पुस्तक परिचय
– प्रवीण नारायण चौधरी
नित्यकर्म-पूजाप्रकाश
परमाचार्य पंडित श्री रामभवनजी मिश्र व पंडित श्री लालबिहारीजी मिश्र केर लेखन-सम्पादन मे लिखल ई पोथी अत्यन्त उपयोगी अछि। हमरा लोकनि जाहि समाजक अंग छी तथा जेहेन संस्कार परम्परा सँ अबैत देखलहुँ, किंवा जाहि संस्कार, आचार-विचार आ दैनिकी व्यवहार केँ अनुसरण करैत छी ताहि लेल अत्यधिक उपयोगी अछि ई पोथी। गीता प्रेस गोरखपुर सँ प्रकाशित एहि पोथी मे विभिन्न शास्त्र-पुराण निर्देशित जीवनोपयोगी मंत्र आ तौर-तरीकाक विहंगम उल्लेख भेटैत अछि। नित्यकर्म-पूजाप्रकाश नाम के एहि पोथी मे भोरे सुति-उठि दिन भरिक विभिन्न समय-काल मे भिन्न-भिन्न प्रकारक पूजा-पाठ आ अनेकों धर्म-कर्म केना करबाक चाही ताहि सब बातक उल्लेख भेटैत अछि। हालांकि, हम मिथिलावासी लेल ‘वर्षकृत्य’ मे वर्णित तौर-तरीका बेसी प्रभावी व उपयोगी अछि, परञ्च ‘वर्षकृत्य’ केर अनुवाद सहितक पोथी उपलब्ध नहि रहबाक कारण केवल संस्कृत मे पढ़ब-बुझब आ अनुसरण करबाक सामर्थ्य सहजहि सब मे नहि हेबाक कारण ई ‘नित्यकर्म-पूजाप्रकाश’ बेस उपयोगी सिद्ध होइत अनुभव कयलहुँ हम।
एकर सम्पादकीय मे उल्लेखित किछु बात हमरा अत्यधिक प्रेरणा देलक। हम चाहब जे ई बात अपने सब लग सेहो पहुँचय, सेहो मैथिली मे। आउ देखी एक नजरि सम्पादकीय परः
भारतीय संस्कृति पुनर्जन्म एवं कर्म-सिद्धान्त पर आधारित अछि। संसार मे सर्वत्र सुख-दुःख, हानि-लाभ, जीवन-मरण, दरिद्रता-सम्पन्नता, रुग्णता-स्वस्थता आर बुद्धिमत्ता-अबुद्धिमत्ता आदि वैभिन्न्य स्पष्ट रूप सँ देखा पड़ैत अछि। मुदा ई वैभिन्न्य दृष्ट-कारण सँ टा होयब आवश्यक नहि, कारण कि एहेन बहुतो रास उदाहरण प्राप्त होइत अछि जे एक्के माता-पिताक एक्के संग जन्म लेने युग्म बालक सभक शिक्षा-दीक्षा, लालन-पालन आदि समान भेलोपर व्यक्तिगत रूप सँ ओकरा लोकनिक परिस्थिति भिन्न-भिन्न होइत छैक, जेना कियो रुग्ण, कियो स्वस्थ, कियो दरिद्र त कियो सम्पन्न, कियो अङ्गहीन त कियो सर्वाङ्ग-सुन्दर, इत्यादि। एहि बात सँ ई स्पष्ट अछि जे जन्मान्तरीय धर्माधर्मरूप अदृष्ट सेहो एहि भोग सभक कारण अछि। तेँ मानव-जन्म लय कय अपन कर्तव्यक पालन आ स्व-धर्माचरण केर प्रति प्रत्येक व्यक्ति केँ अत्यधिक सावधान होयबाक चाही।
प्रत्येक मनुष्यक जीवन मे किछु क्षण एहेन होइत छैक जखन ओकर बुद्धि निर्मल आर सात्त्विक रहैत छैक तथा ओहि क्षण मे कयल गेल कार्यकलाप (कर्म) शुभ कामना सभ सँ समन्वित एवं पुण्यवर्धन करयवला होइत छैक, मुदा सामान्यतः काम-क्रोध, लोभ-मोह, मद-मात्सर्य, ईर्ष्या-दम्भ, राग-द्वेष आदि दुर्गुण सभक वशीभूत मानव केर अधिकतर समय पापाचरण मे मात्र व्यतीत भ’ पबैत छैक, जेकरा ओ अपनहुँ नहि बुझि पबैत अछि। चौबीस घंटा के समय मे यदि हम सब एको घंटाक समय भगवदाराधन अथवा