“शक्तिकेँ बिना शिव ‘शव’।”

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— आभा झा       

” शिव शक्तिक अराधक मिथिला “- शक्तिकेँ बिना शिव ‘शव’
छथि, शिव और शक्ति एक-दोसर सऽ ओहि प्रकार अभिन्न छथि, जै तरहें सूर्य और ओकर प्रकाश, अग्नि और ओकर ताप।शिवमें ‘इ’ कार ही शक्ति अछि। शिव सँ ‘इ’ कार निकलि गेला पर ‘ शव ‘ ही रहि जाइत अछि। अपन मिथिला देवी उपासकक लेल अत्यंत प्रसिद्ध अछि तैं मिथिलामें देवी पूजा खूब धूमधाम सँ मनाबैकेँ प्रचलन अछि।अपन मिथिलामें शक्तिक पूजा घर-घर होइत छैक। शिवकेँ भक्त अपन मिथिलामें घर-घर छथि। कुशेश्वरस्थान, सोमनाथ महादेव, विद्यापति धाम, बाबा कपिलेश्वर नाथ, बाबा भूतनाथ, मुक्तेश्वरनाथ इत्यादि अनेकों प्रसिद्ध मंदिर अछि अपन मिथिलामें। अपन मिथिलाक लोकमानसमें इ बात पूरा विख्यात अछि जे विद्यापति जी एहन शिवभक्त कियो नहिं भेल छथि। ओ भगवान शिवकेँ बड्ड पैघ भक्त छलाह। महाकवि विद्यापति भगवान शिव पर अनेकानेक गीतक रचना केलनि। मान्यताक अनुसार, जगतव्यापी भगवान शिव विद्यापतिक भक्ति व रचना सँ बेहद प्रसन्न भऽ कऽ स्वयं एक दिन वेश बदलि कऽ हुनका सँ भेंट केलखिन। हुनका संग रहयकेँ लेल भगवान शिव विद्यापतिक घरमें नौकर तक बनयकेँ लेल तैयार छलाह। ओ अपन नाम उगना बतेने छलखिन। दरअसल कवि विद्यापति आर्थिक रूप सँ सबल नहिं छलाह, ताहि दुवारे ओ उगना यानि भगवान शिवकेँ नौकरी पर रखला सँ मना कऽ देलखिन। मगर शिवजीकेँ कहला पर सिर्फ दू समयकेँ भोजन पर हुनका राखय लेल तैयार भेलखिन। कथाक अनुसार, एक दिन विद्यापति राजाक दरबारमें जा रहल छलाह, तखन तेज रौद आ गर्मी सँ विद्यापतिकेँ गला सूखै लगलनि। आस-पास कतौ जल नजरि नहिं अबैत छलनि। विद्यापति उगना सँ जल आनै लेल कहलखिन। तखन शिव कनिक दूर जा कऽ अपन जटा खोललनि व एक लोटा गंगाजल लऽ अनलाह। जल पीबैत देरी विद्यापतिकेँ गंगाजलक स्वाद एलनि, ओ सोचय लगला कि वनक बीच ई जल कतऽ सँ आयल। एकर बाद हुनका संदेह भेलनि कि कहीं उगना स्वयं शिव तऽ नहिं छथि। विद्यापति शिव जीकेँ चरण पकड़ि लेलखिन तखन शिवकेँ अपन वास्तविक स्वरूपमें आबय पड़लनि।एकर बाद शिवजी विद्यापतिक संग रहयकेँ इच्छा व्यक्त केलनि और हुनका कहलखिन कि ओ उगना बनि कऽ हुनकर संग रहथिन। हुनकर वास्तविक रूपक ककरो पता नहिं चलबाक चाही।
मुदा एक दिन उगना द्वारा कोनो गलती भेला पर विद्यापतिकेँ पत्नी शिवजीकेँ चूल्हाक जरैत जारैन सँ मारलखिन। ओहि समय विद्यापति आबि गेलखिन और हुनकर मुख सँ निकलि गेलनि कि ई तऽ साक्षात भगवान शिव छथि, और अहाँ हिनका मारि रहल छियनि। विद्यापतिक मुख सँ इ बात निकलैत देरी भगवान शिव अंतर्ध्यान भऽ गेलखिन। एकर बाद अपन गलती पर पछताइत कवि विद्यापति वनमें शिवजीकेँ ताकय लगलाह। अपन प्रिय भक्तक एहन दशा देखि भगवान हुनकर समक्ष प्रकट भेलखिन और हुनका बुझेलखिन कि आब हम अहाँक संग नहिं रहि सकब। परंतु उगनाक रूपमें जे हम अहाँक संग रहलौं ओकर प्रतीक चिन्हक रूपमें आब हम
शिवलिंगक रूपमें अहाँक लऽग विराजमान रहब।एकर बादे ओहि स्थान पर स्वयंभू शिवलिंग प्रकट भऽ गेलखिन। यैह मंदिर उगना महादेव व उग्रनाथ मंदिरक नाम सँ प्रसिद्ध अछि।
हर हर महादेव 🙏🙏