स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
रामचरितमानस मोती
श्री सीतारामजीक विवाहोपरान्त अयोध्या वापसी पर स्वागत प्रसंग
पूर्व अध्याय मे जनकपुर सँ जानकीजी सहित चारू बहिन आ श्रीरामजी सहित चारू भाइ संग सम्पूर्ण बरियाती आ समधि केर विदाई करबाक विहंगम चर्चा पढ़लहुँ। आब आगू वर-बरियाती सहित सब कियो अयोध्या लौटला उपरान्त के दृश्यक अवलोकन करूः
बरियातीक अयोध्या लौटब आर अयोध्या मे आनन्द
१. जनकपुर सँ डंका बजाकय बरियाती चलि देलक। छोट-पैघ सब समुदाय खूब प्रसन्न अछि। रस्ता मे पड़यवला गाम-बस्ती केर स्त्री पुरुष श्री रामचन्द्रजी केँ देखिकय नेत्र केर फल पाबि सुखी होइत छथि। बीच-बीच मे सुन्दर सुन्दर स्थान पर डेरा रखैत बाट बीचक लोक केँ सुख दैत ओ बरियाती लोकनि पवित्र दिन मे अयोध्यापुरी लग पहुँचि गेल।
२. नगाड़ा पर चोट पड़य लागल, सुन्दर ढोल बाजय लागल। भेरी आ शंख केर बड़ा भारी आवाज भ’ रहल अछि, हाथी-घोड़ा गरजि रहल अछि। विशेष शब्द करयवाली झाँझ, सुहाओन डफली आ शहनाई के रस भरल राग सब बाजि रहल अछि। बरियाती अबैत सुनिकय नगरवासी प्रसन्न भ’ गेलथि। सभक शरीर पर पुलकावली छा गेलनि।
३. सब अपन-अपन सुन्दर घर, बाजार, गली, चौराहा आर नगर केर द्वार केँ सजौलनि। सब गली मे अरगजा (कपूर, केसर व चन्दन आदि मिश्रित सुगन्धित द्रव्य) सँ सिंचन कयल गेल, जहाँ-तहाँ सुन्दर चौक-द्वारा आदि बनायल गेल। तोरण ध्वजा-पताका आर मंडप सँ बाजार एना सजि गेल जेकर वर्णन करब सम्भव नहि अछि। फल सहित सुपारी, केरा, आम, मौलसिरी, कदम्ब आर तमाल केर वृक्ष लगायल गेल। ओ फल-फूल सँ लदमलद गाछ सब पृथ्वी केँ छूबि रहल अछि। ओतय मणिक थार बड़ा सुन्दर कारीगरी सँ बनायल गेल अछि। अनेक प्रकारक मंगल-कलश घर-घर सजाकय राखल गेल अछि।
४. श्री रघुनाथजीक पुरी अयोध्या केँ देखिकय ब्रह्माजी आदि सब देवता सिहरि रहल छथि। ताहि समय राजमहल अत्यन्त शोभित भ’ रहल छल। ओकर रचना देखि कामदेवहु केर मन मोहित भ’ जाइत छल। मंगल शकुन, मनोहरता, ऋद्धि-सिद्धि, सुख, सुहाओन सम्पत्ति और सब प्रकार के उत्साह (आनन्द) मानू सहजहि सुन्दर शरीर धय-धयकय दशरथजीक घर मे छा गेल हो।
५. श्री रामचन्द्रजी और सीताजी के दर्शन लेल भला कहू केकरा लालसा नहि होयत! सुहागिन स्त्रीगण लोकनिक झुंडक झुंड सब चलि देलीह, जे अपन छबि सँ कामदेवक स्त्री रति केर सेहो निरादर कय रहल छलीह। सब सुन्दर मंगलद्रव्य एवं आरती सजेने गाबि रहल छलीह, मानू सरस्वतीजी बहुतो रास वेष धारण कएने गाबि रहल होइथ।
