— अखिलेश कुमार मिश्र।
दीपोत्सव के अर्थ होइत अछि जे ओ उत्सव जे दीप जरा क’ मनाओल जाय। ओना त’ मिथिला तेहेन क्षेत्र अछि जतय सालों भरि दीपोत्सव मनाओल जाइत अछि। कुनो शुभ काज बिना दीप के सम्भव नै अछि। विवाह-द्विरागमन, उपनयन, कुनो पूजा-पाठ, नित्य संध्या घरे घरे साँझ देखेनाइ, सत्यनारायण कथा/पूजा, दुर्गा पूजा में दुर्गास्थान में दीप आदि। मुदा कातिक मास गवहा संक्रांति सँ अगिला संक्रान्ति तक नित्य तुलसी चौरा पर दीप सजा त्रिपेक्षण अद्भुत शोभा दैत अछि। छैठि में तs साँझ भोर पोखरि कातक दृश्य के तुलना तs भइये नै सकैत अछि। कतिकी पूर्णिमा के साँझ सामा चकेवा के दीप सँ सजल चंगेरा के की वर्णन करू, विलक्षण रहैत अछि।
मुदा आब सभ सँ विलक्षण पावनि जे दीपहि लेल जानल जाइत अछि, दीप सँ सजल राति दीपोत्सव अर्थात दियाबाती, के बारे में किछु कही। दियाबाती सभ पावनि सँ अलग अद्भुत पावनि अछि जे सम्पूर्ण भारत कि संसार में हिन्दू, सिख, जैन आ बौद्ध द्वारा मनाओल जाइत अछि। मुदा जतय स्वयं माँ लक्ष्मी बेटी (सिया) बनि जन्म लेने छैथि, मिथिला भूमिक दियाबाती तs आर विलक्षण होइत अछि जेकर शोभा वर्णनातीत अछि। कहल जाइत अछि जे जहिया प्रभु श्रीराम लंका विजय क’ अयोध्या लौटलाह, तहिये सँ ओहि खुशी में ई पावनि मनाओल जाइत अछि। तहन प्रभु श्रीरामक सासुर में केहेन खुशी छल हैत से सोचि सकै छी। तैं मिथिलाक दियाबाती विलक्षण।
दियाबातीक तैयारी तs बुझु एक महीना पहिले सँ आरम्भ भs जाइत अछि। सभ घर आँगन कें निपिया-पोतिया, साफ सफाई, अगर घर फूसक हो तs ओक्कर दीवाल कें चिकनी माटि सँ छ्छारानाइ, अन्य घर कें रंगनाइ ढोरनाइ ताहि पर रंग-बिरंगक फूल पारनाइ के काज होइत अछि। दलान, सभ कोठी बखारी आदि सभक साफ सफाई विशेष ढंग सँ होइत अछि। दियाबातीक दीप जरेबाक विधि एक दिन पहिलुके संध्या जम-दिवारी के रूप सँ आरम्भ होइत अछि। दियाबातीक दिन में आँगन निपनाइ, सौंसे डिबिया सजेनाइ होइत आ अन्य काज अछि। साँझ सँ पहिले खर आ संठीक हुक्कालोली/उक तैयार कैल जाइत अछि। साँझ होइत पहिल दीप संग खरक उक सौँसे फेरल जाइत अछि। पहिले घर आँगन दीप सँ सजाओल जाइत अछि। तकर बाद डिबिया, मोमबत्ती, बिजलीक प्रकाश आदि सँ सौँसे प्रकाशित कैल जाइत अछि। दलान के आगाँ केराक थम्ब पर दीपक छटा देख’ बाला होइत अछि। बच्चा सभ हुक्कालोली, पटाखा, फुलझड़ी, अनार आदि सभ जरबैत छैथि। घर आ दुकान सभ में माँ लक्ष्मी-गणेश आदि कें पूजा होइत अछि। कतौ कतौ ग्रामीण स्तर पर काली पूजाक सेहो आयोजन होइत अछि। घर में खीर, पूरी, मिठाई, अन्य पकवान संग स्वादिष्ट व्यंजन आ तरुआ सभ बनैत अछि। सभ हँसी-खुशी आनन्द मगन भ’ अहि पावनि के मनबैत छैथि आ भोजनोपरांत शयन में जाइत छैथि। भोरुकबा में करीब चारि बजे सभ घर-आँगन में सूप पिटल जाइत अछि।
अहि तरहें दीपावली/दीपोत्सव/दियाबाती मिथिला में मनाओल जाइत अछि।