पिताक सीख
– प्रवीण नारायण चौधरी
पिता प्रति समर्पित ई एक लेख….
हे पिता, हम अपन बौद्धिक सामर्थ्य सँ कखनहुँ अहाँक आदर्श पथ सँ विचलित नहि होइ एतबा चाहैत छी। हमर अपन जीवन मे अहाँक सिखायल मार्ग मात्र काज आबि रहल अछि। ओना त सम्पूर्ण मानव संसार सामाजिक प्राणीक रूप मे हमेशा एक-दोसर सँ जुड़ियेकय जीवन जियैत अछि, परञ्च अहाँक शोधपूर्ण विचार हमरा सदिखन जिवन्त आ मजबूत रखैत अछि।
२०११ मे जखन ई दहेज मुक्त मिथिला के स्थापना भेल छल त कतेको लोक बाजय जे प्रवीणजी केँ अपने ३-३ टा बेटी भगवान् देने छथिन तेँ ई ‘दहेजमुक्त-दहेजमुक्त’ करैत छथि…. ओकरा सब केँ पता नहि रहैक जे हम किनकर बेटा छी आ ओ पिता हमरा कि-कि आदर्श सिखाकय गेल छथि। १९९५ के ६ फरवरी अहाँ हमर २३ वर्ष के अवस्था मे छोड़िकय चलि गेलहुँ, लेकिन आइ धरि एहेन नहि भेल अछि जे क्षण-क्षण आ पल-पल अहाँ केँ याद नहि करी। दहेज मुक्त समाजक परिकल्पना सेहो एकरे एकटा हिस्सा थिक। अपन बेटी लेल त अकर्मल मनुक्ख चिन्ता करत, कनिकबो बुद्धि आ सुधि सही रखनिहार केँ ‘कन्यादान’ के चिन्ता त बिल्कुल नहि करबाक चाही…. ई बात अहाँ माँ केँ बेर-बेर कहल करी। आखिरकार अहाँ अपन कर्मठ प्रयास सँ निज आदर्श केँ सफल सेहो कयलहुँ। हमर जीवनक एकटा आधार ई सिद्ध भेल।
बेटी लेल दहेज के चिन्ता नहि कय शिक्षा आ संस्कार केर प्राथमिक चिन्तन हरेक अभिभावक केँ करबाक चाही। कियो बेटी लेल लाखक-लाख दहेज गानिकय ओकरा लेल सुख किनबाक चेष्टा करय मे विश्वास करैत अछि, अहाँ से नहि कयलहुँ…. अहाँ बेर-बेर कही जे टका सँ सुख नहि किनल जाइछ, ओ बेटी आजीवन परतंत्रताक जंजीर मे बान्हल जाइछ आ कथित बड़का घर के पुतोहु बनिकय आजीवन दोसरक उल्हन-उपराग आ बात-कथा सुनय लेल बाध्य होइत अछि। तेँ, बेटी मे एतेक सबलता विकसित हुए जाहि सँ ओ सासुर परिवार केँ अपन माथ पर उठा लियए, सासु-ससुर आ पति संग सन्तान आ समाज केँ सेहो ओ अपन गहना बुझय। ओ एतबा कर्मठ बनय जे गरीब-सँ-गरीब आ अभावग्रस्त परिवार केँ सेहो सब तरहक साधन सँ सम्पन्न बना दियए। ओ लक्ष्मीपात्रा बेटी जाहि घर जाय ताहि घर केँ आबाद कय दियए। हमरा बुझने अहाँक ई आदर्श सेहो अपनेबाक भरपूर प्रयास कयल अछि।
अहाँ एक बात आर कही…. अपना सँ पैघ (ऊँच) दिश नहि ताकू, घेंट नमड़ि जायत। मतलब जे अपन समकक्ष अथवा अपनो सँ कम मे जायब त सम्मति आ स्वागत जे भेटत ताहि मे अपनापन भेटत। बड़का के दुत्कार सहितक पूरी-पकवान नीक नहि लागत। अपन तुल्य मे सब काज करबाक चेष्टा करू। अपना सँ नीचाँ ताकिकय आगू बढ़ू। ऊपर अनन्त अछि, नीचा धरातल अछि। हे महान पिता! हमरा अहाँक सब बात नीक सँ मोन पड़ि रहल अछि। कोशिश एतबी अछि जे जीवनक अन्तिम घड़ी धरि अहींक आदर्श पर चली।
अहाँक पुत्र – प्रवीण किशोर