६. राजमहल मे आनन्दक कारण एकदम शोर मचि रहल छल। ताहि समय केर सुखक वर्णन नहि कयल जा सकैत अछि। कौसल्याजी आदि श्री रामचन्द्रजीक सब माता लोकनि प्रेमक विशेष वश मे भेला सँ शरीरक सुधि-बुधि बिसरि गेल छलीह। गणेशजी और त्रिपुरारि शिवजीक पूजन कयकेँ ओ सब ब्राह्मण सब केँ बहुतो रास दान देलीह। ओ एतेक बेसी प्रसन्न भेलीह मानू अत्यन्त दरिद्र केँ चारू पदार्थ भेटि गेल होइक। सुख और महान आनन्द सँ विवश हेबाक कारण सब माता लोकनिक शरीर शिथिल भ’ गेलनि अछि, हुनका सभक पैर तक नहि चलि पाबि रहल अछि। श्री रामचन्द्रजीक दर्शनक लेल ओ सब अत्यन्त अनुराग मे भरल परिछन के सब सामान ओरियाबय लगलीह।
७. अनेकों तरहक बाजा सब बाजि रहल छल। सुमित्राजी आनंदपूर्वक मंगल साज सजौलीह। हरैद, दुइभ, दही, पत्ता, फूल, पान और सुपारी आदि मंगल केर मूल वस्तु सब तथा अक्षत, अँखुआ, गोरोचन, लावा आर तुलसीक सुन्दर मंजरी सुशोभित छल। नाना रंग सँ चित्रित कयल सुहाओन सुवर्ण केर कलश एना बुझाइत छल मानू कामदेव केर चिड़ियां खोंता बनौने हो। शकुन केर सुगन्धित वस्तु बखानल नहि जा सकैछ। सब रानी सम्पूर्ण मंगल साज सजा रहली अछि। बहुतो तरहक आरती बनाकय ओ सब आनन्दित होइत सुन्दर मंगलगान कय रहल छलथि। सोनाक थाली केँ मांगलिक चीज सब सँ भरिकय अपन कमल समान कोमल हाथ मे लेने माता लोकनि आनन्दित होइत परिछन लेल चलि देलीह। हुनका सभक शरीर पर पुलकावली आबि गेल छन्हि।
८. रौदक धुआँ सँ आकाश एहेन कारी पड़ि गेल अछि मानू जेना साओन के मेघ घुमड़ि-घुमड़िकय पूरे आकाश केँ झाँपि देने हो। देवता कल्पवृक्षक फूल केर माला बरसा रहल छथि। से एना लगैत अछि मानू बगुलाक पंक्ति मोन केँ अपना दिश खींचि रहल हो। सुन्दर मणि सँ बनल बंदनवार एहेन देखाइत अछि मानू इन्द्रदनुष सजल हो। अटारी सब पर सुन्दर आ चपल स्त्रीगण लोकनि प्रकट होइत छथि आ फेर अप्रकट भ’ जाइत छथि, ओ सब बाहर-भीतर अबैत-जाइत रहैत छथि से एना बुझि पड़ैत अछि जेना बिजुरी चमकि रहल हो। ढोल-नगाड़ाक ध्वनि बुझू जे मेघगर्जनाक भान करा रहल छल। याचकगण पपीहा, बेंग आ मोर सब छथि। देवता पवित्र सुगन्धरूपी जलक बरखा कय रहल छथि जाहि मे खेतीक समान नगरक सब स्त्री-पुरुष सुखी भ’ रहल अछि।
