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रामचरितमानस मोतीः सरस्वती द्वारा मंथराक बुद्धि फेरब आ तदोपरान्त….

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

सरस्वती द्वारा मन्थराक बुद्धि फेरब आ कैकेइ-मन्थरा संवाद

श्रीरामजीक युवराज नहि बनय देबाक कुचक्रक प्रसंग

१. मन्थरा नाम के कैकेइ केर एक मन्दबुद्धि दासी रहथि, ओकरे अपयशक पेटारी बना सरस्वती ओकर बुद्धि केँ फेरिकय चलि गेलीह। मन्थरा देखलक जे पूरा नगर सजायल अछि, सुन्दर मंगलमय बधावा चारू दिशि बाजि रहल अछि… ओ लोक सब सँ पुछलक जे ई कोन उत्सव थिक आ लोक सँ जखनहि सुनलक जे श्री रामचन्द्रजीक राजतिलक होयत, एतबा सुनिते ओकर हृदय मे जलन के भयंकर ज्वाला धधकि उठलैक। ओ दुर्बुद्धि नीच सोचवाली दासी विचार करय लागल जे कोना एहि काज केँ रातोरात बिगाड़ि देल जाय… जेना कोनो कुटिल भीलनी मौधक छत्ता देखि घात लगाकय ओकरा उखाड़ि लैत अछि बस तहिना मन्थरा श्रीरामचन्द्रजी केँ युवराज पद देबाक निर्णय केँ उलटाबय लेल कुचक्र करबाक सोच बना लेलक।

२. ओ उदास होइत भरतजीक माता कैकेइ लग गेल, जहाँ रानी पुछलखिन जे तूँ उदास कियैक छँ… ओ किछु उत्तर नहि दैत अछि, बस लम्बा-लम्बा साँस टा लय रहल अछि आ त्रियाचरित्र कय केँ आँखि सँ नोर बहा रहल अछि। रानी हँसिकय कहय लगलखिन जे तोहर त बड़का-बड़का गाल छौक (माने बढि-चढिकय बाजयवाली लोक थिकें)। हमरा लगैत अछि जे लक्ष्मण तोरा कोनो बात सिखेलखुन (दण्ड देलखुन) हँ। तखनहुँ ओ महापापिनी दासी किछो नहि बजैत अछि। एना लम्बा साँस छोड़ि रहल अछि मानू काली नागिन फुफकार छोड़ि रहल हुए। तखन रानी डरा गेलीह आ कहलखिन – गय! कहैत कियैक नहि छँ? श्री रामचन्द्र, राजा, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न कुशल सँ त छथि? ई सुनि कुबरी मन्थरा केर हृदय मे बड पीड़ा भेलय आ बाजल – यह रानी! हमरा कियैक कियो किछु सिखायत आर हम केकरा पाबि गाल बड़का करब…! रामचन्द्र केँ छोड़ि आइ आर के कुशल अछि, जिनका राजा युवराज पद दय रहल छथिन। आइ कौसल्या लेल विधाता खूब दहिन छथिन, से देखि हुनकर हृदय मे हर्ष उमड़ि बाहर आबि रहल अछि। अहाँ अपने जाकय सबटा शोभा कियैक नहि देखि लैत छी, जे देखिकय हमरा मोन मे क्षोभ भेल अछि। अहाँक बेटा एखन परदेश मे अछि आ अहाँ केँ एहि सब बातक कोनो चिन्ते नहि अछि। जनैत छी जे स्वामी अहाँक वश मे छथि, अहाँ केँ त तोशक-पलंग पर पड़ल-पड़ल नीन्दे लेनाय बड प्रिय अछि… राजाक कपट आ चलाकी त अहाँ केँ देखाइतो नहि अछि।

