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चलैत चलू – बढ़ैत चलू

दर्शन

– प्रवीण नारायण चौधरी

चलैत चलू – बढैत चलू

सभक जीवनकाल मे किछु अनुभव एतेक विशिष्ट आ अन्तर्मनक गहिराई मे भेल करैत छैक जेकर बल पर ओ एकटा ‘द्रष्टा’ बनि गेल करैत अछि। आब एहने कोनो शिथिल मस्तिष्क किंवा सुसुप्त व्यक्ति केँ जँ द्रष्टा बनबाक अवसर नहि भेटय त ओ बात अलादा भेल, लेकिन सामान्यतया हम-अहाँ अपन-अपन जीवन जिवैत निश्चित कतेको अति विशिष्ट अरूप के सुस्पष्ट रूप सहित सेहो देखि लेल करैत छी। आध्यात्म यथार्थतः यैह थिकैक। अदृश्य केँ दृश्य करब। अन्तर्दृष्टि सँ ओहि बात केँ देखि लेब जे सोझाँ स्थूल (शरीर) रूप मे नहि अछि। बड़का-बड़का सिद्ध योगी लोकनि एहि अन्तर्दृष्टि के उपयोग कय त्रिकालदर्शी तक बनि गेलाह। बिना कोनो बात पुछने-सुनने मात्र अनुहार टा देखि ओ सब हरेक बात व स्थिति के अनुमान लगा लेलाह, से एको इन्च दायाँ-बायाँ नहि, अपितु ठोकल-ठठायल सत्य केर दर्शन कय लेलनि। ई सब सिद्धि लगभग प्रत्येक प्राणी केँ प्राप्त रहैत छैक। हमर परम् आदरणीय गुरुदेव त व्याख्या करैत-करैत हरेक प्राणी तक केँ अन्तर्दृष्टि व अन्तर्ज्ञान सँ सम्पन्न हेबाक आख्यान सुनबैत रहैत छथि। कहैत छथिन जे बरद केँ दुइ सौ जन्म केर कथा ज्ञात रहैत छैक। हर जीव के पास एकटा विशिष्ट दृष्टि छैक। से सब बात सही छैक।

एक बेरक बात कहय चाहब। हमर जीवन मे ओहिना प्रत्यक्ष देखल बात। नहि केवल हम बल्कि हमरा संग-संग सैकड़ों कमरिया बाबाधाम के बाट मे ई चमत्कार लगातार चारि दिन तक देखलियैक। ‘जय सीताराम जय जय सीताराम’ महामंत्रक जाप करैत हम सब माघ पूर्णिमा दिन सुल्तानगंज सँ गंगाजल भरल पीठ्ठी कामर संग बाबाधाम के यात्रा करैत छी हरेक वर्ष। कमरिया लेल कुकुर सँ छुआयब अपवित्र होयब होइत छैक, तेँ ‘भैरव-भैरव’ कय हम सब अपन पवित्रताक रक्षार्थ गोहार लगायल करैत छी। एहि बेरुक यात्रा मे एना भेलय जे अचानक सऽ कुकुर सभक एकटा हुइल नहि जानि कतय सँ बाट पर आगाँ आबि गेलैक। स्थिति एहेन जे कमरिया सब डरा गेल। भैरव-भैरव पुकारि रहल अछि, ओ कुकुरक हुइल एहेन जे ढीठ जेकाँ बाट छेकने अछि। भारी समस्या के अनुभूति लोक करय लागल… कियो डरे ‘धात्-धात्’ तक नहि कय रहल अछि। ताबत मे एकटा कुकुर बड़ा तेजी सँ आयल आ ओहि हुइल पर टूटि पड़ल। कमरिया सब सावधान रहय, हड़कम्प मचिते कुकुर सब आगू-आगू भागय लागल… आ ओ करिया कुकुर असगरे सब केँ होंकिकय भगा रहल छल। आफियत भेटिते कमरिया आ कीर्तन आगू बढ़ल। लेकिन बहुत दूर धरि ई खेला-वेला चलैत रहल। मुदा मानय पड़त! ओ करिया अकरबा… असगरे सभक रक्षा करैत रास्ता क्लियर करैत लय जा रहल छल। कनिकाल मे सब कमरिया केँ लागि गेलैक जे ई साक्षात् भैरव केर वाहन भैरव केँ लयकय आयल अछि, असुररूपी-दुर्जनरूपी अन्य छद्मवेशी कुकुरक फौज केँ रास्ता सँ हंटा रहल अछि।