९. नगर मे प्रवेश करबाक समय जानि गुरु वशिष्ठजी आज्ञा देलथि। तखन रघुकुलमणि महाराज दशरथजी शिवजी, पार्वतीजी और गणेशजी केँ स्मरण कयकेँ समाज सहित आनन्दित होइत नगर मे प्रवेश कयलनि। शुभ शकुन भ’ रहल अछि, देवता सब दुन्दुभी बजा-बजाकय फूल बरसा रहल छथि। हुनका लोकनिक स्त्री सब सेहो सुन्दर मंगलगीत गाबि-गाबिकय नाचि रहली अछि। मागध, सूत, भाट आर चतुर नट तीनू लोककेँ उजागर करनिहार सबकेँ प्रकाश दयवला परमप्रकाश स्वरूप श्री रामचन्द्रजीक यश गाबि रहल छथि। जय ध्वनि आ वेद केर निर्मल श्रेष्ठ वाणी सुन्दर मंगल सँ सनल दसों दिशा मे सुनाय पड़ि रहल अछि। बहुतो रास बाजा सब बाजय लागल अछि। आकाश मे देवता और नगर मे लोक सब प्रेम मे मग्न भेल छथि। बरियाती एना बनल-ठनल छथि जेकर वर्णन नहि भ’ सकैत अछि। परम आनन्दित छथि सब, सुख हुनका लोकनि के मोन मे समाइत नहि छन्हि। तखन अयोध्यावसी लोक सब राजाक जोहार (वन्दना) कयलनि। श्री रामचन्द्रजी केँ देखिते ओ सब सुखी भ’ गेलाह। सब मणि आर वस्त्र निछावर कय रहल छथि। सभक नेत्र मे प्रेम व प्रसन्नताक अश्रु छलकल अछि आर शरीर पुलकित अछि। नगरक स्त्रीगण आनन्दित भ’ आरती कय रहली अछि आर सुन्दर चारू कुमार केँ देखि ओ सब खूब खुशी भ’ रहली अछि। पालकी केर सुन्दर परदा हंटा-हंटाकय ओ सब दुलहिन सब केँ देखिकय खूब प्रसन्न होइत छथि। एहि तरहें सब केँ सुख दैत ओ सब गोटे राजद्वार पर अयलाह।
१०. माता सब आनन्दित भ’ कय बधू लोकनि केँ कुमार सभक संग परिछन कय रहली अछि। ओ सब बेर-बेर आरती कय रहल छथि। ओहि प्रेम और महान आनन्द केँ के कहि सकैत अछि!
११. अनेको प्रकारक आभूषण, रत्न और वस्त्र तथा अगणित प्रकारक आन वस्तु सब निछावर कय रहली अछि। पुतोहु सहित चारू बेटा सब केँ देखिकय माता लोकनि परमानन्द मे मगन भ’ गेली अछि। सीताजी व रामजीक छबि केँ बेर-बेर निहारिकय ओ सब अपन जीवन एहि जगत मे सफल मानि खूब आनन्दित भ’ रहली अछि।
१२. सखी लोकनि सेहो सीताजीक मुंह बेर-बेर देखिकय अपन पुण्यक सराहना करैत गायन कय रहल छथि। देवता सब क्षण-क्षण मे फूल बरसाबैत, नाचैत, गबैत आ अपन-अपन सेवा समर्पण करैत छथि। चारू मनोहर जोड़ी केँ देखिकय सरस्वती सबटा उपमा ताकि लेलीह मुदा कोनो उपमा दैत नहि बनि रहल छन्हि, कियैक त हुनका बाकी सबटा एहि चारू जोड़ीक आगाँ तुच्छ बुझा पड़ैत छन्हि। तखन हारिकय ओहो श्रीरामजीक रूप मे अनुरक्त भ’ हुनका एकटक देखिते रहि गेलीह।
