सामा चकेवा के अद्भुत आ वास्तविक कथा

आलेख

– कुमुद मोहन झा

सामा चकेवा

मिथिलांचल अपन विशेष लोक संस्कृति सॅ चिन्हल जाइत अछि. मिथिला के लोक जीवन प्रकृति केॅ जाहि रूप मे देखने छै, जाहि रूप मे आत्मसात कएने छै, जाहि रंग मे रंगि केॅ ओकर साक्षात्कार कएने छै ओकर चित्रण अप्पन आस्था, रीति रिवाज, पाबनि तिहार आ’ नाच गान के द्वारा करइत अछि. जकर विशिष्ट पहचान छै. एतए के लोक संस्कृति मे अन्तर्भूत मिथिला के जन जीवन के संवेदनशीलता, सौन्दर्य प्रियता आ’ रस साधना के प्रमाण भेटैत अछि. मिथिला के संस्कृति आध्यात्मिक संस्कृति थीक. एतए के लोक जीवन के प्राकृतिक परिवेश मे लगाव, पारिवारिक सामाजिक व्यवस्था, आहार व्यवहार, धार्मिक विचार आ नैतिक बोध मे सर्वत्र आध्यात्मिक आदर्श व्यक्त आ मूर्त रूपमे देखल जा सकैछ.
एहि क्षेत्र मे वर्ष के बारहों महीना कोनो ने कोनो लोकोत्सव के विधान कएल गेल अछि. एहि उत्सव सभमे प्रस्तुत होमएबाला लोक नृत्य, गीत आ कला मिथिलाक सांस्कृतिक विरासत थीक. एहेन लोक पर्व सभ एहि प्रदेश केॅ सुसंस्कृत बना केॅ राखय मे महत्वपूर्ण योगदान कएने अछि. एतए के जीवन केॅ आ जीवन के मूल्य केॅ सजीव बना केॅ राखयबाला विभिन्न पर्व सभ मे एकटा महत्वपूर्ण पर्व थीक – सामा चकेवा.
सामा चकेवा एकटा धार्मिक आ पौराणिक कथा थीक जकर वर्णन स्कन्द आ पद्म पुराण मे भेटैत अछि. ई कथा भगवान कृष्ण आ हुनकर परिवार सॅ सम्बंधित अछि जाहि मे भाई बहिन के पवित्र प्रेम आ समर्पण केॅ चित्रित कएल गेल अछि. समाज मे व्याप्त चुगलखोरी आ पितृ सत्तात्मक व्यवस्था के सेहो निर्मम व्याख्या भेटैत अछि. मिथिलाक लोक मानस पटल पर लोक कथाक रूप मे अंकित एहि कहानीक प्रमुख पात्र सामा थिकीह जे सर्वंसहा नारी छथि. हिनका मे लोक लाञ्छना के प्रतिकार करबाक सामर्थ्य नहि छन्हि. एकटा मूक नारीक रूपमे सामा पिता के क्रोध आ भाई के स्नेह वीच चित्रित कएल गेल छथि.

द्वारिकाधीश भगवान श्रीकृष्ण के पुत्रीक नाम श्यामा छल जे पश्चात सामा के नाम सॅ विख्यात भेलीह. हिनकर विवाह चारुदत्त नामक ॠषि सॅंग भेल. एहि दुनु व्यक्तिक दाम्पत्य जीवन सुखी आ स्नेह-पूर्ण छल. एक राजकुल मे पलल- बढ़ल कन्या विवाहोपरांत एकटा ॠषिकुल मे अत्यन्त प्रसन्ना रहैत छलीह कारण हुनका एतए ओ सभ किछु भेटैत छल जकरा सॅ ओ प्रेम करैत छलीह. प्रकृतिक सुन्दरता मे सामा के आत्मा बसैत छल ओ प्रकृति- प्रेमी छलीह. प्रकृति सौन्दर्य के साधना मे तल्लीन रहएबाली सामा जंगल मे जा गाछ- बृक्ष, लता- पुष्प, पक्षी आ अन्य वन्य- जन्तुक सॅंग रमण करैत रहैत छलीह.
सतत प्रसन्नचित्ता सामाक एहि उदात्त आ स्वच्छन्द स्वभाव सॅ श्रीकृष्ण के मंत्री चुरक सदैव ईर्ष्या करैत छल. चुगलखोरी करबा मे माहिर ई चुरक कथा मे चुगलाक नाम सॅ विख्यात अछि. चुगला श्रीकृष्ण के कान फूकए लागल जे सामा प्रति दिन वन मे कोनो पर- पुरुष सॅंग रमण करैत छथि आ ओ चरित्रहीन छथि. कथा मे श्रीकृष्ण के निष्पक्ष न्याय करबाक क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लगाओल गेल अछि. ओ एक चुगलाक चुगलखोरी मे पड़ि अपन पुत्री केॅ दण्डित क’ देलखिन.सर्वंसहा नारी सभ किछु चुपचाप सहन करैत रहलीह. पितृसत्ता के दाप- चाप आ क्रोधक आगू सामा अप्पन निष्कलंकता आ निश्छल प्रेम केॅ व्यक्त नहि क’ सकलीह. श्रीकृष्ण अपन पुत्री केॅ पक्षी रूप धारण करबाक शाप द’ देलखिन. सामा पक्षी बनि जंगल मे निवास करय लगलीह . इएह पक्षी हमरा सभक लोक कथा के चकवी थिकीह.