परोपकारादि जेहेन शुभ काज सभक निमित्त अर्पित कयलहुँ त शुभ-काजक पुण्य हमरा सबकेँ निश्चिते टा भेटत। लेकिन संगहि तेईस घंटाक जे समय हमरा लोकनि अवैध अर्थात् अशास्त्रीय (निषिद्ध) भोग-विलास मे तथा ओहि भोग्य पदार्थ सभक साधन-संचय मे लगेलहुँ त ओकर पाप सेहो निश्चिते टा भोगय पड़त। ताहि लेल जीवनक प्रत्येक क्षण भगवदाराधनक रूप मे परिणत भ’ जाय – तेकर जरूरत अछि, जाहि सँ मनुष्य अपन जीवनकाल मे भगवत्संनिकटता प्राप्त कय सकय आ पूर्णरूप सँ कल्याणक भागी बनि सकय। एहि वास्ते वेद-शास्त्र सब मे प्रातःकाल जागरण सँ लय कय रात्रि-शयन धरि तथा जन्म सँ लय कय मृत्यु-पर्यन्त धरिक सम्पूर्ण क्रिया-कलापक विवेचन विधि-निषेध केर रूप मे कयल गेल अछि, जे मनुष्यक कर्तव्याकर्तव्य आर धर्माधर्मक निर्णय करैत अछि।
वैदिक, सनातन, धर्मशास्त्रसम्मत स्वधर्मानुष्ठा मात्र सर्वेश्वर सर्वशक्तिमान् भगवान् केर महत्वपूर्ण पूजा थिक। जे मानव केँ कल्याण प्रदान करैत अछि। गीता मे भगवान् स्वयं कहलनि अछि – ‘स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः।’ (पूरा श्लोकः यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्। स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः॥१८.४६॥ – भावार्थः जाहि परमात्मा सँ सम्पूर्ण प्राणी सभक उत्पत्ति होइत अछि आर जाहि सँ ई सम्पूर्ण संसार व्याप्त अछि, ताहि परमात्मा केर अपन कर्महि द्वारा पूजन कय केँ मनुष्य सिद्धि केँ प्राप्त भ’ जाइत अछि।) ताहि लेल वेदादि समस्त शास्त्र सब मे नित्य आ नैमित्तिक कर्म सबकेँ मानवक लेल परम धर्म आ परम कर्तव्य कहल गेल अछि। प्रत्येक मनुष्य पर तीन प्रकारक ऋण होइत छैक – देव-ऋण, पितृ-ऋण आ मनुष्य (ऋषि) ऋण। नित्यकर्म कयला सँ मनुष्य तीनू प्रकार ऋण सँ मुक्त भ’ जाइत अछि –
‘यत्कृत्वानृण्यमाप्नोति दैवात् पैत्र्याच्च मानुषात्।’
जे व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति सँ जीवनपर्यन्त प्रतिदिन यथाधिकार स्नान, संध्या, गायत्री-जप, देवपूजन, बलिवैश्वदेव, स्वाध्याय आदि नित्यकर्म करैत अछि, ओकर बुद्धि आत्मनिष्ठ भ’ जाइत छैक। आत्मनिष्ठ बुद्धि भ’ गेलापर धीरे-धीरे मनुष्यक बुद्धि केर भ्रान्ति, जड़ता, विवेकहीनता, अहंकार, संकोच आर भेदभाव नष्ट भ’ जाइत छैक। तखन ओ मनुष्य परमात्माचिन्तन मे संलग्न भ’ अहर्निश परब्रह्म परमेश्वर केर प्राप्तिक लेल मात्र प्रयत्न करैत रहैत अछि। एहि सँ ओकरा परमानन्दक अनुभूति होबय लगैत छैक। परमानन्दक अनुभूति भेलापर मनुष्य धीरे-धीरे दैवीगुण सब सँ सम्पन्न भ’ कय ईश्वरोन्मुख भ’ जाइत अछि। ईश्वरोन्मुख भ’ गेलाक बाद मनुष्य केँ परमात्माक वास्तविक तत्त्व केर परिज्ञान होबय लगैत छैक आर फेर ओ सदा-सर्वदाक लेल जीवन्मुक्त भ’ जाइत अछि तथा ‘सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म’ (भावार्थः ब्रह्म सत्य ज्ञानस्वरूप व अनन्त छथि।) मे परिनिष्ठित भ’ कय आत्मोद्धार कय लैत अछि। यैह मानव-जीवनक विशिष्ट सफलता थिकैक। तेँ मानव-जन्म केँ सफल करबाक लेल मानवमात्र केँ नित्यकर्म नियमित रूप सँ करबाक चाही।