१३. वेद के विधि आर कुल के रीति कयकेँ अर्घ्य आ डेग-डेग पर स्वागतक कालीन (पाँवड़) बिछबैत पुतोहु संग पुत्र सब केँ परिछिकय माता लोकनि महल मे प्रवेश करौलीह। स्वाभाविक सुन्दर चारि गोट सिंहासन छलैक जे मानू कामदेव अपनहि हाथ सँ बनौने होइथ। ताहिपर माता लोकनि राजकुमारी और राजकुमार सबकेँ बैसौलनि आ खूब आदर सँ हुनका सभक पवित्र चरण केँ धोलनि। पुनः वेद के विधि अनुसार मंगल के निधान दूल्हा-दुलहिन सब केँ धूप, दीप और नैवेद्य आदिक द्वारा पूजा कयलनि। माता बेर-बेर आरती कय रहल छथि आर वर-वधु लोकनि केँ पंखा सेहो फेरि रहली अछि। अनेकों वस्तु सब निछावर भ’ रहल अछि, सब माता लोकनि आनन्द सँ भरल एना सुशोभित भ’ रहल छथि मानू कोनो योगी परमतत्त्व पाबि गेल हुए। सब दिनक बीमार मानू अमृत पाबि गेल हुए। आजन्म दरिद्र मानू पारस पाबि गेल हुए। आन्हर केँ सुन्दर नेत्र केर लाभ भेल होइक। गोंग के मुंह मे मानू सरस्वती आबि गेलखिन आ शूरवीर मानू युद्ध मे विजय पाबि गेल हो। एहि सुखो सँ सौ करोड़ गुना बढ़िकय आनन्द माता सब पाबि रहल छथि, कियैक त रघुकुल के चन्द्रमा श्री रामजी विवाह कय केँ भाइ सभक संग घर आयल छथि।
१४. माता सब लोकरीति करैत छथि आर दूल्हा-दुलहिन सब लजाइत छथि, ई महान आनन्द आ विनोद केँ देखिकय श्री रामचन्द्रजी मने-मन मुस्कुरा रहल छथि। मोनक सब वासना पूरा भेल जानि देवता आ पितर लोकनिक खूब लगन सँ पूजन कयलनि तथा सभक वन्दना कयकेँ माता लोकनि यैह वरदान माँगलीह जे भाइ सहित श्री रामजीक कल्याण होइन्ह।
१५. देवता सब अन्तरिक्ष सँ आशीर्वाद दय रहल छथि आर माता सब आनन्दित भ’ आँचर भरिकय आशीर्वाद लय रहली अछि। तदनन्तर राजा बरियाती सब केँ बजबौलनि आ हुनका लोकनि केँ सवारी, वस्त्र, मणि (रत्न) आ आभूषणादि देलनि। आज्ञा पाबिकय, श्री रामजी केँ हृदय मे राखिकय ओ सब आनन्दित भ’ अपन-अपन घर जाय गेलाह। नगर के समस्त स्त्री-पुरुष केँ राजा कपड़ा और गहना पहिरौलनि। घर-घर बधावा बाजय लागल। याचक सब जे-जे माँगैत छथि, विशेष प्रसन्न भ’ राजा हुनका सब केँ सैह-सैह दैत छथि। सम्पूर्ण सेवक और बाजावला केँ राजा नाना प्रकारक दान आर सम्मान सँ सन्तुष्ट कयलनि। सब जोहार (वन्दन) कयकेँ आशीष दैत छथि आर गुण समूहक कथा गबैत छथि। तखन गुरु और ब्राह्मण सहित राजा दशरथजी महल मे गमन कयलनि। वशिष्ठजी जे किछु आज्ञा देलनि से लोक आ वेद के विधिक अनुसार राजा आदरपूर्वक पूरा कयलनि। ब्राह्मण लोकनिक भीड़ देखिकय अपन अहोभाग्य बुझि सब रानी आदर सँ उठलीह। चरण धोकय हुनका सबकेँ स्नान करौलीह आ राजा सभक रीतिपूर्वक पूजन कय हुनका लोकनि केँ भोजन करौलनि। आदर, दान व प्रेम सँ पुष्ट भेल ओहो लोकनि सन्तुष्ट मोन सँ आशीर्वाद दैत विदाह भेलाह।