माघ मास बाटक किनार पर रहल दोकान-दौरी आदि बेसी नहि होइत छैक। दूर-दूर तक आश्रय स्थल या विश्राम स्थल तक नहि रहैत छैक। जे बाँसवला कामर लयकय चलैत छथि ओ सब जमीनहि पर काम राखि जमीनहि पर बैसि शीतलता ग्रहण करैत आराम करैत बढैत रहैत छथि, कीर्तन सहित कामर यात्रा मे रहल हमरा सब कतहु बैसियो नहि सकैत छलहुँ, बैसबाक लेल सेहो कोनो पवित्र ठौर चाहबे करी…. आ आब लगातार चारि दिन धरि यैह अकरबा करिया कुकुर हमरा सभक बाट केर दिग्दर्शक बनिकय संगे चलि रहल अछि। से गज्जब उत्साह मे चलि रहल अछि। एक बेर संग नहि छोड़ि रहल अछि। बाट संकीर्ण छैक त स्वयं साइड धेने बान्हक बगल दय खेतक आड़िये-आड़ि चलि रहल अछि। कमरिया सब निर्धक्क भ’ गेल छथि। स्वयं भैरव हमरा सब केँ रास्ता देखा रहल छथि, रुकबाक स्थान पर वैह घुरमुरिया काटय लागथि आ हम सब रुकि गेल करी। भोजनक समय सब सँ पहिने हुनके आगू भोजन परोसल जाय। बड़ा चफैरकय भोजन करथि। विश्राम सेहो ओ जनवासाक बाहर मे एना करथि मानू असगरे सब तूफान व आफद सँ लड़ि लेता… कमरिया सभक बालो बाँका नहि होबय देता। अरे, हमरा सभक भीतर जे आनन्द हिलकोर मारि रहल छल से कि कहू! शब्द नहि भेटि रहल अछि ओहि आह्लाद केँ उजागर करय लेल। बस, आश्वस्त रही। सभक मोन मे मात्र बाबा बैद्यनाथ आ हुनकर महिमा, स्वयं भैरव एहि यात्राक रक्षक होइत छथि से प्रत्यक्ष दर्शन…. नहि केवल सुनल-सुनायल बात बल्कि सीधा-सीधा दर्शन आ अनुभव भेटल। से लगातार चारि दिन धरि। हमरा सभक अन्तिम राति (चारिम राति) के पड़ाव छल दुम्मा सँ पहिने ‘मिथिला धर्मशाला’। ओतय रुकलहुँ। राति मे ओ भोजन कयलनि। भिनसरबा मे नहि जानि ओ कतय चलि गेलाह। खैर! आब त झारखण्ड गेट सोझाँ छल, ओतय सँ भोरे-भोर क्रौस करैत हमरा लोकनि आब सीधा धामहि पर पहुँचब। से पहुँचि गेलहुँ। लेकिन ओ मोन मे बैसल रहि गेलथि। पुनः दर्शन नहि भेल। हम एखन हुनका मोन पाड़ि एकदम सिहरन महसूस कय रहल छी। गोर लगैत छी हुनका बेर-बेर।

आब पुनः लौटैत छी हमर आजुक लेख दिश… जेना कि कहलहुँ जे अन्तर्दृष्टि आ अन्तर्ज्ञान के सम्बल सँ हम सब मनुष्य व जीव एक ‘द्रष्टा’ जरूर छी। आर, हमेशा परम् शक्तिमान भगवान केर महान प्रकृति सँ एकाकार करैत जीवन मे आगू बढ़ि रहल छी। जखन-तखन एक्के टा भाव रहैत अछि जे यात्रा सफलतापूर्वक बढैत रहय। कोनो कठिनाई – ऊबड़-खाभड़ आ जरकिन आबय त जीवनरूपी गाड़ीक पहिया ओहि सब केँ झेलैत आगू बढैत रहय। कतहु अनावश्यक चिन्ताक दलदल मे ई पहिया नहि फँसय। आर कि! कथा केहेन लागल आ अपन विशेष अनुभव पर २ लाइन लिखि देब त हमरो अपन लेख केर सफलता हेबाक अन्तर्भान भेटत। अस्तु!

हरिः हरः!!

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