे लोक अपन पाबनि-तिहार और शादी-विवाहमे अपन परंपरागत पोशाक जरूर पहिरैथ।भोजन संस्कृतिकेँ अहम हिस्सा होइत छैक। अहाँ पिज्जा, बर्गर, चाइनीज खा कऽ और पेप्सी कोला पीबि कऽ स्वयंकेँ आधुनिक तऽ घोषित कऽ सकैत छी, मुदा अहाँ अनजानेमे ही सही लेकिन अपन स्वास्थ्य और संस्कृतिकेँ धोखा दऽ रहल छी।भोजनमे देसी स्वाद जरूर हेबाक चाही। मालपुआ, पिरूकिया, खजूर, अनरसा, बगिया ई सब बाहरो रहि कऽ पाबनि-तिहारमे जरूर बनायल करू। आब तऽ यू ट्यूब पर सब व्यंजन बाहरो रहि कऽ सीख सकै छी आ देखि कऽ बना सकै छी। हर प्रांतकेँ अपन-अपन संस्कृति होइत अछि। एहि संस्कृति सँ ही मानव, समाज, देश उन्नति- प्रगतिकेँ मार्ग पर अग्रसर भऽ पबैत अछि। एहि सँ ओ अपन परंपरा, रीति-रिवाज, धर्म आस्था-विश्वास, सामाजिक एकता, खान-पान, रहन-सहनकेँ अक्षुण बना पबैत अछि। आबै वाला नब पीढ़ी लेल ओ मार्गदर्शनक काज करैत अछि।एहि मार्ग पर चलि कऽ ओ अपना आपके एक सुसभ्य इंसान बनबैमे सफल भऽ पबैत अछि। एक तरह सँ ई संस्कृति हमर थाती अछि। हमर धरोहर अछि। हमर पूँजी अछि। बिना संस्कृतिकेँ हमर कोनो अस्तित्व नहिं अछि।हमर संस्कृति ही हमरा मान-सम्मान, अधिकार प्रदान करैत अछि। हमर पहचान बनबैत अछि। परदेसमे रहि कऽ अपन संस्कृतिकेँ नहिं बिसरी। सभकेँ अपन मिथिलाक समृद्ध सांस्कृतिक पूँजीकेँ ओरिया कऽ रखबाक चाही। लौकिक परंपराक पहियाकेँ गतिमान बनेबाक महती उत्तरदायित्व हमरे सभ पर अछि।वसुधैव कुटुम्बकम् एहि सुंदर अवधारणाकेँ मान दैत परदेसक लोक अपन संस्कृति आ संस्कारक बीयाकेँ अनुकूलित वातावरण देथिन तखने तऽ हमर सभक संस्कृति पुष्पित आ पल्लवित भऽ कऽ नब पीढ़ीकेँ मार्गदर्शन करत। स्वदेशमे रहू या विदेशमे कतहु रहू मुदा अपन संस्कृति आ संस्कार सँ जुड़ल रहू। जय मिथिला जय मैथिली।

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