१६. राजा गाधिपुत्र विश्वामित्रजी केँ अनेक प्रकार सँ पूजा करैत कहलनि – हे नाथ! हमरा समान धन्य दोसर कियो नहि अछि जे अपनेक कृपाक पात्र बनलहुँ। हुनकर बहुतो तरहें प्रशंसा कयलनि आ रानी सहित हुनक चरणधूलि केँ ग्रहण कयलनि। हुनका महल के भीतर ठहरेबाक उत्तम स्थान देलनि जाहि मे राजा आ आ समस्त रनिवास हुनकर इच्छानुसार आराम व सब सेवा पर अपन दृष्टि राखि सकथि।
१७. राजा गुरु वशिष्ठजीक चरणकमलक पूजा और विनती कयलनि। हुनकर हृदय मे अत्यधिक प्रीति छलन्हि। घर मे प्रवेश कयल नवबधू सहित सब राजकुमार और सब रानी समेत राजा बेर-बेर गुरुजीक चरणक वन्दना करैत छथि आर मुनीश्वर आशीर्वाद दैत छथिन। राजा अत्यन्त प्रेमपूर्ण हृदय सँ पुत्र सब केँ आ सबटा सम्पत्ति केँ सामने राखिकय ओ सब किछु स्वीकार करबाक लेल विनती कयलनि, मुदा मुनिराज पुरोहित होयबाक नाते मात्र अपना लेल नेग (दछिना) माँगि लेलनि आ खूब रास आशीर्वाद देलनि। फेर सीताजी सहित श्री रामचन्द्रजी केँ हृदय मे राखिकय गुरु वशिष्ठजी हर्षित होइत अपन स्थान लेल प्रस्थान कयलनि।
१८. राजा तखन सब ब्राह्मणक स्त्री लोकनि केँ बजबौलनि आर हुनका सब केँ सुन्दर वस्त्र तथा आभूषण पहिरेलनि। फेर सुआसिनी (नगरक सौभाग्यवती बहिन, बेटी, भानजी आदि केँ) बजौलनि आर हुनका सभक निज-निज रुचि मुताबि पहिरावनी प्रदान कयलनि। नेगी लोकनि अपना-अपना लेल नेग चुनि लेथि आर राजा सभक शिरोमणि दशरथजी हुनका सभक इच्छा अनुसार ओ सब नेग प्रदान कयलनि। जाहि पाहुन सब केँ प्रिय व पूजनीय बुझलथि, हुनका सब केँ राजा खूब बढियाँ सँ सम्मान कयलनि।
१९. देवगण श्री रघुनाथजीक विवाह देखिकय आ उत्सवक प्रशंसा कयकेँ फूल बरसबिते नगाड़ा बजाकय परम सुख प्राप्त कय अपन-अपन लोक लेल चलि देलाह। ओ सब एक-दोसर सँ श्री रामजीक यश कहैत जाइत छथि आ सभक हृदय मे प्रेम अथाह भरैत रहैत छन्हि।
२०. सब प्रकार सँ सभक प्रेमपूर्वक आ खूब ढंग सँ आदर-सत्कार कयला उपरान्त राजा दशरथजीक हृदय मे पूर्ण आनन्द भरि गेलनि। जतय रनिवास छल, ओ ओतय गेलाह आ पुतोहु समेत कुमार लोकनि केँ देखलाह। राजा आनन्द सहित पुत्र लोकनि केँ कोरा मे बैसौलनि। ताहि समय राजा केँ जतेक सुख भेलनि से के कहि सकैत अछि! फेर पुत्रवधू सब केँ प्रेमक संग लग मे बैसाकय बेर-बेर हृदय मे हर्षित भ’ हुनका सब केँ पिता जेकाँ खूब दुलार देलनि। ई सब समारोह देखि रनिवास प्रसन्न भ’ गेल। सभक हृदय मे आनन्द निवास करय लागल। तखन राजा विवाह केना-केना भेल से सब कथा सब सुनाबय लगलाह जे सुनि-सुनिकय सब कियो खूब हर्षित होइत रहलथि।
