— उग्रनाथ झा।
शारीरिक निरोगता सभ प्राणीमात्र लेल आवश्यक छैक । ताहि लेल कहल गेल छैक जे स्वास्थ्य उत्तम धन छै ।जहां तक जनानीक स्वास्थ के बात छैक त देखल गेलैक अछि जे प्रारंभीक दशा में पुरूषक अपेक्षा महिला बेसी निरोगी रहैत छथि। ताहि हेतु बौआ के अपेक्षा में बुच्चीक शारिरिक वद्धि तीव्र गतिमे दृष्टिगत होए छैक । समवयसक होएबाक बादो बुच्ची कदकाठी में बीस बुझाए छथि। परंतु आखिर कि एहन बात जे ज्यों ज्यों नारिक उम्र ऊपर बढ़ैत छैक अपेक्षाकृत शारिरिक व्याधि में वृद्धि होमय लगैत जे अंततः कमजोर बनाबैत छैक।
जहां तक देखल गेल छैक जे पुरूष के अपेक्षा नारि देह में दू तरहक विशेष व्याधि छैक जेकर प्रभाव के कारण अधिकतर महिला ग्रसित रहैत छथि। ध्यान देबाक बात ई जे एहि विशेष व्याधि के महिले द्वारा स्वयं अनदेखी कयल जाए छैक।जे शरीर पर अपन दुष्प्रभाव धीरे धीरे छोड़ैत छैक ।
महिला के एहि तरहक बिमारीक खासक’ महिला धर्म चक्र आ जनन सं संबंधित रहैत छैक , कारण जे अन्य बिमारी त समान्य रूप सँ महिला पुरूष दूनू के ग्रसित क सकैत छैक मुदा ई विशेष स्थित के अनदेखी के प्रभाव सं उत्पन्न रोग महिला सभ लेल अभिशाप स्वरूप साबित होएछ। परिस्थिती के भयावहता देखैत विश्व स्तर पर महिला स्वास्थ्य जागरूकता प्रसारित करबाक उद्देश्य स’ अंतरराष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य कार्य दिवस मनौबाक विश्व समुदाय द्वारा नियार भेल आ महिला धर्म चक्र के 28 दिन’क अवधि के लक्षित क 28 मई के तिथि निर्धारित भेल ।
एहि नारि स्वास्थ्य के ध्यान रखैत लगातार विवाह के उम्र में बढ़ोतरी होईत रहल अछि।किएक त कम उम्रक विवाह में देखल गेल अछि जे जच्चा-बच्चा मृत्यु दर काफी उच्च रहैत छल , जच्चा बच्चा दूनू अपेक्षाकृत बहुत कमजोर रहैत छल । फलस्वरूप नारि भरि जीवन समांग लेल झूरझूराएत रहैत छलीह। एहि विकट समस्या सं बचबाक लेल जागरुकता फैलाएल गेल , विवाह , शिशुजनन के वयस निर्धारित भेल मुदा नारिक स्वजागरूकता , अतिउदारतावादी , तिव्रभावुक स्वभाव एहि आशातित चेतना प्रसार के बाटक बाधक छैक। किएक त कोमल आ समर्पित नारि हृदय स्वयं के स्थानापन्न पारिवारिक जीवन जीवामे विश्वास रखैत छथि। अपन लाख कष्ट हो मुदा जाबेतकाल ओ दुख दुस्सह नहि होए ताधरि ककरो लग प्रकट नहि करती । ताधरि नीज स्वास्थ्य के घून लगबैत परिवारिक सदस्य के सेवा भाव आ पोषण में संलग्न रहतीह।
परिवर्तन के एहि दौर में नारि कतबो बदलि जाएथि मुदा हुनकर परिवार प्रथम सिद्धांत लगभग कायम छैक। भोजन भात निक निकुत पहिने पति बाल बच्चा के तखन जौ बचल त अपने अन्यथा जय श्री राम । जखन की उपर्युक्त महिला गुण के अवधि में सर्वाधिक पौष्टिक भोजनक दरकार हुनके रहैत छन्हि।महिला में विटामिन आ आयरन के कमी अधिकत्तर पाओल जाईछ जे सिर्फ आ सिर्फ संतुलित आहार सं ठिक भ सकैत छैक मुदा ओ एकरा कोनो महत्व नहि दैत छथिन्ह। जाहि हेतु भुक्तभोगी होईत छैथ। कहल जाए छैक दर दबाई के पथ परहेजक संयोग भेलाह सं रोग पराई छैक । मुदा ई दूनू देख महिला सभके कछमछी उठि जाए छै। स्वभाववश समयानुसार दबाई नहि खेती कार्य व्यस्तता में बिसरब के बहाना । परहेज जौ डाक्टर मिर्चाई आ खटाई मना केलक त बुझू ना ना बहाना क घर में एहि दूनू के खर्च बढ़त।आखिर ई स्वयं के शरीर पर अत्याचार नहि त और कीँ ?
आखिर महिला के रोगक एकटा विशेष संवाहक ओ अछि खाली पेट ।यानी सप्ताह में कम सं कम तीन व्रत आ उपास शेष चारि दिन तीन बजीया भोजन ।यानी जहन सभ काज राज सँ निश्चिंत और पारिवारिक सदस्यक भोजनोंपरान्त स्वयं भोजन । ताधरि बिन तेल के इंजन आगि उगिली देहक संचित पोषक तत्व शोखि जाए । फलत: व्याधिक आक्रमण आसान भ’ जाए छै।
अंत: समस्त नारि जगत कें अपन स्वास्थ्य पर स्वयं सचेत होएबाक आवश्यकता छैक। अपन विशेष अवधि में आंतरिक स्वस्थता और प्रसुता अवस्था में शारिरिक चेतना जागृत करय पड़तन्हि संगहि परिवारक उपयुक्त सदस्य के से हो विशेष ध्यान देमय पड़तन्हि जे कोन तरहे हुनका स्वस्थ्य राखल जाए ।
नारि स्वास्थ्य के इ प्रतिकुल प्रभाव आई वैश्विक स्तर पर छैक जाहि के जागरूकता हेतु संपूर्ण विश्व एक जूटता छैक। स्कूल कालेज और चिकित्सालय सभठम नारि स्वास्थ्य हेतु आवश्यक सुविधा प्रदान कैल जा रहल छैक।ई जरुरी नहि जे लोक अशिक्षा आ अनभिज्ञता के कारण एकर मकरजाल में फसल अछि। बल्कि संकोच आ आलस्यता के द्वंद में अनठिआओल जाएत छैक जे जान लेबा तक भ जाए छैक।
ताहि हेतु समस्त नारि जाति सं आह्वान जे अपन स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होउ। संकोच त्यागि स्वास्थ्य जागरूकता लाउ ।कनि सोचूं जाहि मायाजाल में लटपटाओल अपने अपन देह सं विदेह बनि परिवार के सिंचित करै में रमल रहै छि। आखिर अहां जहन स्वस्थ नहि रहब तखनि फेर ओहि उपवन के की हेतै जकर अहां माली छि। संगहि दू शब्द ओहि आत्मा के सेहो कहब चाहब जे एहन जे निश्वार्थ सेवी हुनको हालात पर नजरि बनौने रहि।जरुरी नहि जे सभ बात खुलीए के कहल जाए ।किछु अपनों अनुभव पर समीक्षा करी ।
सादर उग्रनाथ झा ।