पत्नी के शापित भ’ पक्षी रूप धारण के घटना चारुदत्त केॅ व्यग्र क’ देलक. ओ पत्नी वियोग केॅ सहन नहि क’ सकलाह आ महादेव के घोर तपस्या क’ वरदान प्राप्त कएलन्हि जे हमहूं पक्षी बनि जाई आ सामाक सामीप्यता केॅ प्राप्त करी. चारुदत्त के द्वारा ई वर मांगबाक पाछू श्रीकृष्ण के प्रति अगाध श्रद्धा आ सम्मान एवं पत्नीक प्रति अटूट विश्वास आ प्रेम परिलक्षित होइत अछि. वर केॅ पाबि चारुदत्त पक्षी के रूप धारण क’ जंगल मे सामाक समीप पहुंचि गेलाह. सामा चकेवाक सॅंग बृन्दावन के जंगल मे बास करए लगलीह आ अप्पन व्यथा के कथा केॅ लोक गीतक माध्यम सॅ गाबए लगलीह. चारुदत्त के इएह पक्षी स्वरूप हमरा सभक लोक कथा के चकेवा छथि.
श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब जे पश्चात सतभईयाक नाम सॅ विख्यात भेलाह अप्पन बहिन सामा सॅ अगाध प्रेम करैत छलाह. ओ सामा के निष्कलंक आ स्वच्छ चरित्र पर लागाओल गेल एहि दाग सॅ मर्माहत भ’ प्रण कएलन्हि जे हम अपन बहिन केॅ एहि दुर्दशा सॅ बाहर निकालि केॅ रहब. एहि निश्चय के कार्यान्वयन हेतु ओ भगवान विष्णु के कठोर तपस्या करए लगलाह. शाम्ब के एहि तपस्या सॅ चुगला भयभीत होमए लागल आ सामा चकेवा केॅ आगि मे जरा मारि देबाक उद्देश्य सॅ बृन्दावन मे आगि लगबा देलकै. शाम्ब के तपोबल के प्रभाव सॅ जंगल मे लागल आगि निष्प्रभावी भ’ मिझा गेल आ सामा चकेवा केॅ कोनो हानि नोक्सानी नहि भेल. ई अगिलग्गीक घटना एहि लोकोत्सव मे फकड़ाक रूप मे गाओल जाइत अछि :
बृन्दावन मे आगि लागलै केओ ने मिझाबए हे
केओ ने मिझाबए हे
हमर भैया फलां भैया, दौड़ि दौड़ि मिझाबए हे

शाम्ब के कठिन तप सॅ प्रसन्न भ’ भगवान विष्णु सामा केॅ शाप मुक्त क’ देलखिन ओ पुनः चकेवाक सॅंग मानव शरीर केॅ प्राप्त कएलन्हि. शाम्ब के बहिनक प्रति प्रेम आ समर्पण पर प्रसन्न भ’ भगवान आशीर्वाद देलखिन जे प्रत्येक वर्ष कातिक मास मे मनुष्य शरीरधारी सामा चकेवाक सॅंग नैहर अएतीह आ पूर्णिमा के दिन पुनः पक्षी रूप मे सासुर बृन्दावन चलि जेतीह. लोक विश्वास अछि बहिनक विपत्ति के समय मे अदम्य साहस आ समर्पण के प्रदर्शन क’ मर्यादाक रक्षा करएबाला सतभईयाक घर सामा रूपी बहिन अपन चकेवा रूपी पतिक सॅंग सदा सॅ अबैत रहलीह अछि आ अबैत रहती. लोक गीत मे उध्दृत अछि : आएल कातिक मास, सामा लेल अवतार हे.

