ब्रिटिशकालीन भारत मे बीसम् शताब्दीक प्रारंभहि सँ भारतीय गणराज्यक स्वरूप पर बौद्धिक चर्चा आरंभ भऽ गेल छल। असाक्षर आ बेमतलबक आम जनमानस एहि प्रक्रिया सँ सब दिन दूरे रहैत अछि – ओकरा लेल बुद्धिजीवी आ अगुआ विद्वत् समाज द्वारा बनायल राह पर जिनगी जियब टा लक्ष्य होइत छैक। निश्चित रूप सँ मैथिल समाज सेहो एहि प्रक्रिया मे कतहु पाछाँ नहि रहल, मुदा अहंता सँ वर्ग-विभाजन मे पारंगत मिथिलाक तात्कालीन विद्वत् समाज ‘सामाजिक समरसता’क दीर्घजीवी सोच केँ त्याग करैत अन्ततोगत्वा भारतीय संघीयता मे नहिये मैथिली आ नहिये मिथिला केँ स्थापित कय सकला, ढेर बुधियार तीन ठाम मखैत अछि किछु ताहि तरहक लोकोक्ति अनुरूप अपने मे सोइत ब्राह्मण, गैर-सोइत ब्राह्मण, कुलीन आ नीच-कुलक ब्राह्मण, कर्ण कायस्थ, बत्तीसगामा, आ कि-कि… जाति मे सेहो उपजातिक उजमारि उठबैत समाज केँ विभक्त करबाक अकाल सँ मिथिलाकेँ मृत्युदान देबाक भरपूर कूचेष्टा मे लागि गेलाह। आइयो, बहुते हद तक बुद्धिजीवीवर्ग मे एहि तरहक आन्तरिक विभेद व्याप्त अछिये। तैयो विद्वान् मे सँ वीर आ दूरदृष्टिसंपन्न अनेको मैथिलीपुत्र मैथिली भाषा केँ स्थापित करबाक लेल जीतोड़ प्रयास करैत रहला। एहि सन्दर्भ मे डा. अमर नाथ झा केर नाम एहि लेल स्मृति मे अबैत अछि जे ओ अपन अमूल्य कृति Language Policy: Vision and Action मे बाकायदा मैथिली लेल कैल गेल प्रयास आ ताहि ऊपर काँग्रेस अधिवेशन मे किछु निहित स्वार्थवश अथवा अदूरदृष्टिपूर्ण निर्णयक चलते भेल नुकसानक चर्चा लिपिबद्ध केने छथि।
डा. अमरनाथ झा अधिवेशन आ खासकय डा. राजेन्द्र प्रसाद तथा डा. सच्चिदानंद सिन्हा द्वारा अग्राधिकारक दुरुपयोग आ हुनकर अनुपस्थिति मे कैल गेल निर्णय विरुद्ध अपन असहमतिक बात सेहो उल्लेख केने छथि। एहि सँ स्पष्ट होइत अछि जे मैथिलीक वर्चस्व केँ कोना ‘बिहाररूपी प्रान्तीय परिकल्पना’ लेल किछेक अमैथिल विद्वान् दरकिनार कय देला आ तेकर दुष्परिणा कतेको वर्ष धरि मैथिली केँ संवैधानिक मान्यता पेबा सँ वंचित रखलक।
मैथिली केँ हिन्दीक बोली प्रमाणित करबाक कुत्सित प्रयास बहुत पहिनहि सँ होइत रहल अछि। संयोगवश डा. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन द्वारा मैथिली पर बहुत गंभीर कार्य आ शोध कैल गेल छल आ तेकरा सन्दर्भ मे लैत स्वयं मैथिली साहित्यक विशाल भंडार अपन वजूद हिन्दी सँ इतर आ हिन्दी सँ बहुत पहिनहि सँ स्थापित केने अछि – ई एकटा गंभीर मंथनक विषय भारतक स्वतंत्रताक बादो करीब ५ दशक धरि चलैत रहल।
संघर्ष निरंतरता मे रहल, सृजनशीलता आ समर्पण सँ मैथिली साहित्यक सागर मे कहियो जल सूखायल नहि, एहि तरहें अन्त-अन्त मे राष्ट्रवादी सरकार भाजपा नेतृत्वक माननीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आ उप-प्रधान तथा गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी सहित समस्त नीति-निर्माणकर्ताक सहयोग सँ मैथिली केँ भारतीय राष्ट्रीय भाषाक मान्य सूची – संविधानक अष्टम् अनुसूची मे स्थान २००३ मे देल गेल। ज्ञात हो जे भाषाक जीवन रक्षा हेतु रोजगार प्रथम विन्दु होइत छैक, अष्टम् अनुसूची मे प्रवेश केलाक तुरन्त बाद सँ भारतीय संघ लोक सेवा आयोग सेहो मैथिली भाषा केँ मान्यता प्रदान केलक। मुदा ओम्हर गृहराज्य बिहार मे अतिराजनीति केर बड पैघ ठोकर लालु रिजाइम मे मैथिली केँ देल गेल छल ओकरा राज्य लोक सेवा आयोग मे सँ मान्यता समाप्त कय केँ…। लालू