२१. राजा जनकक गुण, शील, महत्व, प्रीति के रीति आर सुहाओन सम्पत्तिक वर्णन राजा भाट जेकाँ बहुतो रोचक ढंग सँ कयलनि। जनकजीक कृतित्व सब सुनिकय रानी लोकनि बड प्रसन्न भेलीह। तदोपरान्त पुत्र सहित स्वयं स्नान कयकेँ राजा ब्राह्मण, गुरु और कुटुम्ब लोकनि केँ बजाकय अनेकों प्रकारक व्यंजन सहितक भोजन कयलनि। ई सब करैत-करैत पाँच घड़ी बीति गेल। सुन्दर स्त्रीगण सब मंगलगान कय रहल छथि। ओ राति सुख केर मूल आ मनोहारिणी भ’ गेल अछि। सब कियो आचमन कय केँ पान खेलनि आ फूल केर माला, सुगन्धित द्रव्य आदि सँ विभूषित भ’ सब कियो शोभायमान भ’ गेलाह। श्री रामचन्द्रजी केँ देखिकय और आज्ञा पाबिकय सब सिर नमबैत अपन-अपन घर लेल चलि देलनि। ओहिठामक प्रेम, आनन्द, विनोद, महत्व, समय, समाज और मनोहरता केँ सैकड़ों सरस्वती, शेष, वेद, ब्रह्मा, महादेवजी और गणेशजी तक कियो नहि कहि सकैत छथि। फेर भला हम कोन तरहें बखान करू? कतहु केंचुआ धरती केँ माथ पर उठा सकैत अछि की?
२२. राजा सभक सब तरहें सम्मान कयकेँ कोमल वचन सँ रानी लोकनि केँ बजौलनि आ कहलनि – बधू लोकनि एखन बच्चे सब छथि, दोसर घर सँ अयलीह अछि। हिनका सब केँ एना राखब जेना आँखि केँ पलक रखैत अछि। (विदित हो जे पलके सदिखन झपकि-झपकि कय आँखिक रक्षा करैत अछि आर ओकरा सुख पहुँचाबैत अछि, तेहने सुख पुतोहु सभक लेल राजा दशरथ रानी सब सँ चाहलनि अछि।) बौआ सब सेहो थाकल निनायल छथि, हिनका सब लय जाउ आ शयन कराउ। एना कहिकय राजा श्री रामचन्द्रजीक चरण मे मोन लगा स्वयं विश्राम भवन चलि गेलाह।
२३. राजाक स्वभाविक सुन्दर वचन सुनि रानी लोकनि मणि सँ जड़ित सुवर्ण पलंग बिछवौलनि। गद्दा उपर गाय केर फेन समान सुन्दर आ सुकोमल सुन्दर-सुन्दर श्वेत रंगक चादरि बिछबौलनि। सुन्दर तकियाक वर्णन नहि कयल जा सकैत अछि। मणिक मन्दिर मे फूलक माला आ सुगन्धित द्रव्य सँ वातावरण सजल अछि। सुन्दर रत्न सब मे दीप आ सुन्दर शमियाना सभक शोभा कहैत नहि बनैत अछि। जे ओ सब देखने हेता वैह टा जानि सकैत छथि। एहि तरहें सुन्दर शय्या सजाकय माता लोकनि श्री रामचन्द्रजी केँ आराम करबाक लेल कहलीह। श्री रामजी बेर-बेर भाइ लोकनि केँ आज्ञा देलाह, तखन ओहो लोकनि अपन-अपन शय्या पर सुति रहलाह।
