सन्देशमूलक कथाः जबानी मे कुतिया सेहो हसीन होइछ

कथा

– प्रवीण नारायण चौधरी

जबानी मे कुतिया भी हसीन वला कथा
हमर एकटा काकी खौंझाकय कहल करथि, “जबानी मे कुतिया भी हसीन लगती है रे बेटा…. कर जे मोन होइत छौक, बाद मे अपने बुझबिहिन।”
ई बात ओ तखन कहथिन जखन हम किछु बेसिये अपना केँ एडवान्स देखेबाक चक्कर मे कहियनि जे हमरा अपन मिथिलाक कुटमैती प्रथा पसिन नहि पड़ैत अछि काकी। हम त कोनो शहरी छौंड़ी आ जाति-पाति के सीमा सँ हंटिकय ब्याह करब।
“मतलब?” काकी चट् क्रौस करथि। हम मुस्कुराइत कहियनि जे विराटनगर छोट शहर छैक मुदा ओतय भिन्न-भिन्न जाति, समुदाय, सभ्यता, भाषा आदिक लोक रहैत छैक। हमरा त पढ़िते-पढ़िते एकटा पसिन पड़ि गेल अछि काकी। “देखा फोटो?” ओ कहथि आ हम चट् एकटा फोटो देखा देल करियनि मजाके-मजाक मे। ओ देखिते नाक-भौं सिकोड़ैत उपरोक्त बात कहथि।
काकी केँ अपन मिथिला आ मैथिल छौंड़ीक सुन्दरताक आगू आन समाज-सभ्यताक सुन्दरता तुच्छ बुझाइन सम्भवतः। या फेर ओ जातिक नाम पर भड़कि जाइत छलीह। डायरेक्ट नहि कहि ओ घुमाकय बुझबैत रहथि।
बाद मे एक बेर ट्रेन के यात्रा मे एकटा बड पैघ लोकक डाक्टर बेटी संग भेंट भेल। ओ परिचयक क्रम मे आह्लादित होइत अपन अन्तर्जातीय विवाह के प्रसंग अपने उठा देलीह। बहुत सम्भ्रान्त आ सज्जन, आधुनिकताक सब आयाम मे स्वयं केँ आगू माननिहाइर आ एकटा डाक्टर लेडी…! समाजक सीमा संग प्रतिष्ठित परिवार आ कुलीनता सब पर बड खुलिकय राय रखलीह। ओ कहली जे हमर सासुर सेहो फल्लाँ महानगर के प्रतिष्ठित डाक्टर परिवार के रूप मे परिचित अछि, हमरा कनिकबो मुन मलान नहि भेल अछि अपन निर्णय पर। लेकिन आब हम अपन मूल परिवार सँ तेना भ’ कय कटि गेलहुँ जे कि कहू। कि घुरिकय हमर सन्तति कहियो अपन मूल कुल व कुलीनता केँ आत्मसात कय गर्वबोध करत? हम जखन नैहर जाइत छी आ अपन बहिन सब केँ, ओकर सन्तान सब केँ मामागाम आ सौंसे गाम खेलाइत देखैत छी त हमर अपन निर्णय पर अफसोस होबय लगैत अछि। तखन त समय बीति गेल! आब पछताइये कय कि करब!
देखू, आधुनिकताक वरण कयलाक बादो जँ अहाँ मे कनिकबो अपन अभिभावकक स्नेह आ सम्बन्धक ज्ञान हुए त अन्तर्जातीय विवाह के निर्णय सँ पहिने ३ बेर सोचल करू। समयाभाव मे लेख केँ हम एखन विराम दैत छी। किनको दुविधा आ भ्रम के कोनो तथ्य बुझायत त जिज्ञासा अनुसार बाद मे फेर सम्बोधन करब।
हरिः हरः!!