“परिवार स’ घर बनैये ,आर घर स’ एकटा समाज”

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— रिंकू झा।           

परिवार स घर बनैया ,आर घर स एक टा समाज बनैया , आर पुरा समाज मिली क एक टा देश बनाबै छैथ , अहि सब क्रिया के सुरूआत एक टा परिवार के द्वारा होई छै, आर ई परिवार एक टा महिला बनाबै छैथ। ऐकर सिधा अर्थ भेल जे महिला के योगदान सब जगह पर छै ,हुनका क्षमता के बिना एक टा समाज के कल्पना केनाई ब्यर्थ छै । कारण महिला सृष्टि के सृजन करै छैथ।
ओना त महिला आर पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दु टा पहिया छै दुनू पहिया मिली क जीवन रूपी गाड़ी के सुचारू रूप स खिचै छैथ ।
पहिले के अपेक्षा अखन समाज में महिला के स्थिती में बहुत बदलाव भेला , कारण हुनकर सिमा आब केवल घर के अन्दर तक सिमीत नै छैन ,ओ घर -परिवार के साथ -साथ समाज के भिन्न -भिन्न क्षेत्र में अपन योगदान द रहल छैथ आर समस्त समाज में अपन पहचान बना रहल छैथ।
पहिले समाज में महिला के एक टा सिमा के अन्दर रहय परै छलैन हैं,खास क ग्रामीण क्षेत्र मे, जाहि मे मिथिलांचल में जतेक हम सब देखने या मां आर दादी सं सुनने छी , । महिला के लेल शिक्षा के प्रचार प्रसार कम छलै,कम उम्र में ब्याह दान भ जाय छलैन ,हुनका सब के लेल एक टा सिमा निर्धारित छलैन । महिला सब के काज छलैन केवल घर -परिवार के देख-भाल केनाई आर घरक सब काज सही समय स सम्पन्न केनाई। पुरुष जे किछु कमा क आनै छलैथ ओहि के सहि तरह स सम्हारी क रखनाई आर जरुरत के हिसाब स खर्च केनाई हुनकर ज्ञान के परिचायक छलैन । बाल-बच्चा के सही परबरिस देनाई महिला के जिम्मेदारी रहैन , पुजा -पाठ हवन आदि में महिला सब के जरूरत के हिसाब स सहयोग लेल जाय छलैन , पुरुष प्रधान समाज छल ओहि मे महिला के राय बिचार के बहुत बेशी अहमियत नहीं देल जाय छलै। पुरुष के सामने महिला सब अपन मुंह नै खोलै छलैथ ,घुंघट केनाई एक टा पैघ प्रथा छलै जाहि मे मिथिलांचल जकरल छल महिला सब खास क बेटी -पुतौह सब दलानो तक नहीं नीकली पबै छलैथ , घर स बाहर जेनाई एक टा समय सिमा के अन्दर रहय छलैन । तेज स्वर में बाजब मना छलैन ,
आब समाज के सोच बदैल रहल छै महिला के भुमिका में बहुत किछु परिवर्तन भेला आधुनिक युग में महिला सब पुरुष जकां उच्च शिक्षा प्राप्त क रहल छैथ,घरक सिमा लांघी क स्कूल,कलेज, ओफिश जा रहल छैथ, समाज के भिन्न -भिन्न‌‌‌ क्षेत्र में अपना योग्यता के अनुसार कार्य क रहल छैथ , राजनीति, बैज्ञानिक संस्थान,खेल जगत,सेना , पुलिस अधीक्षक, बिमान सेवा, अस्पताल, कोर्ट -कचहरी , आदि सब जगह अपन कदम पसारि रहल छैथ। नौकरी स जे वेतन उठाबै छैथ ओहि स आर्थिक स्वावलंबन हुनका अन्दर एलैन हैं, खास तौर पर हुनकर आत्मबिस्वास बढी रहल छैन । समाज आर परिवार के सोच से महिला के प्रति जागरूक भेलैन हैं, आब घरक मुखिया अपन बेटी,पुतौह के शिक्षा के तरफ ध्यान दै छथीन, महिला सब के पढी लीख क बाहर जाय के अनुमति दै छथीन, बेटी ब्याह में जल्द बाजी नै करै छैथ । बहुत नै के बराबर रोक -टोक करै छथिन ।
मुदा अखनो समाज में किछु लोक छैथ जे कुन्ठीत सोच के शिकार छैथ महिला सब के रिती, रिवाज आर परम्परा के दुहाई द के हुनका गुमनाम जिंदगी जीबै के लेल बिवश क दै छथीन, महिला के घरक लाज के ताज पहिरा देल जाय छै जकर भार बड भारी होई छै,
जेना _ देर राईत तक घर स बाहर नै रहब
तरीका के कपड़ा पहिरब
नजर झुका क चलब
उंच स्वर में बात नै करब
आदि पिता के सम्पत्ति में बेटी के हक अखनो मिथिलांचल में नहीं सम्भव अछी , एहन बहुत सारा सराहनीय कदम सरकार सेहो उठेलैथ हे महिला के लेल समाजो अगा एलैथ हे मुदा अखनो बहुत किछु परिवर्तन भेनाई बांकी अछी खास के ग्रामीण क्षेत्र में ।