एहि दिन सॅ ल’ केॅ सामा के बिदाई दिन कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा धरि मिथिलांचल उत्सवमय बनल रहैत अछि. भाई के घर बहिनक आगमन पर उमड़ैत उल्लास आ स्वागत सत्कार के सजीव चित्रण लोक गीत आ लोक नृत्यक माध्यम सॅ होइत अछि.

दुभिया भोजन करु सामा हे चकेवा
लागि गेल पान केर दोकान
गे माइ सेहो पान खएलन्हि भैया से फलां भैया
रंगि गेल बत्तीसो मुख दाॅंत

भाई बहिनक प्रेमक प्रतीक एहि लोक पर्व मे स्त्रीगण द्वारा सामा, चकेवा, चुगला, बृन्दावन, सतभईया आदि के प्रतीक माटिक कलात्मक मूर्ति बनाओल जाइत अछि. ई उत्सव मिथिला के परम्परागत चित्रकला के विशिष्टता आ समृद्धता केॅ दर्शाबैत अछि. एहि मूर्ति सभ केॅ प्राकृतिक रंग सॅ रंगि डाला मे सजाओल जाइत अछि. अष्ट दिवसीय उत्सव के प्रत्येक राति महिला लोकनि समूह मे सस्वर लोक गीत गबैत छथि. एहि लोक गीत सभ मे मिथिला के आत्मा ध्वनित भ’ उठैत अछि. भाई बहिनक प्रेम, ननदि भाऊजक हास्य विनोद, सामाजिक, पारिवारिक, धार्मिक आ प्राकृतिक जीवन के महत्वपूर्ण पक्ष सभ केॅ अभिव्यक्त करएबाला ई लोक गीत सभ एहि उत्सव के धरोहर थीक. लोकोत्सव के अन्तिम दिन पूर्णिमा के राति मे मिथिला मे प्रचलित बेटी- बिदाई के सम्पूर्ण संसाधनक प्रतीक सॅंग सामाक बिदाई होइत अछि आ अगिला वर्ष पुनः अएबाक हेतु आमन्त्रित कएल जाइत अछि. चुगला केॅ आगि मे जरा नष्ट क’ शापित करैत भाई केॅ अनेकानेक आशीष प्रदान कएल जाइत अछि.

चाऊर चाऊर चाऊर भैया कोठी चाऊर
छाऊर छाऊर छाऊर चुगला कोठी छाऊर

एक अन्य मान्यता अनुसार ई लोक पर्वोत्सव मिथिलाक संस्कृति प्रकृति मैत्री होएबाक सूचक थीक. सामा चकेवा पर्वक मुख्य उत्सव शरद ऋतु के अन्तिम राति मे मनाओल जाइत अछि. एकर बाद शीत ऋतु आरम्भ होइत अछि. ई ओ समय थीक जखन हिमालय के किछु विशिष्ट प्रजापति के पक्षी सभ जाड़ काटबाक हेतु मिथिला के पवित्र भूमि पर अबैत अछि. एहि प्रदेशक आतिथ्य सत्कार जगद् विदित अछि. मनुष्यक कोन कथा जे चिड़ै- चुनमुनीक स्वगतार्थ एतए उत्सव के आयोजन होइत अछि. एहि प्रवासी पक्षी सभ केॅ सामा चकेवाक प्रतीक मानि स्वागतोत्सव के आयोजना करैत लोक गीत आ नृत्य प्रस्तुत कएल जाइत अछि.

साम चके साम चके अबियऽह हे, अबियऽह हे
जोतलहा खेत मे बैसियऽह हे, बैसियऽह हे
ढेपा फोड़ि फोड़ि खइह हे, खइह हे
सब रंग पटिया ओछबियऽह हे, ओछबियऽह हे
ताहि पटिया पर कए कए जना, कए कए जना
छोटे बड़े सभे जना