३. मन्थराक प्रिय वचन सुनि मुदा ओकर मोनक मइल केँ परखि रानी कनेक लिबिकय ओकरा डाँटिकय बजलीह – बस, मुँह चुप कर घरफोड़ी! फेर जँ एहेन बात सब बजमे त जी घिचबा लेबउ। कन्हा, लंगड़ा आर कुबड़ा केँ कुटिल और कुचाली जनबाक चाही, ताहू मे स्त्रीगण आ ओहि मे सेहो दासी! एना फटकारि रानी पुनः मुस्कुरा देलीह आ फेर ओकरा पुचकारैत बजलीह – गय मन्थरा! सुन! हम तोरा ई सीख एहि लेल देलहुँ जे हमरा संग हमेशा तूँ प्रिय बजैत रहल छँ, हमरा तोरा उपर कहियो सपनो मे तामश नहि होइत अछि। सुन्दर मंगलदाय शुभ दिन वैह होयत जहिया तोहर कहब सत्य भ’ जायत, अर्थात् श्रीरामक राज्यतिलक होयत। पैघ भाइ स्वामी आर छोट भाइ सेवक होइत अछि। ई सूर्यवंश केर सुहाओन रीति थिक। जँ सचमुच काल्हिये श्रीरामक राजतिलक छन्हि तँ हे सखी! तोहर मोन केँ जे नीक लागउ से माँगि ले, हम तोरा वैह देबउ। राम केर सहज स्वभाव सँ सब माता कौसल्यहि समान प्रिय छथिन। हमरा लेल त हुनका आर विशेष सिनेह छन्हि। हम हुनकर प्रीति केर परीक्षा कय केँ देखि लेने छी। जँ विधाता कृपा कयकेँ जन्म देथि त श्री रामचन्द्र पुत्र आर सीता पुतोहु सेहो देथि। श्री राम हमरा प्राणहुँ सँ बेसी प्रिय छथि। हुनकर तिलक सँ तोरा क्षोभ केहेन? तोरा भरत के शपथ छौक, छल-कपट छोड़िकय सब किछु सच-सच कहे। तूँ हर्षक समय विषाद कय रहल छँ, हमरा एकर कारण सुना।

४. मन्थरा बाजल – हमर त सबटा लिलसा एक्के शब्द बजला सँ पूरा भ’ गेल, आब दोसर जी जोड़िकय कि बाजू! हमर अभागल कपार त फोड़इये जोग अछि, जे नीक बात कहलो पर अहाँ केँ दुःख होइत अछि। जे झूठ-सच बना-बनाकय कहैत अछि से रानी अहाँ केँ बड प्रिय अछि आर हम कड़ू लगैत छी! आब हम अहाँ केँ जे नीक लागल सैह टा कहब, नहि त चुप्पे रहब। विधाता कुरूप बना हमरा परवश कय देलनि! दोसर के कोन दोष! जे रोपलहुँ से काटि रहल छी, जे देलहुँ से पाबि रहल छी। कियो राजा बनय, हमर कोन हानि अछि? दासी छोड़िकय हम कि रानी थोड़े न बनि जायब! हमर स्वभाव तँ जरहे जोग अछि, कियैक त अहाँक अहित हमरा सँ देखल नहि जाइत अछि, तेँ किछु बात चलेलहुँ, लेकिन हे देवी! हमरा सँ बड भारी गलती भेल, क्षमा करू।

५. अस्थिर बुद्धिक स्त्री आर देवता लोकनिक मायाक वश मे हेबाक कारण रहस्ययुक्त कपट सँ भरल प्रिय वचन सुनिकय रानी कैकेइ बैरिन मन्थरा केँ अपन सुहृद् (अहैतुक हित करनिहाइर) बुझि ओकर विश्वास कय लेलनि।

६. बेर-बेर रानी ओकरा सँ आदरक संग पुछि रहल छथि, मानू भीलनीक गायन सँ हिरनी मोहित भ’ गेल हो। जेहेन भावी होइछ तेहने बुद्धियो भ’ गेल करैत छैक। दासी अपन दाँव लागल देखि खूब हर्षित भेल। ओ कहैत अछि – अहाँ पुछैत छी मुदा हमरा कहैत डर भ’ रहल अछि, कियैक तँ अहाँ पहिनहि हमर नाम घरफोड़ी राखि देलहुँ। बहुतो तरहें बात गढ़ि-छिलिकय, खूब विश्वास जमाकय, फेर ओ अयोध्याक साढ़े साती (शनि केर साढ़े साती वर्षक दशारूपी मन्थरा) बाजल –

