रामचरितमानस मोतीः धनुष-भंग प्रसंग

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

धनुषभंग

१. श्री रामजी सभक दिश तकलनि आर सब केँ चित्र मे अंकित समान बुझैत कृपाधाम श्री रामजी सीताजी दिश देखलनि आर हुनका बेसी व्याकुल बुझि अत्यन्त विकल भेल सेहो बुझलनि। हुनकर एक-एक क्षण कल्प समान बीति रहल छल।

*यदि प्यासा आदमी पानि बिना शरीर छोड़ि दियए त ओकर मरि गेलाक बाद अमृतक पोखरिये कि कय लेत?

*सबटा खेत सुखा गेलाक बाद वर्षाक कोन काज?

*समय बितलाक बाद पछतावा सँ कोन लाभ?

मोन मे एना बुझिकय श्री रामजी जानकीजी दिश देखलनि आर हुनकर विशेष प्रेम लखिकय ओ पुलकित भ’ गेलाह।

२. मनहि-मन ओ गुरु केँ प्रणाम कयलनि आर खूब फुर्ती सँ धनुष केँ उठा लेलनि। जखनहि हाथ मे लेलनि त ओ धनुष बिजली जेकाँ चमकल आर फेर आकाश मे मंडलाकार रूप धय लेलक।

३. धनुष हाथ मे लैत, चढ़बैत आ जोर सँ खींचैत कियो नहि देखलक, अर्थात् ई तीनू टा काज एतबा फुर्ती सँ कयलथि जे धनुष कखन उठौलनि, कखन चढौलनि, आ कखन खींचलनि से केकरो पता नहि लगलैक। सब कियो रामजी केँ धनुष खींचने ठाढ़ देखलक। ताहि क्षण श्री रामजी धनुष केँ बीच सँ तोड़ि देलनि। भयंकर कठोर ध्वनि सँ समस्त लोक भरि गेल।

छन्द :
भे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले।
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरुम कलमले॥
सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं।
कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारहीं॥

घोर, कठोर शब्द सँ पूरे लोक भरि गेल। सूर्यक घोड़ा मार्ग छोड़िकय चलय लागल। दिग्गजक चिग्घाड़ गुंजि गेल। धरती डोलय लागल। शेष, वाराह आर कच्छप कलमला उठलाह। देवता, राक्षस और मुनि लोकनि कान पर हाथ राखिकय व्याकुल होइत विचारय लगलाह। तुलसीदासजी कहैत छथि जे जखन सब केँ निश्चय भ’ गेलनि जे श्री रामजी धनुष केँ तोड़ि देलखिन तखन ‘श्री रामचन्द्र की जय’ बाजय लगलाह।

४. शिवजीक धनुष जहाज थिक आर श्री रामचन्द्रजीक भुजाक बल समुद्र थिक। धनुष टुटला सँ ओ समस्त समाज डूबि गेल जे मोहवश पहिने एहि जहाज पर चढ़ल छल जेकर वर्णन उपर मे आयल अछि।

५. प्रभु धनुष केर दुनू टुकड़ा पृथ्वी पर राखि देलनि। ई देखिकय सब कियो प्रसन्न भ’ गेलथि।

६. विश्वामित्र रूपी पवित्र समुद्र मे, जाहि मे प्रेम रूपी सुन्दर अथाह जल भरल अछि, राम रूपी पूर्णचन्द्र केँ देखिकय पुलकावली रूपी भारी लहर बढ़य लागल।

७. आकाश मे बड़ा जोर सँ ढोल-नगाड़ा बाजय लागल आर देवांगना लोकनि गाबि-गाबिकय नाचय लगलीह।

८. ब्रह्मा आदि देवता, सिद्ध और मुनीश्वर लोकनि प्रभुक प्रशंसा कय रहल छथि आर आशीर्वाद दय रहल छथि। ओ सब रंग-बिरंगक फूल आ माला बरसा रहल छथि। किन्नर लोकनि रस भरल गीत गाबि रहल छथि।

९. सौंसे ब्रह्माण्ड मे जय-जयकार केर ध्वनि व्याप्त भ’ रहल अछि, जाहि मे धनुष टुटबाक ध्वनि दबा गेल अछि। जतय-ततय स्त्री-पुरुष प्रसन्न भ’ कय कहि रहल छथि जे श्री रामचन्द्रजी शिवजीक भारी धनुष केँ तोड़ि देलनि।

हरिः हरः!!