“मिथिलाक लोकगीतकेँ सहेजैत आ सुरक्षित रखैत स्त्री-कंठ”

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— कीर्ति नारायण झा       

मिथिलाक लोकगीत के सहेजैत आ सुरक्षित रखैत स्त्री -कंठ – मिथिलाक लोक गीत अर्थात सामान्य लोक द्वारा गाओल गीत जे मिथिलाक आंगन – आंगन में गुंजैत रहैत अछि एहिपर एकक्षत्र राज्य अपना सभक ओहिठाम स्त्रीगण सभ के रहैत अयलनि अछि एकर सभ सँ पैघ कारण आरम्भ काल में अपना सभक ओहिठाम पुरूष प्रधान समाज रहल अछि आ पुरूष के मेहनत बला काज करवाक लेल आवंटित कयल गेल संगहि गीत गयवाक लेल नीक स्वर केर आवश्यकता होइत छैक जाहि लेल स्त्रीगण केर स्वर उपयुक्त मानल गेल। मैथिली लोकगीत मे जेना महादेव के नचारी अथवा अन्य विद्यापति गीत सभ में पुरूष स्वर केर सहभागिता बेसी होइत अछि मुदा मैथिली लोकगीत मे गोसाओनक गीत, ब्रम्ह बाबा के गीत, सोहर, समदाओन, बटगवनी इत्यादि में एखनहु मिथिलाक स्त्रीगण के पूर्णरूपेण वर्चस्व प्राप्त छैन्ह।आरम्भ में स्त्रीगण के शिक्षित करवाक प्रथा एकदम नहिं छलैक आ हुनका अपन परिवारक पालन -पोषण करवाक मुख्य काज देल गेल छलैन्ह। पुरूषक अपेक्षा स्त्रीगण में एक दोसर के दुख सुख में सहभागिता बेसी देखल जाइत अछि संगहि हृदय बेसी कोमल होयवाक कारणे एक दोसर के प्रति मित्रता भाव बेसी देखल जाइत अछि जाहि कारण सँ मैथिली लोकगीत एक दोसर के सीखेवाक लेल परिस्थिति अनुरूप होइत गेल। भगवान स्त्रीगण में एकटा बहुत पैघ गुण प्रदान कयने छैथि जे हुनका में स्मरण शक्ति पुरूषक अपेक्षा बेसी होइत छैन्ह जाहि कारणे गीत सुनि कऽ तुरंत कंठस्थ भेनाइ हुनका लेल उपयुक्त भेल गेल। एकर सभ सँ पैघ उदाहरण हम अपन माँ के देखने छियन्हि जे पढल लिखल नहिं छलीह मुदा मैथिली के प्रायः सभ अवसर पर गावय बला गीत हुनका कंठस्थ छलैन्ह। कतेको गीत हम अपन माँ सँ कागज पर लिखि कऽ गाम में उगना नाटक होइत छलैक ओहि मे गबैत छलहुँ। दू टा गीत हमरा एखनो मोन अछि जाहि में आजु नाथ एक ब्रत महासुख लागत हे आ कखन हरब दुख मोर हे भोला नाथ हम अपन माँ सँ सीखने रही संगहि कोन भास में गाओल जेतै सेहो हमर माँ गाबि क सुनवैत छलीह। हमरा सभक बाल्यवस्था मे स्वर कोकिला शारदा सिंहा, विंध्यवासिनी देवी आ वर्तमान में मैथिली ठाकुर मैथिली लोकगीत के जीवित रखवा में अमूल्य योगदान कऽ रहल छैथि। ई सभ लोकक सामने अयवा में सफल भेलीह मुदा लाखों मिथिलानी लोक लाज के कारण अपन मधुर स्वर भेलाक उपरान्तो अपन आंगन में समेटि कऽ रहि गेलीह कारण ओहि समय केर परिस्थिति ओहने छलैक। आब यूट्यूब के माध्यम सँ स्वर लोकक समक्ष गुंजायमान भऽ रहल अछि मुदा आइयो एक सँ एक लोकगीत गामक वातावरण में स्त्रीगण सभ गावि कऽ अपन माधुर्य स्वर के गुंजित करैत छैथि। मिथिलाक सभ शुभ संस्कार बच्चाक छठिहार सँ लऽ कऽ बियाह द्विरागमन धरि स्त्रीगण लोकनि लोकगीत के सदैव स्मरण में रखैत छैथि। जय मिथिला आ जय मिथिलानीक मधुर लोक गीत🙏