७. हे रानी! अपने जे कहलियैक कि हमरा सीता-राम प्रिय छथि आर राम केँ अहाँ प्रिय छियनि से बात त सही अछि, मुदा ई सब बात पहिने छल से आब बीति गेल बुझू। समय बदलि गेलापर मित्र सेहो शत्रु बनि जाइत अछि। सूर्य कमल केर कुल के पालन करयवला थिक, लेकिन बिना जल के ओ सूर्य ओहि कमल केँ जराकय भस्म कय दैत अछि। अहाँक सौतिन कौसल्या अहाँ जड़ि उखाड़य चाहैत छथि। तेँ उपायरूपी घेराव लगाकय स्वयं केँ सुरक्षित करू। अहाँ केँ अपन सोहागक झूठ बल पर कनिकबो सोच नहि अछि, राजा केँ अपना वश मे जनैत छी मुदा राजा मोनक मैला आ मुँहक मीठ छथि से नहि बुझैत छी। अहाँक सोझ-सीधा स्वभाव अछि, बेसी कपट-चतुराई अहाँ नहि बुझैत छी। रामक माय कौसल्या बड चतुर और गंभीर छथि तेकर थाह कियो नहि पबैत अछि। ओ मौका देखिकय अपन काज सुताइर लेलीह। राजा भरत केँ नानीगाम पठा देलनि तेकर पाछूक सबटा चक्रचाइल अहाँ कौसल्ये केर बुझू। कौसल्या बुझैत छथि जे सब सौतिन लोकनि त हमर नीक जेकाँ सेवा करिते छथि, एकटा भरतक माय पतिक बल पर गर्वित रहैत छथि। ताहि सँ हे रानी! कौसल्या केँ अहाँ बहुतो साल सँ खटैक रहल छियनि, लेकिन कपट करय मे बड चतुर छथि आ हुनकर हृदयक भाव बुझय मे नहि अबैत अछि, ओ अपन सब चतुरता नुकाकय रखैत छथि। राजाक अहाँ पर विशेष प्रेम छन्हि। कौसल्या सौतक स्वभाव सँ से देखि नहि सकैत छथि, ताहि लेल जाल बुनिकय राजा केँ अपन वश मे कय ओ भरतक अनुपस्थिति मे राम के राजतिलक लेल लग्न निश्चय करबा लेलीह। रामक तिलक हो से रघुकुल मे उचिते अछि आ ई बात सब केँ सोहाइतो छन्हि आर हमरा सेहो बड नीक लगैत अछि, मुदा हमरा आगाँक बात विचारिकय डर लागि रहल अछि। दैव उलैटकय एकर फर कौसल्ये केँ देथि!

८. एहने-एहने करोड़ों कुटिलपनाक बात गढ़ि-छिलि मन्थरा कैकेइ केँ उलटा-सीधा बुझा देलक आर सैकड़ों सौतक कथा सब एना बना-बनाकय कहि देलक जाहि सँ हुनकर मोन मे विरोधक भाव बढ़ि जाइन। होनहार वश कैकेयी केर मोन मे विश्वासो भ’ गेलनि। रानी फेर ओकरा शप्पत दैत आरो बात सब पुछय लगलीह। ताहि पर ओ बाजल –

९. कि पुछैत छी? अरे! अहाँ एखनहुँ नहि बुझि पेलहुँ? अपन नीक-बेजा त जानवरो बुझि गेल करैत अछि। पूरा पख बीति गेल सामान सब सजबैत आर अहाँ केँ खबरि भेटल आइ हमरा सँ। हम त अहींक राज मे खाइत-पहिरैत छी तेँ सच कहय मे हमर कोनो दोख नहि अछि। जँ हम कोनो बात बना-सोनाकय झूठ कहैत होयब त विधाता हमरा दंड देता। जँ काल्हि राम केँ राजतिलक भ’ गेल त बुझि जाउ अहाँ लेल विधाता विपत्ति के बिया रोपि देलनि। हम ई बात चेन्ह खींचिकय बलपूर्वक कहैत छी, हे भामिनी! अहाँ त आब दूधक माछी भ’ गेलहुँ। जेना दूध मे पड़ल माछी केँ लोक निकालिकय फेक दैत अछि, तहिना अहाँ केँ लोक घर सँ बाहर निकालत। बेटा सहित अहाँ कौसल्याक चाकरी बजायब त घर मे रहि सकब, नहि त दोसर कोनो उपाय नहि बचत। कद्रू विनता केँ दुःख देने छल, अहाँ केँ कौसल्या देती। भरत कारागार के सेवन करता, जेलक हवा खेता आ लक्ष्मण राम के नायब (सहकारी) हेता।

१०. कैकेइ मन्थराक कड़ुआ बोल सुनिते डराकय सुखा गेलीह, किछु बोली तक नहि निकलैत छन्हि। शरीर पसीना सँ त’र भ’ गेलनि आ केराक पत्ता जेकाँ काँपय लगलतीह। तखन कुबरी मन्थरा अपन जीह दाँत तर दबा हुनका दिश एना तकलक मानू ओकरा डर भ’ गेलय जे हमर बात सँ कैकेइ के हृदय गति त नहि रुकि रहल छन्हि, आब सब बात कहीं उल्टा नहि पड़ि जाय। फेर ओ कपट केर करोड़ो कथा कहि-कहिकय हुनका खुब बुझेलक जे धीरज राखू आ एहि स्थिति सँ निबटबाक लेल सोचू।