२४. श्री रामजीक साँवला सुन्दर कोमल अँग केँ देखिकय सब माता लोकनि प्रेम सहित वचन कहि रहल छथिन – हे तात! बाट मे जाइत काल अहाँ ओहेन भयावनी ताड़का राक्षसी केँ कोना कय मारलहुँ? बड़ा भयानक राक्षस, जे विकट योद्धा छल आर जे युद्ध मे केकरो किछु नहि बुझैत छल, ताहि दुष्ट मारीच आ सुबाहु केँ सहायक सभक संग अहाँ केना मारि देलहुँ? हे तात! हम बलैया लैत छी, मुनि के कृपा सँ मात्र ईश्वर अहाँक सब बला केँ टारि देलनि। दुनू भाइ यज्ञक रखवारी कय केँ गुरुजीक प्रसाद सँ सब विद्या पेलहुँ। अहाँक चरणक धूल लगिते मुनि पत्नी अहल्या तरि गेलीह। विश्व भरि मे ई कीर्ति पूर्ण रीति सँ व्याप्त भ’ गेलीह। कच्छप केर पीठ, वज्र और पर्वत सँ सेहो कठोर शिवजीक धनुष केँ राजाक समाज मे अहाँ तोड़ि देलहुँ। विश्वविजय केर यश आर जानकी केँ प्राप्त कय सब भाइ लोकनि केँ सेहो विवाह करबाकय घर अयलहुँ। अहाँक सब कर्म अमानुषी अछि, मनुष्यक शक्ति सँ बाहर अछि, जे केवल विश्वामित्रजीक कृपा पूरा कयलक अछि। हे तात! अहाँक चन्द्रमुख देखिकय आइ हमरा सभक एहि जग मे जन्म लेब सफल भेल। अहाँक बिना देखने जे दिन सब बितल से ब्रह्माजी गिनती मे नहि लाबथि (माने जे ओ आयु मे शामिल नहि करथि)।
२५. विनय भरल उत्तम वचन कहिकय श्री रामचन्द्रजी सब माता लोकनि केँ सन्तुष्ट कयलथि। फेर शिवजी, गुरु और ब्राह्मणक चरण केँ स्मरण कय नेत्र केँ नींद केर वश कयलनि आ सुइत रहलाह। नींदहु मे हुनकर अत्यन्त सलोना मुखारविन्द एना सोहा रहल छल मानू संध्याकालक लाल कमल सोहा रहल हो।
२६. स्त्रीगण सब घरे-घर जागरण कय रहल छलीह आ आपस मे एक-दोसर केँ मंगलमय गाइर दय रहल छलीह। रानी सब कहैत छथिन – हे सजनी! देखू, आजुक रात्रिक कतेक शोभा अछि जाहि सँ अयोध्यापुरी विशेष शोभित भ’ रहल अछि। ई सब कहैत सासु लोकनि सुन्दर बधु सब केँ संग लेने सुइत रहलीह, जेना साँप अपन माथक मणि केँ हृदय मे नुका लैत अछि किछु तहिना सासु लोकनि बधू सब केँ अपन अंक मे समेटकय सुइत रहलीह।
२७. प्रातःकाल पवित्र ब्रह्म मुहूर्त मे प्रभु जगलाह। मुर्गा सब सुन्दर बोल बाजय लागल। भाट और मागध सब गुणक गान करय लगलाह आ नगर भरिक लोक द्वार पर जोहार करय लेल आबि गेलथि। ब्राह्मण, देवता, गुरु, पिता और माता केर वन्दना कयकेँ आशीर्वाद पाबि सब भाइ खूब प्रसन्न भेलथि। माता सब आदरक संग हुनका सभक मुंह देखलनि। फेर ओ सब राजाक संग दरवाजाक बाहर पधारलथि। स्वभावहि सँ पवित्र चारू भाइ शौचादि सँ निवृत्त भ; कय पवित्र सरयू नदी मे स्नान कयलनि और प्रातःक्रिया (संध्या वंदनादि) कयकेँ ओ पिताक पास अयलाह। राजा हुनका सब केँ देखिते हृदय सँ लगा लेलनि। तदनन्तर ओ सब आज्ञा पाबि हर्षित मुद्रा मे आसन ग्रहण कयलनि।
