प्रेरणास्पद प्रसंग – एक सत्यकथा ‘दृढ़ विश्वास’

सत्यकथा

– प्रवीण नारायण चौधरी

दृढ़ विश्वास

जखन चमत्कार सँ साक्षात्कार करब त अहाँक विश्वास दृढ़ होबय लागत।

एक बालक केँ सुतला उपरांत पहिल निन मे डरावना सपना आबय आ ओ बहुत घबराहट सँ उठिकय कानय लगैत छल। ई तखनहि होइक जखन ओ अपन महान आस्थावान पिता सँ अलग भ बाहर कतहु असगर मे सुतय। काफी समय धरि परेशान रहल। एक बेर ई बात अपन पिता सँ कहलक जे ओकरा असगर सुतला पर विचित्र सपना अबैत छैक आ ओ बहुत डरा जाइत अछि। एक बेर कोनो छत पर सुतल रहय ओतय सपना एलय आ घबराहट मे ओ भागल आ छत सँ नीचाँ कूदि गेल। हालांकि ओहि दिन ओकरा कोनो खास चोट नहि लगलैक लेकिन एहिना होइत रहला पर कहियो जोखिम बढ़ि सकैत अछि। पिता विहँसैत ओकर माथ पर हाथ फेरि कहलखिन्ह जे घबरेबाक काज नहि छैक, एकर उपचार हुनका पता छन्हि।

बालक केँ अपन पिताक स्नेह, स्पर्श आ साया (संग) काफी प्रेरणा दैत छलैक। ओ बेसीकाल अपन पिताक अंक लागि सुतल करय। पिताक अंगवस्त्र तक सँ ओकरा एतेक स्नेह रहैक जाहि सँ ओ अत्यन्त सन्तुष्ट आ सुदृढ़ भ’ गेल करय। पिताक संग डरावना सपनाक मादे कहिकय ओ आश्वस्त भ’ गेल जे ओ निश्चित एहि बीमारीक निदान ताकि देता। पिता कहलखिन जे आइ तूँ असगरे मे सुतिहें कतहु आ हम एकर इलाज कय देबौक। ओ तहिना कयलक। पहिले निन सपना देखय लागल आ डराकय उठल, लेकिन आइ ओकरा लग तत्क्षण पिता उपस्थित छलखिन। पिता केँ बुझय मे आबि गेलनि जे बच्चा मे ई डर पैसि गेल छैक जे जखन-जखन पिता सँ अलग रहैत छी तखन-तखन ई डरावना सपना आयल करैत अछि। आइ उठिते देरी पिता पुनः विहँसैत ओकरा बुझेलखिन, कहलखिन जे आब जहिया कहियो असगरे सुतिहें त दू बेर कम सँ कम ‘सीताराम सीताराम’ कहिकय सुतिहें। आर, जँ कहियो निन टूटि जाउ राति-बिराति त निरन्तर ‘सीताराम सीताराम’ नाम जप करैत रहिहें। ओ एहि विधि केँ अपना लेलक आ निर्भय बनि गेल।

अहाँ विश्वास करू – उपरोक्त मंत्र ओहि बालक केँ नहि मात्र एक डरावना सपना सँ निर्भय बना देलक बल्कि पिताक कहल एक-एक बात केँ ओतबे गहींर आस्था संग विश्वास करबाक लेल सेहो सुदृढ़ सुसंकल्पित बना देलक। आर एहि तरहें जीवनक अनेकों मोड़ पर अपन पिताक आस्था मे पूर्ण विश्वास राखि ओ बढ़ैत रहल।

एहि प्रसंग मे हम एकटा बात आर जोड़य चाहब। पिताक स्थान पर परमपिता परमेश्वर केर भान (अनुभूति) जँ बालकक स्थान पर हम मनुष्यजन राखब आरम्भ कय देब त ई मानव तन ओ जीवन अवश्य सफल, सक्षम आ सुदृढ़ बनत। अस्तु! आस्तिकता एहि लेल मानव समाज केँ सद्मार्गक मार्गदर्शन करयवला कहल जाइत अछि। हमरा बुझाइत अछि जे हरेक आस्थावान लेल ई बुझब आ आत्मसात करब बहुत सहज होयत कारण एहि तरहक समान अनुभव सभक जीवन मे होइते टा अछि। ॐ तत्सत्!! ढुलमुल रवैया आ कमजोर विश्वास मानव केँ असफल, खिन्न आ अवसादग्रस्त बना दैत अछि। तेँ ठानि लिअ जे अपन विश्वास सदिखन दृढ़तापूर्वक स्थापित करी। एक बेर जखन परमपिताक शरण मे स्वयं केँ राखि देलहुँ तखन फेर कोनो तरहक चिन्ता स्वयं नहि कय ओहि चिन्तामणि केँ चिन्ता करय लेल छोड़ि निर्भय जीवन जियैत रहू।

हरिः हरः!!