११. कैकेइ केर भाग्य पलटि गेलनि, हुनका कुचाइल प्रिय लागय लगलनि। ओ बगुली केँ हंसिनी मानि (वैरिन केँ हित बुझि) ओकर खूब सराहना करय लगलीह। कहलखिन – मन्थरा! सुन, तोहर सब बात सही छौक। हमर दाहिना आँखि नित्य फड़ैक रहल छल। हम प्रतिदिन राति केँ खराब सपना देखि रहल छी, लेकिन अपन अज्ञानक चलते तोरा सँ नहि कहैत छलहुँ। सखी! कि करी! हमर त सीधा स्वभाव अछि। हम दायाँ-बायाँ किछो नहि जनैत छी। अपना जनैत आइ धरि केकरो खराब नहि कयलहुँ। तखन नहि जानि कोन पाप सँ दैव हमरा एहेन दुःख देलनि अछि। हम भले नैहर जाकय ओतहि जीवन बिता लेब, मुदा जिवैत-जी हम सौतिन के चाकरी नहि करब। दैव जेकरा शत्रुक वश मे राखिकय जियबैत छथि ओकरा लेल त जिबय के अपेक्षा मरि गेनाय नीक।

१२. रानी बहुतो तरहक दीन वचन सब कहलखिन जे सुनिकय कुबरी अपन त्रिया चरित्र पसारलक आ बाजल – अहाँ मोन मे ग्लानि मानि एना कियैक बाजि रहल छी, अहाँक सुख-सोहाग दिन-दिन दोब्बर होयत। जेँ अहाँक खराब चाहैत अछि वैह अपने खराब भोगत। हे स्वामिनि! हम जखन सँ ई कुमत सुनलहुँ, तखन सँ हमरा नहि त दिन मे भूख लगैत अछि आ न राति मे नीने अबैत अछि। हम ज्योतिषी सब सँ पुछलहुँ त ओ सब चेन्ह खींचिकय हिसाब जोड़ि निश्चयपूर्वक कहलथि जे भरत राजा बनता, ई सत्य बात थिक। हे भामिनि! अहाँ जँ करी त हम उपाय बताबी अहाँ केँ। राजा अहाँक सेवा केर वश मे छथिये।

१३. कैकेइ कहलखिन – तोरा कहला पर हम इनार मे कुइद सकैत छी, पुत्र-पति तक केँ छोड़ि सकैत छी। जखन तूँ हमर भारी दुःख देखिकय किछु कहैत छँ त भला हम अपन हित वास्ते तोहर बात कियैक नहि करब!

१४. कुबरी कैकेइ केँ सब तरहें गछबाकय (बलि पड़यवला पशु बनाकय) कपट रूप छुरी केँ अपन कठोर हृदयरूपी पाथर पर पिजबैत धार तेज कयलक। रानी कैकेइ अपना लग जल्दिये आबयवला दुःख केँ केना नहि देखैत छथि जेना एकटा बलि पड़यवला पशु हरियर-हरियर घास चरैत रहैत अछि लेकिन ओकरा पता नहि रहैत छैक जे मृत्यु ओकर माथ पर नाचि रहल छैक।

१५. मन्थराक बात सब सुनय मे कोमल छैक लेकिन परिणाम अत्यन्त कठोर (भयानक) छैक, मानू ओ मधु मे घोरिकय जहर पिया रहल छल। दासी कहैत अछि – हे स्वामिनि! अहाँ हमरा एकटा कथा कहने रही से याद अछि कि नहि? अहाँक देल दुइ गोट वरदान राजाक पास धरोहर रूप मे सुरक्षित अछि। आइ वैह वरदान राजा सँ माँगिकय अपन छाती ठंढा करू। अपन बेटा लेल राज्य आ राम केँ वनवास दियाउ आ सौतिनक सबटा आनन्द अहाँ लय लिअ। जखन राजा राम के शप्पत खा लेथि तखने वर माँगब, जाहि सँ वचन नहि टारि पाबथि। आजुक राति बीति गेल त काज बिगड़ि जायत। हमर बात केँ हृदय सँ बुझब, प्राणहुँ सँ पैघ बुझब।

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