“जाड़क मास अपनामे तीन ॠतुकेँ समेट लैत अछि।”

339

— आभा झा     

” जाड़ मासमे मिथिलाक आँगन-दलान आ खेतक निखरैत सुंदरता”

– हमर सभकेँ जाड़क छुट्टी जखन स्कूलमे रहैत छल तखन हमसब अपन गाम जेबाक लेल बड्ड उत्साहित होइत रही। ओहि समय गामक आँगन -,दलान आ खेतक दृश्य मनोरम रहैत छल। जाड़ शब्द संस्कृतक ‘ जाड्य ‘ शब्द सँ बनल अछि जेकर अर्थ ठंढक या शीतलता होइत छैक। जाड़क मास अपनामे तीन ॠतुकेँ समेट लैत अछि – शरद, हेमंत और शिशिर। संस्कृत ‘ जाड्य ‘ के एक अर्थ ‘ जड़ता ‘ या ‘ निष्क्रियता ‘ सेहो होइत छैक, जे एहि मौसमक लेल सटीक प्रतीत होइत छैक। जाड़क रातिमे गाममे जिम्हर देखू, उम्हर सुनसान। सांझे सब जाड़क कारण सुति रहैत छैक। गाममे पहिने दूर-दूर तक कोनो इजोत नहिं देखाइत छल। दलान पर धानक दाउन होइत छल। घूमैत बरदक घंटीकेँ टुन-टुन आवाज कानकेँ अतिप्रिय लगैत छल। जाड़ सँ कँपैत सियार और कुक्कुरक आवाज सेहो ठिठुर जाइत रहय। घरक चारूकात रंग-बिरंगक फूल फूलायल देखि मोन हरखित भऽ जाइत छल। परिवारक लोक आँगनमे मड़वा पर अगियासी कऽ ओहिठाम बइसैत छलाह। हमसब ओहि आगिमे छोट-छोट नबका आलूकेँ पका कऽ खाइत रही। नबका चूड़ाक चुलौड़ आ नबका चाउरक खीच्चैरक स्वाद जाड़क मासमे भेटैत छल। नबका चाउरकेँ पिसा कऽ बगिया आ नून तेल संगे चाउरक रोटीक आनंद लैत रही। जाड़मे नब जन्मल बच्चाक पूसैठ अपन मिथिलामे होइत छैक। ओहि हाड़ कंपाबै वाला जाड़मे जखन सूर्य भगवानक दर्शन दुर्लभ भऽ जाइत छलनि तखन छोट बच्चाक कपड़ा लत्ता सुखेनाइ बड्ड कठिन छल।बाबी , नानी सब आगिमे ओहि कपड़ा सबकेँ सुखबैत छलीह। जाड़क रौदक आनंद खूब नीक लगैत छल। माँ, बाबी सब आँगनमे बइस कऽ स्वेटर बनबैत छलीह। सब रौदमे छीमी छोड़बैत रही। गुड़ सेहो पेड़ाइत रहैत छल। जाड़मे गुड़क प्रयोग अमृतक समान होइत छैक। एकर तासीर गर्म हेबाक कारण ई सर्दी, जुकाम और खास तौर सँ कफ सँ राहत दैत छैक। गरीबक लेल जाड़ बड्ड कष्टदायक होइत छैक। जकरा तन ढँकय लगरम कपड़ा आ भरि पेट भोजनो नसीब नहिं होइत छैक। तीरक जेकां भेदैत जाड़ सँ ओकर हालत बड्ड दर्दनाक भऽ जाइत छैक। ककरो लेल जाड़क राति मधु-यामिनी अछि।मखमलक गद्दी पर जिनका दरिद्रताक सर्प दंश नहिं लगैत, जिनका अभावक सूईकेँ चुभन नै सहय पड़ैत छनि, हुनका लेल तऽ जाड़क राति ईश्वरक सब सँ पैघ वरदान छैन्ह। किन्तु जिनका तन ढँकय लेल कपड़ा नै छैन्ह, ने पेट भरय लेल अन्न, फुटपाथक आकाशे जिनकर आवासक छत छैन्ह, एहेन अभागलक लेल जाड़क राति प्रकृति केँ सब सँ पैघ अभिशापक रूपमे अबैत छैक। जय मिथिला जय मैथिली।

आभा झा
गाजियाबाद