मैथिली सँ अभिशप्त आइ राजनैतिक वजूद लेल तरैस रहला अछि। राजग पुन: मोदीक नेतृत्व मे देशक बागडोर सम्हारि लेलक। बिहार सरकार द्वारा दायर रीट सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज कय देल गेल। मैथिली माध्यम सँ प्राथमिक शिक्षा देबाक मौलिक अधिकार केँ बहाल करेबाक डा. जयकान्त मिश्र केर लड़ाई विजयी भेल। तथापि राजनीति एक दिशि आ मैथिलीक सबलता दोसर दिशि। बिहार सरकार – नितीशक नेतृत्व – राजग केर नेतृत्व मुदा मैथिली संग छल आ ठकबाक प्रवृत्ति चरम पर रहल – मैथिलीक शिक्षक तक केर बहाली नहि कैल गेल। मैथिलीक श्राप बिहार राज्य सत्ता पर सेहो पड़ल स्पष्टे देखा रहल अछि। मुदा हाले पटना उच्च न्यायालय द्वारा स्पष्टीकरण मंगला पर पुन: राज्य मैथिली मे शिक्षा देबाक लेल आवश्यक तैयारी कय लेबाक बात कहि लेमनचूस चूसेबाक कार्य केलक आ कि सच मे कोनो कार्य एहि दिशा मे पूरा कय लेल गेल अछि ई देखब बाकिये अछि।
मैथिली भाषाकेँ टुकड़ा करबाक कूराजनीति एक तरफ हावी अछि। मिथिलाक्षेत्रक नेतागण सब सेहो एहि भाषा-महत्ताकेँ आत्मसात करय सँ असमर्थ छथि। कारण नेता भेनाय बौद्धिक सामर्थ्य या दूरदृष्टि भेनाय कम सँ कम बिहार मे संभव नहि छैक। लोक जाति-पाति मे मतदाता केँ तोड़ि बस सत्तासुख लेल व्याकुल बनैत अछि, ओकरा कि फर्क पड़ैत छैक जे भाषा आ भाषा आधारित पहिचान सँ संवैधानिक सम्मान आ विकास केर अकाट्य सिद्धान्त केँ कहियो बुझबाक प्रयासो करत। किछेक नेतागण एहि दिशा मे कार्यरत देखाइत अछि, मुदा अधिकांशत: मैथिली केँ एकछत्र ब्राह्मणक भाषा मानि अपन जाति केँ कहियो अंगिकाभाषी, कहियो बज्जिकाभाषी आ कहियो किछु तऽ कहियो किछु भाषाभाषी मानिकय मैथिली सँ कन्नी कटैत अछि। मुदा शक्तिकेन्द्र ‘सृजनशीलता’क पास सुरक्षित – विद्याधनं सर्वधनं प्रधानम् केर नीति सनातन होयबाक सत्य सँ कियो कतेक दूर भागि सकत; मैथिली अपन सामर्थ्य आइयो बरकरार रखने अछि आ निरंतर प्रवर्धनक दिशा मे स्वयंसेवा सँ आगाँ बढि रहल अछि।
काल्हिये आयल संघ लोक सेवा आयोगक परीक्षा परिणाम सँ दर्जनों छात्र मैथिली ऐच्छिक विषय राखि प्रशासकीय सेवा मे सफलता हासिल केलनि अछि। एकर सेहो दूरगामी प्रभाव पड़त। छद्म-क्षूद्र लोक मे मैथिली प्रति जे आकर्षण समाप्त होइत छल से पुनर्बहाल होयत। लोक एहि भाषाक शक्तिकेँ आत्मसात करबाक लेल बाध्य होयत। दिनानुदिन बेसी सँ बेसी छात्र मैथिली विषय राखिकय स्नातक आ उच्च शिक्षा ग्रहण करता। प्राथमिक शिक्षाक अधिकार लेल सरकार सँ लड़िकय अधिकार प्राप्त करता। जहिया लोकमानस मैथिलीकेँ शुरुहे सँ मराठी, गुजराती, काश्मीरी, बंगाली, आसामी व अन्य भाषा जेकाँ पकैड़ लेत, ई गारंटी छैक जे ९०% आइएएस पूरे बिहारक मात्र मैथिल होयत। एकरा कियो नहि रोकि सकैत छैक।
समग्र मे, संघ लोक सेवा आयोग केर परिणाम सँ समस्त मैथिलीभाषी मे एकटा नव उत्साह पसरल अछि। एहि लेल पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी केँ हृदय सँ धन्यवाद जे ओ निर्मली मे देल अपन वचन केँ निर्वहन केला। मैथिली प्रति कतहु विद्वेष भावना नहि बनय आ एहि मधुर भाषाक मधुरता सँ सदैव मिथिला जानकी समान जगज्जननी बनि विश्व केर कल्याण करैत रहय, यैह शुभकामना दैत छी। एक बेर फेर सँ पास भेल समस्त सफल उम्मीदवार, जे नहियो पास भेला तिनको आ जे आगाँ प्रयास करता तिनका सबहक लेल मैथिली भाषा सँ निरंतर प्रयास करैत सफलता पेबाक शुभकामना – मैथिली जिन्दाबाद!!