“दोसरक संस्कृति के अपनेवाक होर मे अपन धरोहर के दिनानुदिन बिसरल जा रहल छी।”

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— कीर्ति नारायण झा       

एहि तकनीकी युग मे हस्तकला के कोना सहेजि कऽ राखल जाय? हस्तकला के इतिहास अपना सभक ओहिठाम आरम्भ कालहि सँ अत्यन्त विशिष्ट रहल अछि। हाथ सँ निर्मित कला जकरा उपर आजुक तकनीकी युग में जकरा हमरा लोकनि मशीन के युग सेहो कहैत छियैइ ओ एकरा छिरिया वितिया देलकै।हमरा लोकनि हाथ द्वारा निर्मित विशिष्ट बस्तु के त्यागि मशीन द्वारा निर्मित कम समय में तैयार बस्तु पर विशेष जोर देवय लगलियै। अपना सभक ओहिठाम हस्तकला अत्यन्त समृद्ध छल चाहे ओ पथिया अथवा चंगेरा बनयवाक होअय वा मोथी के पटिया वा सोंफ, माटिक सामा चकेबा बनयवाक होअय अथवा कोहबर घर में विभिन्न प्रकार के पेंटिंग के माध्यम सँ आकृति बनयवाक होअय। अपना सभक ओहिठाम एक सँ एक सिक्की के मौनी, खिलौना, गमला, फलदान, चित्र, श्रृंगार बाक्स, टेवल मेट इत्यादि बनाओल जाइत छल जे आब अपना सभक घर में तकला पर नहिं भेटि सकैत अछि आ जँ भेटवो करत तऽ ओकर संख्या बहुत कम छैक आ ओकरा लोक संग्रहालय मे रखवाक बस्तु मानि कऽ रखने छैथि।. अपना सभक ओहिठाम एकटा बाँस के सिरकी बनैत छलैक ओकर विशेषता छलैक जे ओकरा दरवाजा पर लगाओला सँ घरक अन्दर में रहय बला लोक बाहर के आदमी के देखि सकैत अछि मुदा बाहरक लोक अन्दर में उपस्थित लोक के नहिं देखि सकैत छल। इ सभ हस्तकला केर कमाल छल। हाथ सँ निर्मित माटिक जीवंत मूर्ति, काष्ठ कला अपना सभक ओहिठाम सभ दिन सँ समृद्ध रहल अछि जकरा एहि तकनीकी युग में दिनानुदिन ह्रास भेल जा रहल छैक। पहिले कनियाँ के बिवाह में टोल पड़ोसक स्त्रीगण लोकनि मिलि कऽ कनियाँ के श्रृंगार करैत छलीह जाहि मे सभ सामान हस्त निर्मित होइत छलैक आब ई काज ब्युटी पार्लर के विशिष्ट मशीन द्वारा श्रृंगार कयल जाइत छैक। बाँसक पथिया, चंगेरा लोक पावनि टा में तकैत छैथि आब जखन कोनो भोज भात में भात पसेवाक लेल पथिया ताकल जाइत छैक तऽ अत्यन्त कठिन होइत छैक। कोहवर घर के पेंटिंग करय बाली सत्रीगण के आब गाम सभ मे ताकय पड़ैत छैक एकर सभक एकमात्र जिम्मेदार हमरा लोकनि स्वयं छी।. हमरा लोकनि एहि तकनीकी दुनिया के चकाचौंध में पड़ि कऽ अपन कला के बिसरल जा रहल छी। हमरा लोकनि दोसरक संस्कृति के अपनेवाक होर में अपन धरोहर के दिनानुदिन बिसरल जा रहल छी। हम सभ जखन अपन हस्तकला के स्वयं नहिं प्रयोग करब अथवा ओकर विशिष्टता के बिसरबै तऽ आन ब्यक्ति ओकरा कोना महत्व बूझतै आ ओ कोना आकर्षित होयत? ई एकटा बहुत पैघ समस्या छैक। ओ अपना सभक भाग्य कहवाक चाही जे मिथिला पेंटिंग संयोग सँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपन प्रमुख स्थान बनाओने अछि ओहो मिथिला के बाहरी ब्यक्ति द्वारा अथक प्रयास कयलाक उपरान्त मुदा सभ कला के अन्तराष्ट्रीय स्थान दियेवाक लेल हम सदैव दोसर पर आश्रित नहिं भऽ सकैत छी। अपन हस्तकला के पुनर्जिवित करवाक लेल हमरा सभके स्वयं आगू आबय पड़त। एकर समुचित उपयोग स्वयं करय पड़त आ एकर विशिष्टता केर प्रचार प्रसार स्वयं करय पड़त आ तखने टा हमर सभक हस्तकला एक बेर फेर सँ अपन स्थान प्राप्त कऽ सकैत अछि। हमरा लोकनि एक दोसर पर पहिले अहाँ आगू होमय बला सिद्धांत के त्यागि स्वयं आगू बढय पड़त जेना झाजी अंचार के मालिकाइन भौजी आ ननैद मिलि हमरा सभकें देखा देलन्हि जे अपन हस्त निर्मित कला के कोना आगू बढाओल जाइत छैक? आइ हजारों हजार के रोज़गार दऽ कऽ इ झाजी अंचार एहि बात केर संकेत दऽ रहल अछि जे अपना ओहिठाम जे पलायनक भीषण समस्या उत्पन्न भऽ गेल अछि ओ अपन हस्तकला के पुनर्जीवित कयलाक उपरान्त एहि समस्या के समाधान निकालल जा सकैत अछि। प्रशासनक सहयोग के बिना हमरा लोकनि के आगू बढ़य पड़त आ सभक प्रयास के आगू सभ चीजक समाधान संभव अछि। हमरा सभकें मिथिला राज्य चाही ओकर सपना तखने पूर्णरूपसँ सफल भऽ सकैत अछि जखन हमरा लोकनि अपन हस्तकला के पुनर्जीवित कऽ कऽ मिथिला पेटिंग के स्तर पर आनि विश्व के अपना दिस आकृष्ट करी। ई मात्र नारा लगाओला सँ संभव नहिं अछि एकरा लेल हमरा सभकें एकहि संग जमीन पर उतरय पड़त तखनहि तकनीक सँ लड़ल जा सकैत अछि आ अपन कला के पुनरूत्थान कयल जा सकैत अछि……