किछु नित्यकर्म त एहेन छैक जे प्रत्येक व्यक्ति केँ रागपूर्वक नियमित रूप सँ करहे टा पड़ैत छैक। जेना शौचादि कृत्य, स्नान, भोजन, शयन इत्यादि। मुदा ई सबटा कर्म शास्त्रादिक आज्ञा अनुसार हेबाक चाही, तखनहि ओ धर्माचरण केर रूप मे परिणत होयत। जीवनक साधारण-सँ-साधारण क्रिया-कलाप पर सेहो शास्त्र द्वारा विवेचन कयल गेल अछि आर अपन सम्मति प्रदान कएने अछि। यथा – प्रातःकाल कखन उठल जाय, उठबाक बाद सब सँ पहिने कि कयल जाय, ताहि लेल शौच, दतमैन (दन्तधावन), स्नान, भोजन, शयन आदि सभक विधि कहल गेल अछि। तेँ एहि अनुसार जीवन धारण करब टा श्रेय-पथ (कल्याणक बाट) केर अवलम्बन थिक।
प्रस्तुत पुस्तक मे प्रातःकाल जागरणक पश्चात् प्रातःकालीन भगवत्स्मरण सँ लैत शौचाचार, आभ्यन्तर-शौच, दन्तधावन-विधि, क्षौरकर्म, स्नान, संध्योपासन, जप, तर्पण, ब्रह्मयज्ञ, बलिवैश्वदेव आदि पञ्चमहायज्ञ सभक विवेचन, देवपूजन, मानसपूजा, सूर्य-नमस्कार, नित्य-दान, संकल्प-विधि, अतिथि-सत्कार, भोजन-विधि, शयन-विधान आदि प्रकरण सभक संग-संग नित्य पाठ करबाक स्तोत्र सभक संग्रह सेहो कयल गेल अछि। विभिन्न देवता सभक दैनिक उपयोग मे आबयवला स्तुति आर आरतीक संकलन भेल अछि। विशिष्ट पूजा-प्रकरण अन्तर्गत स्वस्तिवाचन, गणेश-पूजन, वरुणकलश-पूजन, पुण्याहवाचन, नवग्रह-पूजन, षोडशमातृका, सप्तघृतमातृका, चतुष्षष्टियोगिनी तथा वास्तुपूजन केर सेहो संग्रह भेल अछि। एहि के संगहि पञ्चदेव, शिव, पार्थिवेश्वर, शालग्राम तथा महालक्ष्मी-दीपमालिका आदिक पूजन विधान सेहो प्रस्तुत कयल गेल अछि।
प्रत्येक मनुष्य केँ चौबीस घंटा मे २१,६०० श्वास चलैत छैक। तेँ प्रतिश्वास के अनुसार भगवन्नाम-स्मरण होयबाक चाही। शास्त्र मे अजपाजप केर एकटा सरल प्रक्रिया छैक, सेहो एतय देल गेल अछि। पुस्तक केर अन्त मे विभिन्न देवता लोकनिक पूजा मे विहित व निषिद्ध पत्र-पुष्प आदिक विवेचन सेहो भेल अछि, जे अर्चक (अर्चना कयनिहार) लेल अत्यन्त महत्वपूर्ण छैक।
एहि पुस्तक केर लेखन-कार्य परमाचार्य श्रीयुत पंडित श्रीरामभवनजी मिश्र द्वारा प्रारम्भ भेल, बीच मे हुनका काशी-लाभ भ’ जेबाक कारण शेष भाग केर लेखन हुनक सुपुत्र श्रीलालबिहारीजी मिश्र पूरा कयलनि।
आशा अछि, ई ‘नित्यकर्म-पूजाप्रकाश’ साधकक लेल अत्यधिक उपयोगी आ लाभप्रद होयत।
– राधेश्याम खेमका
गीता जयन्ती, मार्गशीर्ष शुक्ल ११, विक्रम संवत २०५० ।
हमर नोटः आशा अछि जे ई सम्पादकीय पढ़लाक बाद पाठकक मध्य एकटा नव ऊर्जाक संचरण होयत, बेपटरी कतेको जीवन पटरी पर आओत।
हरिः हरः!!