— कीर्ति नारायण झा
“सामा खेलय चलली, भौजी संग सहेली हऔ, हऔ भैया जीबअ हऔ, हऔ जुग जुग जीबअ हऔ ” भैयाक दीर्घायु हेतु बहिन द्वारा कामनाक पावनि सामा चकेबा मिथिलाक अत्यन्त रमणगर पावनि में सँ एक होइत अछि। भाई बहिनक स्नेहक सभ सँ बेसी भाव मिथिले में पाओल जाइत अछि। मिथिलाक बाहर भाई बहिनक स्नेहक प्रतीक केर पावनि मात्र रक्षाबंधन होइत अछि मुदा मिथिला में भरदुतिया आ सामा चकेबा के पावनि भाई बहिनक स्नेहक अत्यन्त मधुर पावनि होइत अछि। पौराणिक मान्यता केर अनुसार मथुरा केर राजा भगवान श्रीकृष्ण केर बेटी सामा आ बेटा सांभ केर अमर गाथा केर स्मृति केर रूप मे मनाओल जाइत अछि। एहि में एक पात्र चारुवक्र (चकेबा) जे सामा सँ अत्यंत प्रेम करैत छल एवं सावंत चूरक (चुगला) सेहो सामा सँ एकतरफा प्रेम करैत छल। एकर प्रेम गाथा एहि सामा चकेबा केर पावैन में समाहित अछि। पद्म पुराण केर अनुसार भगवान श्रीकृष्ण केर बेटी सामा चारुवक्र अर्थात चकेबा सँ नुका कऽ प्रेम करैत रहैथि संगहि पिता श्रीकृष्ण केर अनुमति सँ गंधर्व बिबाह सेहो क लेने रहैथि। एहि बिबाह सँ परिवारक अन्य सदस्य आ समाजक लोक अनभिज्ञ छल। सावंत चूरक अर्थात चुगला सामा आ चकेबा के खिलाफ षडयंत्र रचि क महाराज श्रीकृष्ण केर समक्ष शिकायत दर्ज करेलाक उपरांत समस्त राज्य में सामा के चरित्रहीनता केर अफवाह पसारि देलकै। स्थिति केर गम्भीरता के देखि भगवान श्री कृष्ण अपन दरवार मे सामा के उपस्थित क बिना किछु जनला बुझला सँ चरित्रहीनता आ वंश पर कलंक लगेबाक अभियोग मानैत कहि देलखिन्ह जे अहाँ आई सँ पक्षी बनि क वृंदावन के जंगल में भटकैत रहब। पिता के श्राप सँ सामा चिरैई बनि गेलीह ओम्हर चारुवक्र अर्थात चकेबा सामा केर खोज मे निकलि पङलाह। बेचारी सामा जे चिरैई के रूपमे चारुवक्र के कनहा पर बैसि सभटा घटना केर चर्चा क देलखिन्ह। तखन सामा के प्राप्त करवाक हेतु चकेबा छ साल धरि भगवान विष्णु केर तपस्या कयलन्हि जाहि संँ भगवान विष्णु प्रसन्न भऽ चारुवक्र के बरदान मंगवाक लेल कहलखिन्ह जाहिमे ओ सामा के प्राप्त करवाक वरदान मांगलैन। भगबान विष्णु कहलखिन्ह जे जाहि दिन अहाँ ई खिस्सा ककरो सुनेबै त अहूँ चिरैई बनि जायब आ सामा सँ अहाँ के तखने भेट होयत। सामा के भाई सांभ अपन बहिन सामा आ चारुवक्र सँ बहुत बेसी प्रेम करैत छलाह। ओ अपन बहिन के चिरैई योनि सँ मुक्ति हेतु भगवान शिव आ विष्णु केर तपस्या आरम्भ कयलनि। प्रसन्न भय भगवान कहलखिन्ह जे जखन सम्पूर्ण मिथिलांचल के स्त्रीगण आ कन्या कार्तिक मास के छठि दिन सँ सामा आ चकेबा के पूजन अर्चन करतीह आ कार्तिक पूर्णिमा के राति चूरक अर्थात चुगला के मुँह में आगि लगा क विसर्जन करतीह तखने सामा चकेबा मनुष्य योनि में वापस आबि सकैत छथि। ताहि दिन सँ ई पावनि मिथिलांचल में परम्परा के रूप में मनाओल जाइत अछि। सामा चकेबा के प्रचलित गीत में “वृंदावन में आगि लगलै कियो नै बुझावै हौ, हम्मर भैया बङका भैया, दौङि – दौङि क आबै हौ। हाथ मे सोना लोटा सँ वृंदावन बुझाबै हौ” एकर अतिरिक्त बहिन केर भाई के प्रति एहि भावुक पांती में भाई बहिनक निश्छल प्रेम केर प्रतीक अछि जे “अपना लेल लिखिहऽ भैया अन्न-धन लक्ष्मी हओ, हमरा लेल लिखिहऽ भैया सामा चकेबा हओ। “जय मिथिला जय मिथिलाक पावैन तिहार 🌺🌹🙏