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“मैथिल आराधनामे शिव आ शक्तिक प्रभाव”

— उग्रनाथ झा       

आदि काल सं मैथिल चेतना सनातन संस्कृतिक पोषक रहल अछि।मैथिल सतत अपन कर्मकांड , शास्त्र- पुराण , सांस्कृतिक धरोहरके सेवक रहला अछि। कहल जाएत छैक जे मिथिलामे सुग्गा वेद पाठी होएत छल ।एक सँ एक बढ़ि योग जप तपकेँ बल पर वैश्विक पटल पर दैदीप्यमान रहै वाला मनीषी लोकनि अवतरण भेल छैक । जिनकर तंत्र मंत्र साधना सँ लऽ उपासनाक पतख्खा आसमान में फहराए छैक ।मिथिलाक धरती बहुदेववादक समर्थक रहल अछि । मुदा बाहुल्यताक दृष्टिए देखब त प्रारंभिक काल सऽ मिथिला शक्ति उपासनाक केन्द्र रहल अछि। साधनाक प्रायः सबटा बाट तंत्र प्रधान होएत छल । एखन कलय़ूगोमे शैली, शक्ति ,वा विष्णु उपासना बिनू तंत्रे उपयोगी नहि बूझाएछ ।
जाहि सँ परिलक्षित होएछ जे मिथिलाक भूमि शाक्त धर्मक उपासक रहल जाहि मे शक्ति अर्थात मातृत्वक उपासना करबाक पहिल स्थान छैक।जे कि एसि सृष्टिक उत्पत्ति अथवा अभिव्यक्ति के जड़ि छैक।जे कोनो देव के विशेष तागतिक द्योतक छै।फराक फराक काल खंडमे शक्ति शिव के अर्द्धांगिनीक रूपमे पूजित भेलीह , जिनकर फराक फराक रूप दूर्गा काली के रूप में जानल गेल।शाक्त साधक एहि शक्तिक उपासना सँअलौकिक सुख आ आनंद पबैत छल आ कठिनाई आ शत्रु विनाश के शांति पबैत छल ।जौ देखल जाए शाक्त धर्म आर्य आ अनार्य धर्मक मिश्रण थीक । जाहि शाक्त धर्ममे साधक मांस , मत्स्य मद्य,इत्यादीक स्थूल आ सुक्ष्म प्रयोग सं सिद्धि प्राप्त करैत छल । जे कालांतर में मिथिलामे धूड़झार चलनसारि भ गेलै । एखनो हमरा सभ शक्ति उपासना में बलि प्रथाक मान्यता रखने छि ।बहुत पाबनि आ कर्मकांड छैक जाहि मे माछक प्रधानता रखने छैथ । मुदा किछु लोक अपन आधुनिकतावादक देखौस में मत्स्य प्रयोग आ बलि प्रदानक विरोधमे देखल जाएत छथि । एकर अस्तित्व के नकारि रहल छैथ । किएक त अपन अतितक उपासना पद्धति बिसरा गेल छैथ।जौ देखल जाए शाक्त मतालंबि अपन पथभूतियायल प्रतिकात्मक छथि त विरोध केनिहारो कोन सनातन के उद्दीयमान पथ के अनुगामी छथि ।तै उपासना पर कुठाराघात नहि करक चाहि ।यथाशक्ति तथाभक्ति ।
हमरा सभक शक्ति उपासना के साक्ष्य स्वरूप देखल जाए त मिथिला में शक्ति स्थल में डेग डेग पर भेटत जेना दरभंगा में श्यामा माई , कंकाली माई , म्लेच्छ मर्दिनी , वाणेश्वरी , नावादा हैयहट्ट भगवती सहरसा उग्रतारा , मधुबनी उच्चैठ भगवती , एहन हजारों स्थल अछि जे हमरा सभक पूर्वज के शाक्त समर्थक होएबा के प्रमाण अछि।
जहन मातृत्व पक्षक के उपासना हो जे शक्ति स्वरूपा उर्जाक पूंज छथि त एहन शक्ति जिनक अर्द्धांगिनी स्वरुपा छथि हुनकर उपासना छोड़ि तंत्र-मंत्र साधनाक पूर्णाहुति संभव नहि । शक्तिक प्रसन्नता त शिवक प्रसन्नता सं उत्क्रमित होईछ। ताहि हेतु शाक्त अनुयायी लोकनि शक्ति आधारित शिव उपासक सेहो छलाह । जे हुनका सभक सिद्धि प्राप्तिक सुलभताक कारण छल ।फलत: मिथिला धाम में जगह जगह शिवालय स्थापित अछि जेना दरभंगा माधवेश्वर , कुशेश्वरस्थान, विदेश्वर, मधुबनी उग्रनाथ ,कपिलेश्वर , मधेपुरा सिंहेश्वर ईत्यादि । उपासना के जड़ि एते गहिर जे मिथिला के सभघर में गोसाओनि आ संपू ट में भगवान नर्मदेश्वर महादेव आ शालिग्राम रहैत छलाह ।जतय गोसाउनि शक्ति स्वरूपा नर्मदेश्वर शिव स्वरुप ओतहि शालिग्राम त्रिगुणातित भगवान विष्णु । हमर सभ शिव के विशिष्ट रूप मृत्तिका महादेव के से हो प्रधानता द पुजै छि।
अतः कहि सकैत छि जे मिथिला सदा सं शिव शक्तिक प्राथमिक उपासक रहल अछि। जाहि सँ तंत्र मंत्र यंत्र सिद्धि प्राप्त करैत रहल अछि।ताहि लेल मिथिलाक में मातृत्व प्रथम रहल आ सियाराम ,राधेश्याम , गौड़ीशंकर प्रचलित अछि।

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