२८. श्री रामचन्द्रजीक दर्शन नेत्र केर लाभक सीमा होयबाक अनुमान कय समस्त सभा शीतल भ’ गेल, सभक समस्त त्रिताप सदा-सदा लेल मेटा गेलैक। पुनः मुनि वशिष्ठजी और विश्वामित्रजी अयलाह। राजा हुनका सब केँ सुन्दर आसन पर बैसौलनि आ पुत्र समेत हुनकर पूजा कयकेँ चरण स्पर्श कयलनि। दुनू गुरु श्री रामजी केँ देखिकय प्रेम मे मुग्ध भ’ गेलथि। वशिष्ठजी धर्मक इतिहास कहि रहल छथि आ राजा रनिवास सहित से सब प्रेममग्न भ’ सुनि रहल छथि, जे मुनि सभक मन केँ सेहो अगम्य अछि, से विश्वामित्रजीक सुन्दर करनी-कथा-गाथा सब वशिष्ठजी बड़ा आनन्दित भ’ कय बहुतो प्रकार सँ वर्णन कयलनि। वामदेवजी कहलखिन – ई सब बात सत्य अछि। विश्वामित्रजीक सुन्दर कीर्ति तीनू लोक मे पसरल अछि। ई सब सुनिकय सब गोटे केँ आनन्द भेलनि। श्री राम-लक्ष्मण केर हृदय मे अधिक उत्साह आनन्द भेलनि।
२९. नित्य नव मंगल, आनन्द आर उत्सव होइत अछि। एहि तरहें आनन्द मे दिन बितल जाइत अछि। अयोध्या आनन्द सँ भरिकय उमड़ि रहल अछि, आनन्द केर अधिकता दिनानुदिन बढिते जा रहल अछि। नीक दिन (शुभ मुहूर्त) शोधिकय सुन्दर कंकण खोलल गेल। मंगल, आनन्द आर विनोद कम नहि भेल, बढिते रहल। एहि तरहें नित्न नव सुख केँ देखिकय देवता सब सेहो सिहरि उठथि आर अयोध्या मे जन्म पेबाक लेल ब्रह्माजी सँ याचना करैत रहथि।
३०. विश्वामित्रजी अयोध्या सँ अपन आश्रम जेबाक लेल नित्य तैयार होइत छथि, जाय चाहैत छथि, लेकिन रामचन्द्रजी केर स्नेह और विनयवश फेर ओत्तहि रहि जाइत छथि। दिनोंदिन राजाक सौ गुना भाव (प्रेम) देखिकय महामुनिराज विश्वामित्रजी हुनकर सराहना करैत छथि। अन्त मे जखन विश्वामित्रजी विदाह हेबाक बात कहलखिन त प्रेममग्न भ’ गेलाह आर पुत्र सभक संग आगू आबि ठाढ़ भ’ गेलाह। आर कहलखिन – हे नाथ! ई सब सम्पदा अहींक थिक। हम त स्त्री-पुत्र सहित सिर्फ अहाँक सेवक थिकहुँ। हे मुनि! बच्चा सब पर सदिखन स्नेह बनेने रहब आर हमरा सेहो दर्शन दैत रहब। एना कहिकय पुत्र ओ रानी सहित राजा दशरथजी विश्वामित्रजीक चरण पर खसि पड़लाह, प्रेमविह्वल भ’ जेबाक कारण हुनका मुंह सँ कोनो शब्द नहि निकलि सकलनि। ब्राह्मण विश्वमित्रजी बहुतो प्रकार सँ आशीर्वाद देलनि आ ओ चलि पड़लाह। प्रीति केर रीति कहल नहि जाइत अछि। सब भाइ केँ संग लेने श्री रामजी प्रेम सहित हुनका अरियाति हुनका सँ आज्ञा पाबि वापस भेलाह।
हरिः हरः!!