महाभारत – एक महाकाव्यरूपी महान ग्रन्थ केर लेखनक इतिहास

स्वाध्याय

महाभारत लेखन

– साभारः कल्याण (मैथिली अनुवादः प्रवीण नारायण चौधरी)

महाभारत आर्ष साहित्यक सब सँ पैघ ग्रन्थ थिक, विषय एवं कलेवर दुनू दृष्टि सँ एकर महत्व सर्वमान्य छैक। भारतवर्ष केर संस्कृति, सभ्यता अथवा आदर्श केर प्राचीन चित्र देखबाक हो त ओ महाभारत मे देखल जा सकैत अछि। ई एक अगाध महासागर समान अछि। एकर भीतर धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष – ई चारू पुरुषार्थ सँ सम्बन्ध राखयवला असंख्य उपदेशरत्न भरल पड़ल अछि। संसारक सर्वमान्य पुस्तक श्रीमद्भागवतगीता सेहो एहि रत्नाकर केर जाज्वल्यमान रत्न थिक। यदि महाभारत केँ हम सब सम्पूर्ण वेद, उपनिषद्, दर्शन, पुराण, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र आर मोक्षशास्त्र केर एकमात्र प्रतिनिधि ग्रन्थ कही त अत्युक्ति नहि होयत। एहि लेल एकरा सम्बन्ध मे कहल गेल अछि जे –

यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्।

अर्थात् जे एहि ग्रन्थ मे अछि वैह नाना रूप मे सर्वत्र अछि। जे एहि मे नहि अछि से कतहु नहि अछि।

एहि महान ग्रन्थ केर रचना भगवान् कृष्णद्वैपायन वेदव्यास कयलनि। ओ तपस्या आ ब्रह्मचर्य केर शक्ति सँ वेदक विभाजन कय एहि ग्रन्थक निर्माण कयलनि आर सोचलनि जे ई शिष्य सब केँ कोना पढाउ। भगवान् व्यास केर ई विचार जानि स्वयं ब्रह्माजी हुनका लग अयलाह आ कहलाह – ‘महर्षे! अहाँ अपन वाणी सँ सत्य और वेदार्थक कथन कयलहुँ अछि, अतः अहाँक काव्य सँ श्रेष्ठ काव्य केर निर्माण एहि जगत मे कियो नहि कय सकत। अहाँ अपन ग्रन्थ लिखबाक लेल गणेशजीक स्मरण कयल जाउ।’ ई कहिकय ब्रह्माजी अपन लोक चलि गेलाह आर व्यासजी गणेशजीक स्मरण कयलनि। स्मरण करिते देरी भक्तवाञ्छाकल्पतरु गणेशजी प्रकट भेलाह। व्यासजी हुनकर पूजन कयकेँ प्रार्थना कयलनि, “भगवान्, हम मनहि-मन महाभारतक रचना कयलहुँ अछि। हम बजैत छी आ अपने ओ लिखैत चलू।”

गणेशजी जवाब देलखिन, “यदि हमर लेखनी एकहु क्षण लेल नहि रुकय तखन हम लिखबाक कार्य कय सकैत छी।”

व्यासजी कहलखिन, “ठीक छैक। मुदा अहाँ बिना सोचने नहि लिखब।”

गणेशजी तथास्तु कहिकय लिखब स्वीकाय कय लेलनि। भगवान् व्यास कौतुहलवश किछु एहेन श्लोक बना दैत छलाह जे सर्वज्ञ गणेशजी केँ सेहो एक क्षण लेल ओकर अर्थ विचार करय पड़ैत छल, ओतबा समय मे महर्षि व्यास दोसर बहुतो श्लोक सभक रचना कय लैत छलाह।

सर्वज्ञोऽपि गणेशो यत् क्षणमास्ते विचारयन्।
तावच्चकार व्यासोऽपि श्लोकान्यान् बहूनपि॥
– महाभारत, आदिपर्व १/८३

एहि तरहें एहि ग्रन्थक लेखन भेल। एहि ग्रन्थ मे कुरुवंशक विस्तार, गान्धारीक धर्मशीलता, विदुरक प्रज्ञा, कुन्तीक धैर्य, दुर्योधनादिक दुष्टता आर पाण्डव लोकनिक सत्यताक वर्णन कयल गेल अछि। एहिक माध्यम सँ व्यासजी मनुष्य केँ धर्मपूर्ण आचरण करैत भगवदाश्रित जीवन जिबय के सन्देश देलनि अछि। एकर प्रत्येक कथा सँ भगवान् श्रीकृष्ण केर अनिर्वचनीय महिमा प्रकट होइत अछि।

हरिः हरः!!